Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 70
________________ प्रस्तावना ४१ छे के मूळ प्रतिना कागळनी अने चत्ररकीना कागळनी जूदी जूदी जातिनुं भान भाग्ये ज कोई वाचकने रहे के थवा पामे. बीजी प्रतिओमां होय छे तेम आ प्रतिमां पण हस्ताक्षरोनुं वैशिष्ट्य छे. प्रति सुंदर हालतमां छे अने हस्ताक्षरो पण मोतीना दाणा जेवा शुद्ध अने सरस छे. पाटण भंडारनी आ प्रति छे अने संपादनमां एनो मुख्य आधार लेवामां आव्यो छे कारण के ए घणी ज शुद्ध मालुम पडी छे. A प्रतिनो प्रान्तभाग इति श्री महेश्वरसूरिविरचितं पंचमीमाहात्म्यं समाप्तम् ॥ विक्रमादित्य संवत्सरात् १००९ वर्ष लिखितताडपत्रीयपुस्तकात जेसलमेरुमहादुर्गे संवत् १६५१ वर्षे भाषाढ शुक्ल ३ सोमवारे पुष्यनक्षत्रे तपागच्छाधिराजभट्टारक भी श्री ५ श्री श्री आनंद विमलसूरीश्वर शिष्य पंडित श्री श्री ५ विजय विमलगणिशिष्य शिरोमणिपंडित श्री ६ आनंद विजयगणि शिष्य बुद्धिविमलेन लिखितमिदं पुस्तकम् । भद्रं भूयात् । श्रीसंघस्य कल्याणमस्तु । श्रीरस्तु ॥ छ ॥ - B: आ ताडपत्रीय प्रति पाटण संघवीना पाडाना भंडारनी छे. भंडारना नवा लिस्टमां प्रतिनो पुस्तक नंबर १२३ छे. वडोदराना मुद्रित लिस्टमां आ प्रतिनो नंबर ४० छे (जुओ पृष्ठ ३३ ). प्रतिनी हालत सुंदर छे. पत्र संख्या २१४ छे. वचमां १९४मुं पत्र नथी. दरेक पत्रना प्रत्येक पृष्ठमा वधारेमां वधारे ६ अने ओछामां ओछी ३ पंक्तिओ लखेली छे. लिपि सुंदर छे; शुद्धि पण उत्तम प्रकारनी छे. प्रतिनी लंबाई, होळाई १३ ॥ x २ ईंच प्रमाणे छे. तेनो प्रान्त भाग नीचे प्रमाणे छे : संवत् १३१३ वर्षे चैत्र शुदि ८ खौ महाराजाधिराज श्री वीसलदेव कल्याणविजयराज्ये तन्नियुक्त श्रीनागडमद्दामात्ये समस्तव्यापारान् परिपंथयतीत्येवंकाले प्रवर्तमाने प्रह्लादनपुरे - (तपा ? ) गच्छे ललित सुंदरगणिन्थाज्ञानपंचमी पुस्तिका लिखापिता ॥ छ ॥ छ ॥ (नीचेनो भाग सी. डी. दलाले भूलथी नोंध्यो नथी लागतो) शाखा सहस्रमहिते वंशेऽस्मिनो (नो) सवालसाधूनाम् । आसीद् वीरकनामा वालिणिहृदयाधिदैवतं धीमान् ॥ १ ॥ श्रीमानानकुमारो मारतनुः श्री कुमारनामा व । जसडूशालिगसंज्ञौ, तत्तनयाः पूर्णचन्द्र इति पञ्च ॥ २ ॥ भगिनी विनयाचारशालिनी गुणमालिनी । पुण्यश्रीरभवत् तेषामिन्द्रियाणां सुधीरिव ॥ ३ ॥ काली शालीनविनया श्रीकुमारहृदीश्वरी । असूत सून (नु ) मन्यूनवपुषं बहुदाभिधम् ॥ ४ ॥ आम्बो धनाम्बसावथजे सलगुणदाव सूत विजयमतिः । तद्भार्या स्वथ केल्हीं राजीं च सरस्वतीं ससोमलताम् ॥ ५ ॥ पद्मश्रीरिति निश्छद्मचरिता दुरितोज्झिता । द्वितीया बहुदाकस्य प्रियाऽस्त सुतानिमान् ॥ ६ ॥ वाहढं चाहढं चाम्रदेवसा - (धु ?) कसंज्ञकौ । गांगदेवं तथा जालू, तनयां विनयानताम् ॥ ७ ॥ पद्मश्री -लतां स्वकायवयसां विज्ञाय वाक्यैर्गुरोः, पुण्यश्रीमनिशं समृद्धिमधिकं नेतुं विसर्पन्मतिः । नशा [ना] मृतपानतोऽस्त्यधिकमित्याधाय चित्ते मुहुः, सद्वर्णावलिशालिका लेखितवती यत् पञ्चमीपुस्तकम् ॥ ८ ॥ इदं ललितसुन्दर्यै गणिन्यै गुणशालिनी । सच्चरित्र पवित्राये, सा ददौ सम्मदोदयात् ॥ ९ ॥ C : - आ ताडपत्रीय प्रति पाटण संघवीना पाडाना भंडारनी छे. नवा लिस्टमां आ पोथीनो अनुक्रमांक ूछे. वडोदराना मुद्रित लिस्टमां आ प्रतिनो नंबर २९ छे (जुओ पृष्ठ ३०). प्रतिनी हालत मध्यम छे. पत्रसंख्या २०७ छे. अंतना २०८ मा पत्रनी प्रथम पृष्ठिमां ग्रंथनुं पूर्ण थवुं अने बीजी पृष्ठिना अर्धभागमां नाना अक्षरोथी ग्रंथ लखनार - लखावनारनी प्रशस्ति लखायेली होवानुं ते ज पत्रना नाना अने जीर्ण बे टुकडा उपरथी जाणी शकाय छे. जो के प्रतिनी हालत जोतां अन्त्य पत्र पण अखंड रहेवुं जोइए पण अन्त्य पत्रनी द्वितीय पृष्टिमां लखायेल प्रशस्तिने कोई उठाउगीरे द्वेषने लीधे घसी नाखवाथी पत्र अत्यंत नागपं० प्र० 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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