Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 76
________________ १, ४६ - ६९] नाणपंचमीकहाओ - १. जयसेणकहा ३ निदो' घरवासो सग्गो पोढाण होइ महिलाण । इयरो नरगो' भणिओ सत्थेसु र्यं कप्पियों दो वि ॥ ४६ इय चिंतिय ताएँ' तही दाऊण धणं करावियं किं पि । जह नामं पि न गिन्हई राया खलु अन्नजुवईणं ॥ ४७ अणुदियहं भुंजंती नाणारूवाइँ विसयसोक्खाई । ने वि सा पावइ तित्तिं अग्गी इव इंधणभरेहिं ॥४८ अवणेइ पुदिनं नवं " पयच्छेइ तं पि थोवं तु । अंकण- मुंडण माई" पइदियहं " कुणइ लोयाणं ॥ ४९ अन्ताणं मनंती सवाण वि उत्तमं च हियएण । हीलई सवं पि जणं अङमयङाणपरिकलिया ॥ ५० इको विमओ धरिओ सोहं नासेइ जह व चंदस्स । जो पुण धरेइ" अट्ठ वि दूरे" च्चिय तस्स सोहाउ ॥ ५१ बहुहा खोई समओ जइ वि हु सूरेण संगमं कुणइ | चंदो व महींपुरिसो तम्हा मयवजणं कुणह ॥ ५२ समओ दोसासंगी समओ वकत्तणेण संजुत्तो । समओ जडयावासो जह चंदो एत्थे लोयम्मि" ॥ ५३ एवंविहमयकलिया धम्मक्खरवैज्जिया महापावा । नरयदुहं तिरियदुहं मरिऊणं पाविया सा उ ॥ ५४ एत्थेव " मणुयलोए पुक्खरदीवस्स पुर्वभायम्मि । खेत्तम्मि भरहनामे बहुजणवयसेविए रम्मे || ५५ आयारो व दुलंघो पायारो सुयणरक्खिओ" जत्थ । परिहाणं पिव परिहा परवसणावायरक्खणिया ॥ ५६ चसारिउ पउलीओ" णीइमग्ग व जीइ" गहिराओ । सुयणर्मंगो इव सरलो वित्थिन्नो हट्टमग्गो वि ॥ ५७ बेले व " रयणपुन्ना जत्थ य" दीसंति विवणिपंतीओ। णरवइणो* इव रम्मा बहुभूमा भवसंघाया ॥ ५८ सा इंदरिमाणा विबुहा हिवसंघसेविया निश्च । नयणमनाणंदयरी" नयरी पउमावई नाम ॥ तत्थ य वणिओ ईं-भो कुलचंदो नाम गुणगणावासो । तस्स य रम्मी भजी सुंदरि नौमि त्ति विक्खाया ॥ ६० अन्नं अणुराओ पइदियहं ** वड्ढिओ तहा ताण । जह तुच्छे वि विओए दुक्खं नरओवमं" होइ ॥ ६१ इंदुमईए जीषो विवरं लहिऊण कम्मचक्कस्स । दोहग्गकम्मसेसे सुंदरिगष्मम्मि उववन्नो ॥ ६२ जह जह वड्डइ गन्भो तह तह सुंदरिमणम्मि संतावो । अणुकूलो वि दुहाई देइ श्चिय कम्मदोसेणं ॥ ६३ दुर्द्ध" गन्भो तुरं" घुसिणं जणवंचणं च पिसुणत्तं । जाईऍ " पचएणं इट्ठाइँ हवंति जुवईणं ॥ ६४ अह अन्नया कयाई कुलचंदो गब्भदोसगयनेहो । सुंदरिमकयवियारं गेहाओ झत्ति णीणेइ " ॥ ६५ अह सुंदरी मणेणं चिंतइ अइतिक्खदुक्खसंतत्ता । अइवच्छलो वि नाहो कह जाओ सुहु निन्नेहो ? ॥ ६६ किंणो वि हु पणओ दुक्खं अइदारुणं मणे देइ । जो पुण मूलच्छिन्नो" मरणं” चिय कुणइ जुवईणं ॥ वरि मी जाओ" नेहो होऊणं भी पुणो दढं नट्टो । अहंसणं पि सेयं लोयरिउणो निहाणस्स ॥ अवराहेण विरतो दुक्खं न वि देइ वलहो जइ वि । अवराहेण विणा पुण जीयं" सो निश्चलं" लेइ ॥ ५९ ६७ A विविह° । स । । 1 A निष्चितो । 2 B नरओ । 3 Bप । 4 A कपिपा । 5 A ताय । 6 C तहिं । 7 B गेहइ । 8 A it is not found in this Ms. 9A अण्णाण । 10 11 C न य सा । 12 B C न विय। 13 C माई । 14 A पयहिअहं । 15 A हिलइ 16 B C य | 17 A धारइ । 18 B C दूरं । 19 A C खिज्झइ 20 B कला° । 21 B इत्थ । 22 A लोगम्मि । 23 A धम्मं कुरु । 24 B इत्थेव । 25 B मज्झ° 26 B C बहुजणआ । 27 B सुयणुरक्खिओ; C सुहपरिहिओ । 28 A पचलीओ । 29 B C जस्स । 30 A गुहिराओ । 31A 'जणो । 32 B ब्व । 33A व । 34 A B निववणो । 35 A भवय । 36 B इंदपुरि । 37 A Cणंदरी । 38 A इन्भी । 39 A कुरुवंदो C कुलवंतो । 40 A C भज्जा । 41 A सुंदरि 42 C नामत्ति | 43 B अन्नोन्नं । 44 A पवदियहं B पथदियहं । 45 A अइदोस्सहं । 46 A वुद्धं C दुद्धं । 47 A C गष्भोत्तरं; B गन्भोस्तं । 48 A वत्तणं; B C ° कत्तणं । 49BC जाईये | 50 A वराहं । 51 B नीणाए । 52 C मूलुच्छिन्नो । 53 A तरणं । 54 A it is not to be found in this Ms. 55 A अज्जाओ । 56 B C जो । 57 A कोय° । 58 B जीवं । 59 B C नित्तुलं । । Jain Education International ६८ ६९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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