Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 61
________________ २ नाणपंचमीकहाओ "बालाणं तरुणाणं लग्गइ चेट्टा सुहेण लोयाणं । कीरति नेय जेणं इह कन्ना पक्कभंडाणं" ॥ १।२४४ ॥ प्रियमेलिकानो स्पर्श ज्यारे द्रमकने बाळे छे त्यारे द्रमक विचार करे छे के आवी रूपवती कन्या अत्यारसुधी अविवाहित रहे नहि कारण के पाकेली अने खादु रस्तामां आवती बोरडी कोई पण छोडे नहि : न हु पहि पक्का बोरी छुट्टइ लोयाण जा खजा ॥ १।२८६ ॥ प्रियभेलिकाने मुकीने- छोडीने द्रमक पण चाल्यो गयो ते वखते प्रियमेलिका पोताना स्त्रीत्वने धिक्कारे छे. एनी उपर फीटकार वरसावे छे ते वखते लेखक तेनी पासे बोलावे छे के स्त्रीनो भव एज दुःखD कारण छे; तेमां पण बाळविधवापणुं अने भाग्यहीनता ए तो विशेष दुःखदायक छे. सूरिश्री द्रष्टांत आपी समजावे छे के ते तो गुमडा उपर फोल्लो थाय तेना जेवू छे. जुओ : "इस्थित्तं चेव दुहं तत्थेव य अइदुहं च दोहगं । रंडन्स बालाए जह पिडओ गंडउवरम्मि" ॥ १।२९९ ॥ एके बीजा पासेथी सांभळ्यु; वीजाए त्रीजाने कडं अने त्रीजाए पोताना घरनु उमेरी मीठं, मरचुं, भरी किंवदन्तीने बहेती मुकी. ए किंवदन्तीमा तथ्य जराय होतुं नथी, छतां निर्दोष माटे तो ए खरेखर प्राणघातक निवडे छे. एटले एवी किंवदन्ती अथवा लोकापवाद तरफ कथालेखक पोतानी घृणा दाखवतां कहे छे के माणसो एक बीजा उपर विश्वास मुकी निर्दोषने व्यर्थ दंडे छे. जेवी रीते आकाश रंग विनानुं होवा छतां लोको तेने नीलवर्गु कल्पे छे. जुओ: "निहोस पि हु लोओ निंदइ अन्नोन्नवयणपञ्चइओ। वनरहियं पिजेणं भगइ जणो नीलमायासं"॥ १३५५ ॥ लाकडे मांकडं वळगाड्यु होय त्यारे अथवा एक बीजानी पसंदगीने जराय लक्ष्यमा राखवामां आवी न होय ते वखते, दंपती - जीवन दुःखदायक तो बने ज छे; पण ए उपरांत हास्यपात्र पण बने छे ए तरफ अंगुलिनिर्देश करतां कथालेखक जयसेन अने शीलवतीना योग्य संयोगने अनुलक्षी कहे छे के रूप - लावण्य वगेरेमां एक बीजाथी जुदा पडतां युगलोनो संयोग कष्टदायक ज नहि पण हळमां जोडेल ऊंट अने बळदना संयोगनी माफक दुःख अने अशोभाकारक पण बने छे. जुओ: "मिहणाणं संजोगो रूवाइविलक्खणाण अइदरं । दुक्खाऽसोहा-जगओ उदृबलिहाण व हलमि" ॥ १४०६ ॥ आगळ चाली विद्वान लेखक याचनानुं माहात्म्य समजावतां द्रष्टांत आपे छे के जेवी रीते कर्णराजाए विष्णु भगवानने शरीरनुं बख्तर पण आप्यु हतुं तेवी रीते याचना कोई करे त्यारे तेनी योग्यतायोग्यतानो विचार सरखो पण नहि करवो जोइए. जुओ: "अहवा जुसमजुत्तं एयं न गणंति पत्थणे गरुया। दिन्नं कन्नेग जओ विवण्हु)स्स सरीरकयचं पि" ॥ ११४३३ ॥ अहिंआ एटलं जणावq जरूरनुं छे के कर्णे पोतानुं शरीर विष्णुने नहि पण इन्द्रने बख्तररूपे उपयोग करवा आप्यु हतुं एटले “ विण्ड" शब्दने बदले “जिण्हु " नामनो इन्द्रवाची शब्द पाठांतररूपे कल्पवो जोईए. बीजी प्रतिओ न मळे अने आ कल्पनाने समर्थन न मळे त्यांसुधी निश्चितरूपे न कही शकाय. पत्नी, लक्ष्मी, मित्र अने शास्त्रनुं फळ शुं छे ए संबंधे लेखके वापरेल एक सुभाषित खूब ज अनुभवपूर्ण छे. तेओ कहे छे के पत्नीनुं फल रति अने पुत्र, लक्ष्मीनू फळ दान अने भोग, मित्रनुं फळ निवृत्ति अने शास्त्रोनुं फळ धर्म छे. जुओ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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