Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 85
________________ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [१, २८२-३०६ नयरे सुहृ वि रम्मे सयणा-ऽऽसण-भोयणाइ परिकलिए। तत्थे कहिं घरवे(वा)सों पउलीय वि णिवडणं जत्थ ॥ २८२ सव्वाण वि जुवईणं जइफंसो एरिसो भवे दुहओं। तो जुवई(इ)पसंगणं दुक्खं चिय नियमओ होइ ॥८३ किंतु जहा एयाए तह जइ फंसो हवेज अन्नाणं । तो' नाम पि न पुरिसा गेण्हेजा एत्थ इत्थीणं ॥ ८४ जेणं चिय एरिसया तेणं चिय रूवैसंपयजुया वि । एत्तियमेतं कालं कुमरत्ते संठिया एसा ॥ ८५ ईसरधूयसरूवा एत्तियकालं ने अच्छएं कन्ना । न हु पहि" पक्का बोरी छुट्टइ लोयाण जी खजौं ॥८६ एएणं चिय दिन्ना मज्झ वि एसा अपुन्नजुत्तस्स । परतणयाणं दुद्धं को देज्जा जं हवे सुद्धं ॥ ८७ अहवा एसो वीरो मह पिउणो कह वि वइरिओ नूणं । दाउं एवं कन्नं मह मरणं इच्छएँ जेणं ॥ ८८ ता वच्चामि लहुं चिय जाव न मं खाइ रक्खसी एसा । जीवंतो ताव अहं पीयामों सीयलं सलिलं ॥ ८९ अह मोत्तूणं सा एक्ककडिलेण निग्गओ सहसा। सयणेहिँ दढं धरिओ कह रूससि संपयं चेव ? ॥ २९० मिहुणाणं किर लोए रूढे पणयम्मि होइ रूसणयं । तक्खयमेत्ततलाए एवं पुण सुंसुमारसमं ॥ ९१ अह जंपइ सो दमओ रोसो मणयं पि नत्थि" अम्हाणं । *किंतु करप्फंसेण वि मज्झ विगप्पो मणे जाओ ॥ ९२ किं एसा सा मारी कन्नारूवेण संठिया गेहे । फंसेण वि जेण इमा पाणाण पणासणं कुणइ ॥ ९३ ता मेलहँ जामि अहं न हु कजं किं पि मज्झ भोएहिं । सामाण वि सत्तूणं जेणाहं चुक्किमो एथ ॥ ९४ अह निष्फिडिउं दमओ सुक्कतणं गेण्हिऊण सहस त्ति । भामिय मत्थयउवारं पक्खिवई वीरगेहम्मि ॥ ९५ एत्थंतरम्मि वीरो दुक्खत्तो जंपए इमं वयणं । आगब्भाओं इमाए दोहग्गं दारुणं सुङ॥ ९६ गभगया जणणीए जम्मम्मि वि सयणमाइलोयाणं । पाणिग्गहणे पइणो एगंतेणं जओ दुहया ॥ ९७ पियमेलिया वि चिंतइ दोहग्गं मज्झ सबजगअहियं । दमओ विमं अदोसं मोत्तूणं निग्गओ"जेण ॥ ९८ इत्थित्तं चेव दुहं तत्थेव य अइदुहं च दोहग्गं । रंडत्तं बालाए जह पिडओ गंडउवरम्मि ॥ ९९ जीवित्तं वंछिज्जइ पइ-पुत्तसमन्नियाण महिलाण । इयराण जणेण पुणो मरणं चिय अहव पक्वजं ॥ ३०० एवंविहाऍ मज्झ वि मरणं चिय सुंदरं न संदेहो । अन्नह कह दरिसामो वयणं लोयाण पचूसे ॥ १ सुत्ते जणम्मि सणियं गंतूणं गेहपुट्ठिवणियाए । वलिऊणं" उत्तरियं जा पासं देइ गलदेसे ॥ २ ती चंदप्पहदेवो तं तह दळूण दुक्खसंतत्तं । आवइ तम्मि पएसे नेह-दयासंजुओ सिग्धं ॥ ३ काऊण दमगरूवं भणइ पिए! हा किमेयमारद्धं । खेड्डो चिय एस कओ तुह चित्तपरिक्खणनिमित्तं ॥४ मा कुणसु चित्तदुक्खं नाहो हं तुज्झ चंदसमवयणे ! । जंजं चिंतेसि मणे तं तं पूरेमि अवियारं ॥५ सवाण वि कमणीयं दिवालंकारभूसियं देहं । निव्वत्तेउं जंपइ मज्झ पिए ! एरिसं रूवं ॥ ३०६ 1B तस्स; C कस्स। 2 Bघरिणासो। 3A Cणिहडणं । 4 B फासो। 5B वुहओ। 6C फासो; D फुसो। 7 Bता। 8 A पुरिसो। 9 B इत्थ। 10 B रूय'; Cरूअ°। 11 Cधूभ। 12C सरूआ। 13 Bअ। 14 Bणच्छई। 15 C पय। 16 C लोआण। 17 B सा। 18 A वेजा। 19 B इच्छई। 20 A पायामो। 21 A B सुंसमार । 22 A नासि। 23 B एईए; D महइहि । * In A there are two following Serås the first of which is in the body of the text and the second is noted only in the margin: (1) किं तु अमणुलफासा एसा मणामदुहजणया॥ (2) करफंसणेण भिनद्भविगप्पो मणे जाओ। 24Cफासेण। 25 A मेल्हह। 26 A लोएहिं। 27. सत्ता: B मोत्त। 28 B एत्थं । 29 B गिन्हिऊण । 30 B मोत्तण। 31B विनिग्गओ। 32 A "उवरिम्मि। 33 B महिलाए। 34 A बलिऊणं; B वलिऊण। 35 Bउत्तरीयं । 36 B तं। 37 B दाऊण । 38 B खेडो139 B चिय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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