Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 71
________________ नाणपंचमीकहाओ पातळु अने जीर्ण यई गयु अने परिणामे अत्यारे फक्त बेज नाना टुकडा मळे छे. ए नाना टुकडानी बीजी बाजु प्रशस्तिना घसेला भागमा थोडाक अस्पष्ट अक्षरो जणाय छे. प्रतिनी लंबाई, पहोळाई १४४२६ इंच प्रमाण छे. प्रतिनी लिपि जोतां B प्रति करतां आ प्रति लगभग एक सो वरस वधु प्राचीन छे तेम अनुमान करी शकाय. आ प्रतिना पाठांतरोमां पाठांतर पछी प्रतिनी संज्ञा C पछी जे स्थळे खस्तिकनुं निशान क्यु छे ते पाठांतर मूळ प्रतिमां लखायेलं नहि पण प्रतिना पाठने भूसीने पाछळथी करवामां आवेलुं छे तेम समजq. D:- आ प्रति भावनगरथी मेळवामां आवी हती. तेनी लंबाई, पहोळाई ९.७४४ . १ इंच छे अने बन्ने बाजु लखेला कुल्ले पंचावन पृष्ठ छे. बन्ने बाजुए .९ ईंचनो नानो हांसीओ राखबामां आवेल छे. बीजी प्रतिओनी माफक आ प्रतिमां पण हस्ताक्षरोनी क्वचित् कचित् विलक्षणता जोवामां आवे छे. प्रति घणी ज सुंदर हालतमा छे अने हस्ताक्षरो A प्रतिनी माफक मोतीना दाणा जेवा शुद्ध अने सुवाच्य छे. आ प्रति मने घणी ज मोडी मळेली तेथी तेनो उपयोग जेवो जोईए तेवो करी शकायो नथी. आ प्रति A प्रतिने घणे मोटे भागे अनुसरनारी छे एटले A प्रतिना पाठांतरोमां मने ज्यां संदिग्धता हती त्यां ज आ प्रतिनो उपयोग करी पाठांतरोनी पसंदगीमां संदिग्धता टाळवा में यथाशक्य यत्न करेलो छे. पाठांतरो पार्वातरोनी पसंदगीमां सर्व प्रथम ध्यान छंद उपर आपवामां आव्युं छे. पाठांतर अर्थनी दृष्टिए गमेतेटलुं बंध बेसतुं होय परंतु तेथी छंदोभंग थतो होय तो तेने जतुं करवामां आव्युं छे अने पादनोंधमां तेने टांकी तेनी नोंध लेवामां आवी छे. पाठांतरो बधाज नोंधवामां आव्या छे. व्याकरण शुद्धिने पण लगभग एटलुंज प्राधान्य आपवामां आव्युं छे. आ बे दृष्टिओ जे पाठांतर थी सचवाई तेने मूळमां खीकारवामां आव्यु छे अने बीजाने पादनोंधमां ते ते प्रतिनी संज्ञा पूर्वमा मूकी जणाववामां आव्या छे. अर्थदृष्टिने त्रीजा प्रकारमहत्त्व आपवामां आव्युं छे. जे प्रतिना पाठांतरथी आ त्रणे य दृष्टिओ अव्याहत रही ते पाठांतरने, कोई पण प्रति तरफ मोह राख्या विना, अपनावी लीधुं छे. बधी प्रतिओना पाठांतरो अमक एक पाठ बाबत संमत होय परंतु मने पोताने अर्थमेळ न लाग्यो तेवा स्थळे में शंकाचिह्न मूकेल छ; अथवा पाठ सूचवी में त्यां आवा () कौंसमां ते पाठ मूक्यो छे. बधी प्रतिओना पाठांतरोने ध्यानमा लीधा पछी पण छंदनी दृष्टिए अक्षर के अक्षरो ज्यां ज्यां मने खूटतां लाग्यां त्यां त्यां आवा [ ] कौंसमां ते ते अक्षरो में केवळ सूचना रूपे बताव्या छे. कोई नवी प्रति मळी आवतां मारा सूचित पाठो खोटां सिद्ध थाय एवी पूरती शक्यता छे. 'य' श्रुतिनी बाबतमां अने 'न' के 'ण'नी बाबतमा प्रतिओना पाठांतरोनी बहुमति उपर ध्यान आपवामां आव्यु छे. ए बे बाबतोमां कोई एक नियम आयंत अखत्यार करवामां आव्यो होय एम नथी. प्राकृतभाषामां लखायेल जैन कथा साहित्यनो ढूंक परिचय प्राकृत भाषामा लखायेला जैन कथा साहित्य विषे एटलं बधुं कहेवामां आव्युं छे के एना विषे अहिं । पुनरुच्चारण करवु उचित नथी. ए विषे विगतवार, अभ्यासपूर्ण माहिति मेळववा ते विषयना शोखीन जिज्ञासुओए आचार्य जिनविजयजीनो 'कुवलयमाला' नामनो लेख,“ सिंघी जैन ग्रंथमालामा प्रसिद्ध थयेल, खसंपादित हरिषेणना 'बृहत् कथाकोश'मांनी प्रो. डॉ. ए. एन. उपाध्येए लखेल विस्तृत प्रस्तावना, प्रो. डॉ. घाटगेनो 'नरेटीव लिटरेचर ईन जैन माहाराष्ट्री' नामनो लेख," तेम ज वर्गस्थ मो. द. देसाई कृत 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास', अने छेल्ले आ बधी माहितिनी पूर्व भूमिकारूप थई पडेल जोहानीस हर्टटनो ९८ वसंत रजत महोत्सव स्मारक ग्रंथ-वि. सं. १९८४, पृ. २५९-२८४. ९९ भां. ओ. री. इ. पूना, एनाल्स, वॉ. १६; भाग १ - २; १९३५. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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