Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 81
________________ सिरी महेसरसूरिविरइयाओ [ १, १७३ - १९८ ७४ ७५ ७६ ८३ ८४ दोन्नि विपहरंति दढं दोन्नि वि वंचंति विविहकरणेहिं' | दोन्नि' वि चडंति गयणे दोन्नि वि निवडंति महिवट्टे ॥ दोन्नि विकुति भिउडिं दोन्नि वि सोहंति सेयबिंदू हिं । दोनं वि झाडिंति' असं दोन वि भिंदंति महिवीढं ॥ तंबर व जाया दोन वि खग्गेहिँ दारियावयवा | अहवा पच्छिमकाले रत्तं चिय अंबर होइ ॥ अन्नोन्नमम्मपहया पंचत्तं पाविआ तदा दो वि । जह जाओ अविसेसो दोण्ह वि पडियाण भूमीए ॥ सोऊण सीहमरणं चंदक्कता वि विलविउँ (उं) बहुयं । जंपइ एयं वयणं कस्स अणाहा अहं एत्थ ? ॥ ७७ असा मए विभणिया माए ! मा भणसु एरिसं वयणं । पुत्तत्तणेणं एहि अहमेव य सामिओ तुज्झ ॥ ७८ जणओ कुमारभावे तारुन्ने तह य होइ भत्तारो । विद्धत्तणम्मि पुत्तो न कया वि निराहि (सि) या नारी ॥ ७९ अह भणइ चंदकंता सच्चं धम्मो सि नत्थि संदेहो । तं कुणसुं जेण सामिय ! मज्झ अणाहाऍ नाहत्तं ॥ १८० सत्थे वि जहा भणियं गय-मयभत्तारयाण नारीणं । अन्नो वि य भत्तारो तम्हा जुत्तं तए भणियं ॥ ८१ अह भणिया सावि मए अंब ! म जंपेस एरिसं वयणं । पुत्तो भन्नइ भत्ता एवं अइनिंदियं लोए ॥ ८२ तो भइ चंदकता किन्नवि जाणेसि मूढ ! नियमायं । न हु अंबाणं" सद्धा पूरिजइ अंबिलीयाहिं" ॥ हरयणाईयं वच्चामो जत्थ नेय नज्जामो । नीसंकं तत्थठिया भुंजामो विसयसोक्खाई || अह चिंतियं मए विहु पेच्छह एयाऍ एरिसं चित्तं । अहवा कामायत्ते तं नत्थि हु जं न संभवइ ॥ ८५ इमे विसया जाण पसंगेण एरिसी चेट्टा । इहलोयनिंदणिजो " (जा) परलोए दोग्गइकरी य ॥ ८६ ताण नमो विसयाणं जाण पहावेणं दुक्खसंघाओ । बलिकीयं तं सोन्नं जं कन्नं तोडए पावं ॥ विसयासमोहिएहिं तं कीरइ किं पि दारुणं कम्मं । जेण नै जायइ कित्ती नेय सुहं उभयलोए वि ॥ ८८ भुंजता विहु विसया तह न वि" तित्तिं करेंति बहवो" वि । तुच्छा व ओसहीओ नराण संतोसरहियाण ॥ ८९ दाऊ" अणुकूलं वयणं तम्हा इमाऍ पावाए । दणं किं पि मुणिं विसए छड्डेमि नियमेण ॥ १९० पावनिवित्तिनिमित्तं अलियं पि हु वयणयं न दोसयरं । इयरह दोग्गइगमणं कोसियरिसिणो व नियमेण ॥ ९१ अणुकूलं चिय वोत्तुं छड्डिज्जइ जेण नत्थि इह कजं । जो मरइ गुडेणं चिय तस्स विसं दिजए किं" व ? ॥ ९२ इय चिंतिऊण भणिया मए वि तं अंब ! अच्छसु णिचिंता । कायचं तुह वयणं को वा नेच्छेई कल्लाणं ? ॥ किंतु इमं निणिज करेउ तायस्स ताव करणिजं । परिवाडी कज्जं सवं पि सुहावहं होइ ॥ अह भणइ चंदकंता होउ कमेणावि तह य मह इटुं । न हु उत्तालवसेणं उंबरपाओ कओ होइ ॥ अह उट्ठऊण तत्तो पत्तो हं देवसूरिपामूलं । गहिऊण तत्थ दिक्खं नाणाइतियं" तओ गहियं ॥ काऊण कम्मखवणं केवलनाणं च पवियं विमलं । तुम्हाण बोहणत्थं संपइ इह आओ अहयं ॥ एयं ठियम्मि सुंदरि ! मह पुरओ किं तुमं विलज्जासि ? | अहवा जुवइजणाणं लज्ज चिय मंडणं परमं ॥ १९८ 3 C दोन । 4 C दोन । 5 B दोनि । 6 B ताडिति । 10 B पुत्तत्तणा वि; C पुत्तृत्तणे वि एहि कस्स अाहा ८७ ९३ ९४ । । 13 B अणाहाइ; C अणाहाय । 14 BC (5) 18 A अंबलीयाहिं । 19 B गिण्हह । 20 B C 23 B C सुन्नं । 24 B ण । 25 B वि न तत्ति । 30 BC कीस । 35 B C नाणाईयं । ८ 12 BC कुणसि 1 BC (5) 'चलणेहिं । 2 C दोन | 7 B दोनि । 8 B अंबरो । 9 B C विलवियं । सुमं एत्थ । 11 B इहि; C एन्हि । उ | 15 B अम्ब । 16 C जंपेसि । 17 B अम्बाणं निंदणीया | 21 A पभावेण । 22 A °सयाओ । करिति । 26 A C वहवे | 27 B C इव । 28 C दाऊण य । 29 B नियमेणं 31 A निच्छे | 32 B C कोरङ । 38 A ता परवाडी । 34 A C मण° । 36 B गहिओ । 37 C पाविडं । 88 A मागओ । 39 A औलवेसि । Jain Education International For Private & Personal Use Only १७३ ९५ ९६ ९७ www.jainelibrary.org

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