Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 84
________________ १, २५५ - २८१ ] नाणपंचमीकहाओ-१. जयसेणकहा न हु एगम्मि विन?' सद्यो वि हु तारिसो मुणेयवो । जइ कायरा पणट्ठां तो किं सूरा वि नासंति ? ॥२५५ किं बहुणा भणिएणं फलदारेणेव पयडओ होही । सबो वि जणो पढम एरिसयं चेव जपेई ॥ ५६ एयं' सोऊण तओ काऊण जिणिंद-संघपूयं च । सीलायरियसमीवे दिक्खा वि हु दाविया तीसे ॥ ५७ सीलायरिएण तओ गुणमालपवित्तिणीऍ सा दिन्ना । सा वि हु तीसे मूले सव्वं पि हु सिक्खए विहिणा॥५८ काऊण तवचरणं कइवयंवरिसेहि सुंदरी मरिठं । सोहम्मे वरकप्पे देवो चंदप्पहो जाओ॥ ५९ कुलचंदो वि हु गच्छइ नियनयरे थोवसोयपरिकलिओ।दो तिन्नेव दिणाई पियविरहे जेण रणरणओ॥२६० पियमेलिया वि वड्डइ परियणमज्झम्मि सुहु अवहूया। चवला निहुरवयणा बहुभक्खा सुट्ठ अविणीया ॥६१ राईए दिवसम्मि य सवं भुंजेइ नियमपरिहीणा । अहवा तिरिउज्वट्टा हवंति"भुक्खालुया नियमाँ ॥ ६२ ईसरकुलम्मि जाया तारुन्नं पाविया सुरूवा य । तह वि न वरेई को वि हु जम्मंतरकम्मदोसेणं ॥ ६३ बोलंती चलंती" कुणमाणी सोहणं पि" कजं सौ । तह वि न कस्स वि भावइ दोहग्गकलंकिया सुढ॥६४ वीरो वि हु तं दहुँ चित्तेणं वहइ सु? उज्वेयं । कह का(दा)यवा एसा वरजोगा वट्टए जेणं ॥ ६५ तीए चिय नयरीए वणियसुयं भिक्खहिंडियं" निचं । दटुं चिंतइ वीरो एयस्स वि देमि एयं तु ॥ ६६ अह मणिओ सोतेणं मा भिक्खं भमसु निंदियं पुत्त !। अहमेव तुज्झ भलिमो भोयणमाईहिँ नियमेण ॥६७ मुंच इमं खप्परयं अविसंको विससु एत्थ घरमज्झे । भुंजह देह जहिच्छं नियगेहं तुज्झ एयं तु ॥ ६८ जं विहडियाण कीरइ नियगेहसमागयाण लोयाण । तं जाणसु उवयारं भद्द! वयपवंच इयरं तु ॥ ६९ सवम्मि वि विवयगएँ जुजइ दाउं विसेसओ सयणे । सयणा-सणाइ सत्वं इयरह सयणेण किं कजं? ॥ २७० एगउदएण जेणं उदओ सयणाण होइ नियमेणं । तेणं चिय महइ जणो नियसेणीए य उदयं तु ॥७१ बंधू सयणो मित्तो भिचो अन्नो य जस्स गेहम्मि । पावइ मणनिवाणं पुरिसं तं चेव जाणाहि ॥ ७२ एवं भणिए सो वि हु खयकारयनामओ मणे मुइओ।मोत्तुं नियउवगरणं पविसइ गेहम्मि सहस त्ति ॥७३ ण्हाओ कयनेवत्थो" भुत्तविलित्तो" य गहियतंबोलो। वरसयणा-ऽऽसणसत्थो कीलंतो अच्छए जाव ॥७४ ताव य जंपई वीरो हत्थं काऊण मत्थए तस्स । परिणेहँ इमं कन्नं तुज्झ कए संठिया एसा ॥ ७५ अह विहसिऊण मणयं जंपइ दमओ वि एरिसं वयणं । तुम्हें चिय आएसो कायबो किमिह भणियवं? ॥७६ चिंतइ मणेण दमओ नूणं फलिया मज्झ पुन्नाइं । अन्नह चिंताईया कह मज्झं एरिसावाँ ॥ ७७ सचं चिय लोगाणं एगदसाए न वच्चए कालो । अम्हारिसो वि जम्हा एद्दहमेत्तं पयं पत्तो ॥ ७८ काऊण वन्नमाई कमेण वीरेण सयणकलिएणं । पियमेलिय-दमयाणं पाणिग्गहणं विणिम्मवियं ॥ ७९ कयकिच्चस्स य सयणे पुरओ माईण रयणि समयम्मि । पियमेलियफासेणं चित्तं दमयस्स अइखुहियं २८० डज्झइ भिज्झइ फुट्टई मज्झ सरीरं इमीऍ फासेणं । जइ पुण करेज्ज संगं तो हुन्जा नित्तुलं मरणं ॥२८१ - 1 B विणढे। 2 A विनट्ठा । 3 A तो। 4 B किं वा। 5 B बहु । 6 B जंपेति । 7 A एवं । 8 B तंवचरणं । 9 B कइचिय। 10 A थोय। 11 B भवंति। 12 A भुक्खायलुया। 13 Cलोए। 14 C परिण। 15B य चलंति; C पवलंती। 16 A च। 17 A च। 18 Cइ। 1 * Five sts. from 267 to 271 are noted in the margin of A but as they form a regular part of the text in B, C, and D, they are incorporated here as a part of the text. 20 A निदिई। 21 A Qजसु। 22 A देहि। 23 BC विउडियाण। 24 B गये। 25 B नेवच्छो। 26 B चिलत्तो।27 B जंपय। 28 B परिणेहिं। 29 A. वियसिऊण। 80C भणिएणं 31A एरिसी; C एरिसं। 32 C वत्थं । 33 A "मित्तं । 34 B वयण। 35 C माईणि। 36 A इअक्खुहियं । 37Cफिदृ। 38 A फासे वि; B लेसेणं। 39A Bनिन्नलं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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