Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 69
________________ नाणपंचमीकहाओ साधुओ करे. एने माटे नियमो, विधि, विधानो, बंधनो वगेरे ते घडी काढे. श्रावकसंघना पण नियमो जुदा छ. छतां आ बन्ने वच्चे अंतर छे अथवा भिन्नता छे एवं जराय नथी. कारण के अमुक साधारण बाबतो एवी छे के जेथी साधुसंघनो दाब श्रावकसंघ उपर अने श्रावकसंघनो अंकुश साधुसंघ उपर बराबर रीते जळवाइ रहे. बन्ने वच्चे सुंदर सहकारने संपूर्ण अवकाश छे. आ व्यवस्थाना उत्पादक भगवान् महावीर छे एम पण नथी. भगवती जेवा अंगसूत्रोमां पार्थापत्ययीओनी वातो आवे छे. केटलाक पार्थापत्ययीओ भगवान् महावीर पासे जतां खचकाय छे; केटलाक प्रश्नो करे छे; केटलाक तर्क-वितर्को करे छे. भगवान् एनुं समाधान करे छे अने अंते ए पार्थापत्ययीओ भगवान्नी साधुसंस्थामा प्रविष्ट थई जाय छे. अने साधुसंघ वळी पाछो जुदा रूपे दृश्यमान थाय छे. आ बधी व्यवस्था एक राजतंत्र जेवी आपणने लागे. आ उपरथी आपणे एम समजी शकीए के ए व्यवस्थाना बीज रोपनार केटला विचक्षण अने दीर्घदृष्टिवाळा हता! एकला भगवान् महावीरना ज वखतमा १४००० हजार श्रमणो अने ३६००० श्रमणीओ हती. साधुसंस्थामा स्त्रीओने पण समान कक्षामां मुकवानुं मान भगवान्ने ज फाळे नथी जतुं कारण के पार्श्वनाथना समयमां पण ए प्रथा प्रचलित हती. अलवत्त, भगवान् महावीरे घणी घणी बाबतोमा जुदो ओप, जुदा रूप, वगेरे वगेरे आप्यां छे ए निर्विवाद छे. भगवान् बुद्ध स्त्रीओने समान स्थान आपवानी बाबतमा महावीरथी कंईक अंशे जुदो मत धरावता हता; परंतु भगवान् महावीरे जोरशोरथी स्त्रीओने पण स्थान आप्यु, तेथी भगवान् बुद्धने पण स्त्रीओने समुचित स्थान आपq पड्यु. आ बधी रीते तपासतां जैनदर्शनमां चतुर्विध संघD मान अने स्थान अपूर्व छे. एटले प्रस्तुत ग्रंथमा श्री महेश्वर सूरिए करेली श्री संघनी स्तुति जराय अस्थाने नथी एटलु ज नहि परंतु आवश्यक छे. ग्रंथ संपादनमा उपयोगमा लीधेली प्रतिओनो परिचय A:- जेसलमीर भांडारमांनी वि. सं. १००९नी सालमां लखायेल ताडपत्रीय प्रति उपरथी आ प्रति लखवामां आवी छे. प्रतिना प्रान्तभागमां जणाववामां आप्यु छे तेम तपागच्छना बुद्धिविमळ नामना कोई सूरिए वि. सं. १६५१नी सालमां आषाढ शुक्ल तृतीयाने दिने सोमवारे ज्यारे पुष्य नक्षत्रमां चंद्र हतो त्यारे आ प्रति लखीने पूरी करी हती. तेनी लंवाई, पहोळाई ८.८४ ४.२ ईंच छे. अने बन्ने बाजु लखेला कुल्ले बावन पृष्ठ छे. दरेक पृष्ठमां साधारण रीते सत्तर पंक्तिओ छे अने दरेक पंक्तिमा एकंदर बेंतालीस अक्षरो छे. दरेक पृष्ठनी बन्ने बाजुए. ८ ईंचनो नानो हांसीओ राखवामां आवेल छे अने मध्यमा अनेकविध भूषाचिह्नो छे. आठमा पृष्ठना हांसीआमां ६७ थी ७१ गाथाओ टांकवामां आवी छे. मूळप्रतिनी गाथाओनो क्रमांक तो जेमनो तेम सीधे सीधो चाल्यो जाय छे. एटले हांसीआ वाळी गाथाओ कोई बीजी प्रतिमा जोईने कोईए त्यां नोंधी होय एवो संभव छे. पारस्परिक संबंध तपासतां ग्रन्थवस्तु साथे तेनो मेळ होवाथी में ए गाथाओने मूळमां ज लई लीधी छे. आ पृष्ठना हांसीआमां एक पाठांतर पण नोंधवामां आवेल छे. जे शब्दो के अक्षरो भूलथी के प्रमादथी रही जवा पाम्या होय अगर काळदोषे भूसाई जवा पाम्या होय तेने हांसीआमां कोईए नोंध्या छे, मूळ प्रतिना अक्षरो करतां आ अक्षरो जूदा पडता होई जेना हाथमां अगर मालिकीमां आ प्रति आवी होय एणे ए बधा नोंध्या होय एवी शक्यता छे. जे जे स्थळे अक्षरो भूसाई जवानी संभावना जणातां ते ते स्थळे कोईए कागळनी चबरकी चोटाडी तेना उपर मूळ प्रतिना अक्षरो सरसरीते लखी प्रतिने शीर्णविशीर्ण थई जतां बचावी लीधी छे. आ चबरकी चोंटाडवानुं कार्य एटलु दक्षतापूर्वक करवामां आव्यु ९. भगवतीसूत्र, १, ९, २, ५, सूत्रकृतांग, २, ५, ५राजप्रश्नीय, २१४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162