Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 79
________________ सिरीमहेसरसूरिविरइयाओ [१, १२१-१४७ उदयगओ आइचो वंदिजइ अहव भत्तिकलिएहिं । सूरं उदयसमेयं जत्तेणं पणमए लोओ ॥ १२१ उइए रविणो बिंबे मिलंति मिहुणाइँ चक्कवायाणं । विहडियसंघडणाइं मित्तो च्चिय कुणइ सवत्थ ॥ २२ अह सुंदरी वि गंतुं तीरे सरसीएँ चिंतइ मणेणं । नीरपवेसाईणं किं मरणं मज्झ सेयं ति ॥ २३ ताव य विरुद्धसत्ते पेच्छई अहि-नउलमाइएं मुइए । अन्नोन्नं कीलंते वहमाणा विह्ययं हियए॥ २४ अह सरहसमुढेउं पेच्छइ थोवंतरम्मि मुणिवसहं । केवलनाणसमेयं" धम्मं धम्मं व मुत्तिमयं ॥ २५ कंचणपउमनिविहं कुणमाणं देसणं सुराईणं । अमएण व सिंचंतं गंभीरसुहाएँ वाणीए ॥ २६ तं वंदिऊण जा सा उवविठ्ठा एगदेसमायम्मि । ताव य पुट्ठो भयवं पुरिसेणेगेण एयं तु ॥ २७ देवस्स य धम्मस्स य धम्मियलोयस्स लक्खणं जमिह । तं सामिय कहसु महं बहुभेया तस्स जेणेह ॥ २८ जंपइ सो मुणिवसहो सवं अक्खेमि जं तए पुढे । संखेवेण महत्थं सुबउ एगेण चित्तेणं" ॥ २९ मोहो खुहा पिवासा बंधण-जर-मरण-रोग-निदाओ। चिंता खेओ" सोओ" राग-दोसा य अरई य॥ १३० भय-मय-पमाय-मायाँ अट्ठारसमं च ज समाइरुं । एए जस्स पणही तं देवं मुणसु नियमेण ॥ ३१ एसो सो वरदेवो जम्मंतरसोक्खदायओ होउ । अन्ने पुण बहुभेया इहलोयफलावहा भणिया ॥ ३२ इहलोइयं पि कजं सिज्झइ नियमेण पुत्वसुकरण । देवाइया निमित्तं तम्हा सुकयं चिय पहाणं ॥ ३३ दालिदं भत्ताण वि दीसइ विहवो अभत्तिमंते वि । एयं पि हु कारणयं सुपुष्पकम्मानि हु देवा ॥ ३४ धम्मो वि सुहो एसो हिंसाइविवजणं जहिं कहियं । अन्नो पुण नायवो धम्मो वि अहम्मैसारिच्छो॥ ३५ धम्मो धम्मो भन्नइ न य नजइ तस्स किं सरूवं तु । गड्डुरियपवाहेणं जम्हा तं कारएँ बहुसो ॥ ३६ सरिसाण वि पुरिसाणं रयणगुणे जाणए जहा एक्को । तह लक्खाण वि मज्झे धम्मगुणे जाणए विरलो॥ ३७ खंतो दंतो सरलो परहियनिरओ पियंवओ नाणी । अममत्तो तवजुत्तो एसो पुण धम्मिओ नेओ॥ ३८ जडिओ"चुंबियंगल्लो रत्तंबरधारओ य अन्नो वा। पुष्वगुणेहिँ विहूणो सबो वि हु जीवियाकलिओ॥ ३९ जह पेरणमज्झगओ लिंगंधारेइ अह व न हु धम्मी। तह खंताइविहूणो अन्नो विहु तारिसो चेव॥१४० एत्थंतरम्मि सो चिय बहुविहदुक्खेहिँ पीडिओ भणइ । जलणाइपवेसेणं मरणं पि हु उत्तमं कयरं॥ ४१ अह भणइ मुणिवरिंदो जलणाइपवेसणं पसवचरियं । कममागयं सनियम एवं पुण उत्तमं मरणं ॥ ४२ दुक्खाण नासणत्थं जे विहु मरणं पवन्नया एत्थ । दुक्खं ताण तह चिय पावं पुण जायए तिवं ॥ ४३ *मरणेणं चिय फिट्टइ दुक्खं जइ होज एस परमत्थो । ता तव-चरणाईयं सत्वं पि निरत्थयं जाण ॥ ४४ जस्स भएण मरिजइ तं दुक्खं जाइ पुट्ठिमणुलग्गं । सग्गं" पत्ते वि खरे अणुमग्गं दावणो जाइ ॥ ४५ अह सुंदरी विचिंतइ अन्ज वि मह अस्थि सुह पुन्नाई। अन्नह तव-नाणनिही दटुं कह लब्भए एसो ?॥ ४६ जइ कह वि ण एस मुणी पुन्नविभावणं दिट्ठओ होजौं। ता कुच्छियमरणेणं दोग्गईंगमणं हुयं आसि ॥१४७ 1 B उअय। 2 B कलिएण। 3 A चक्कवायाण। 4 A विहडण। 5 A तीरं । 6 B मणेण । 7Cमि। 8 B पिच्छह। 9 A Coमाह। 10 A पमईए। 11 B सहरस। 12 B°समेउं । 13 C एवं। 14 A वुटुं। 15 B चित्तेण । 1GC सेओ। 17 A B सेओ; C खेओ। 18 B C चिंता । 19 B जम्म । 20 A प्पणहा। 21 BC(5)झाओ। 22 C एवं । 23 A B पुग्व। 24 A B°कम्मा । 25 B देव । 26 A विवजओ। 27 A अधम्म । 28 Cइ। 29 B कीरए । 30 B भेओ। 31 AC जडितो। 32Cचुंबिअ । 33 A पेराण। 34 C धम्मो। 35A B°वेसाणं । 36 BC (1) कम्मा । * In B, C, and D this stanza is found after st. 145. 37 C सग्गे। 38 A स्थि; B इथि । 39C विभाएण। 40 A. होज । 41 B°मरणाणं। 42 B दुग्गइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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