Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 58
________________ प्रस्तावना सुभाषितो धार्मिक, नैतिक, सामाजिक अने व्यावहारिक प्रसंगो सर्जी आवश्यक विषयो उपर महेश्वरसूरिए एवा घणां सुभाषितो वापर्यां छे जे वांचवाथी तेमना सामाजिक, धार्मिक, नैतिक अने व्यावहारिक अद्भुत ज्ञाननो अने तेमनी अपूर्व वेधक दृष्टि तथा अटंग अभ्यासनो आपणने संपूर्ण परिचय मळे छे. प्रचलित कहेवतो, शिक्षासूत्रो अने समयानुकूल सुभाषितो उगले अने पगले वापरी तेमणे तेमना ते ते विषयना तलस्पर्शी अभ्यासथी आपणने ज्ञात कर्या छे. सुभाषितोना वारंवारना उपयोगथी आपणी सुरुचिने जराय प्रत्याघात थतो नए बतावे छे के तेमने कळानी दृष्टि पण सिद्ध हती. स्त्री मानसनो तेमने घणो ज बारीक अभ्यास हतो. नग्न सत्यो अने नक्कर घटनाओथी व्याप्त शिक्षासूत्रोनो उपयोग पण तेमणे आख्याने आख्याने छूटे हाथे कर्यो छे. घणुं घणुं लखीने ज कही शकाय तेवी बाबतो समयानुकूळ, प्रचलित, अने काव्यमय शिक्षासूत्र द्वारा लेखक कौशल्यपूर्वक बतावी शके तो ज अने त्यारे ज लेखक प्रतिभासंपन्न छे एम कही शकाय. उपर्युक्त तमाम कथनोने बराबर समजवा आपणे थोडा सुभाषितोने समजवा प्रयत्न करीए :क्रिया गमे तेवी लघु होय पण जो ते शुभभावपूर्वक करवामां आवी होय तो सुखने आपनारी थाय छेए बताववा लेखक अमृतांशनो दृष्टांत आपी कहे छे: - - "विसमविसेण मतं किन्नवि रक्खेइ अमसो ?" ॥ १११ ॥ स्त्रीओ माटे शोक्यनुं होवुं जेटलं आ संसारमां दुःखदायक छे तेटलं बीजुं कशुं दुःखदायक नथी ए सूचवा स्त्री मानसना अजोड अभ्यासी श्रीमहेश्वरसूरि प्रथम आख्याननी ३९ मी गाथामां कहे छे:"वरि हलिओ विहु भत्ता अनन्नभज्जो गुणेहिं रहिओ वि । मा सगुणो बहुभज्जो जइ राया चक्कत्रट्टी वि" || १।३९ ॥ भर्त्ता गुणवान अने चक्रवर्ती राजा होय पण बहु स्त्रीओ वाळो होय तो तेना करतां निर्गुण अने हळ हांकना खेडुत जो तेने एक ज स्त्री होय तो ते सारो. शोक्यनुं होवुं स्त्रीओ माटे दुःखनी परंपरानुं एक मोटुं कारण अनादि कालथी मनातुं आव्युं छे - खास करीने हिंदु संसारमां शोक्यनी प्रथा तरफनो महेश्वरसूरिनो सचोट अणगमो आपणने एवा अनुमान करवा तरफ लई जाय छे के ई. स. नी अगीआरमी सदीमा शोक्य करवानी रीत कांतो विशेष प्रचलित हती अथवा तेना तरफ घणो ज सबळ अने स्पष्ट अणगमो हतो. आटलं कहेवा छतां पण वाचकना मनमां रखेने शंका रही जाय एम मानी लेखक ते ज आख्याननी ४२ मी गाथामा बुलंद खरे पोकारीने कहे छे: Jain Education International २९ - "संकरहरियं भाणं गउरी लच्छी जहेब बंभागी । तह जइ पइणो इट्ठा तो महिला इयरहा छेली” ॥ १॥४२ ॥ शंकरने जेम गौरी, विष्णुने जेम लक्ष्मी अने ब्रह्माने जेम सावित्री इष्ट छे तेम पतिने महिला इष्ट होय तो ते महिला; नहि तो बकरी. अगीआरमी सदीनो, स्त्रीस्वातंत्र्यनो जब्बर हिमायती लेखक एथी पण आगळ व छे अने ए ज आख्याननी ४६ मी गाथामां अंतिम वाक्य उच्चारे छेः "निदो घरवासो सग्गो पोढाण होइ महिलाण । इयरो नरगो भणिओ सस्थेतु य कपिया दो वि” ॥ १।४६ ॥ प्रौढ महिलाओ माटे तो घरवास जो शोक्य विनानो होय तो ज ते स्वर्गतुल्य छे; अन्यथा शास्त्रमां तो तेने नरकतुल्य ज कहेल छे. स्नेह, वियोग, पुरुषस्वभाव, रंडापणुं, कन्याओनुं बाहुल्य, अने दारिद्र्य वगेरे उपरना श्रीमहेश्वरसूरिना मंतव्यो सुंदरी नामना स्त्री पात्रना मुखमां मुकेला वाक्यो द्वारा आपण जाणवा मळे छे: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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