Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 78
________________ १, ९५ - १२० ] नाणपंचमीकहाओ- १. जयसेणकहा ता पिच्छइ सो सरसिं विमलजलं पउमलोयणसणाहं । जणणि पिव जंपतिं तडठियतरुविहगविरुएहिं ॥९५ मजेउं उत्तिन्ना कुसुमेहिं अच्चिऊण थंडिल्लं । पच्छा फलाइँ भुंजइ दाऊणं जलयराईणं ॥ ९६ जम्मंतरम्मि दिन्नं भुंजिन्जई इत्थं जेण जीवेहिं । तेणं चिय दाऊणं भुंजंति सया वि जाणंता ॥ ९७ जा वीसमेई सत्था कयलीहरयम्मि सुटु रम्मम्मि । ताव य वियलियतेओ अत्थगिरिं पाविओ सूरो ॥ ९८ प्रोकारइ.व भीओ उद्धकरो दिणयरो वि सद्देहिं । अहवा वसणावडिओ सूरो वि हु कायरो होइ ॥ ९९ अत्यंगयम्मि सूरे तिमिरं दद्दूण सुंदरी भीया । अहवा मलिणस्सुदये सभयं चिय निम्मलं होइ॥१०० अंमीकए वि मरणे मरणभयं तह वि होइ जीवस्स । कडुओसहस्स पाणं' कड़यं चिय नियमओ" जेण॥ १ सुमरेवि" इहदेवं वयणं वत्थेण झंपियं" दीणा । संकोइयंगुवंगा सयणिज्जे संठिया सुयणु ॥ २ कारंति" सिवाओ वग्घा गुंजंति खुंखुवइ दीवो"घूधूं करेइ घूओ" सूसू वायंति वाउलिओ॥ ३ इत्यंतरम्मि सहसा पुब्बदिसा सुहृनिम्मला जाया । गहवइकरेहिँ छुत्ता होइ च्चिय इत्थि सवियासा॥ ४ . अमयमओ वि हु समओ बहुआसपरिहिओ वि नीरासो। रयणियरो वि हु निरओ अहकमसो उग्गओ चंदो ॥ सा.वि हु तं द₹णं अप्पाणं जीविय त्ति मन्नेइ । अमयमयदंसणेणं जीविजइ एत् को दोसो?॥ ६ मुक्के ये अईभयम्मी निद्दा सा लहइ नीसंहसरीरा । चिंतावराण जम्हा निद्दा दूरेण नासेइ ॥ निद्दा भुक्खा तुही सत्थं धम्मो य अत्थ कामो य । चिंताउरस्स सवे विरल च्चिय होंति लोयम्मि ॥ ८ रयणायरम्मि दिहे रयणतिगं पाविउं अणग्धेयं । सुविम्मि रयणिविरमे पडिबुद्धा सुंदरी तुट्ठा ॥ ९ न य रयणाइँ न उव(य)हिं लयहरयं चेव सुंदरी दहूं। अह चिंतेइ मणेणं किमयमसुयपुव्वयं दिढं? ॥११० कत्तो मे पुनाई रयणाणं जेहि" होज उप्पत्ती । किं वा मह रयणेहिं रमणीऐ रयणिविरमम्भि ॥ ११ स्मणाई बंधुयणो गेह-कलत्ताइयं च लोयाणं । सबाइँ वि विहलाई पाणच्चायम्मि नियमेण ॥ १२ जं. दिजइ धम्मेणं तं चिय वित्तं गणंति सप्पुरिसा । इयरे कम्मयरा इव कस्स वि रेसंमि संचंति ॥ १३ अहवा न याणिमो च्चिय अन्ज वि पावाएँ होसए किंचि । पाएण जओ कजे विग्यसहस्साइँ ढुक्कंति ॥ १४ मुमिणं च जं पहाए चिन्ताई विवज्जिएहिँ सत्थेहिं । दीसइ तं सव्वं(चं)चिय निद्दिढ सत्थयारेहिं ॥ १५ अणुहूय-दिव-चिंतिय विसमावत्थाहिँ तह य धाऊहिं । जं सुमिणं दीसेजातं जाणह निम्फलं सत्वं ॥ १६ वियलइ तारानिवहो सत्थामं रयणिचारिणो जंति । वासंति तंबचूडा सारसजुयलाइँ तु रुलंति॥ १७ करकरकरेंति काया चुहुचुहु विरुवंति चिडयसंघाया। थुवंति देवसंघा संझं वंदंति दियपवरी ॥ १८ आईए रविकिरणा फुरिया सव्वेसु पञ्चयगणेसु । अहवा सूरस्स करा पडंति पढमं महिहरेसु ॥ १९ सिहरंगए रविबिंबे उदयगिरी सुट्ठ पायडो जाओ। सूरो मत्थय धरिओ कुणइ चिय महिहरक्खाई॥१२० 1 A सी। 2 A तडविहागरुएहिं महुरेहिं; B तडिठियतरुविगविरुएहिं । 3 B भुजेज्जइ। 4 A एत्थ । 5 A atit; C the whole fourth quarter is not to be found in this Ms. 6 Barat 7A मलिणु। 8AC भयं । ) BCपासं। 10 Cनिम्बओ। 11 Bसुमरोवि; Cसुमरेमि। 12A जंपिड। 13 BC°यंगमंगा। 14 A सुयणा। 15 B पोकारंति। 16 A दीवी। 17A Bछु । 18 BCऊल। 19 A वुत्ता; C छिता। 20 Cरयनि। 21 A अत्ताणं। 22 A इत्थ । 23 A इ। 24 A अय'; B यय। 25 B निस्सह। 26 A चिंताउराण । 27 BC सुइणम्मि। 28 BCD उवही। 29 A किमियम: Cकिमेयम। 30A जत्थ। 31 A नयरीए; B रयणीए। 32 A सव्वाई। 33 A it is not to be found in this Ms. 34 BCसुइणं । 35A चिंताए। 36 B सुयणं । 87 B निफलं: Cनियफलं। 38 B चोरिणो। 39 BCक। 40 B°करंति; C°करिति । 41A °य । 42 B°वइणी। +3 B सिहरं; C सिहरि। 11B उयय। 10A मच्छर। 46 B°क्खाई। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162