Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 50
________________ प्रस्तावना २१ बने छे. अने ए व्हाने प्रेम चालु राखे छे. धनमित्रने नंदीमित्र नामनो एक मित्र हतो. शहेरमां एक बीजा समाधिगुप्त नामना साधु आवे छे जे जैनधर्मना सिद्धांतोनुं प्रतिपादन करे छे. माणसोनो कौशिक तरफ अभाव थतो जाय छे (संधि १९). नंदीमित्र धनमित्रने रात्रिभोजननो त्याग करवान कहे छे. धनमित्र अने अमात्यपुत्री कौशिक पासे जवानुं हजु चालू ज राखे छे वज्जोयरे कौशिक पासे न जवान लोकोने समजाव्युं हतुं तेथी कौशिक तेना तरफ तिरस्कारनी लागणीथी जुए छे अने ए ज रीते मरण पामे छे. तेथी तिलकद्वीपमा अशनिवेग नामनो राक्षस बने छे. समय जतां राजा खातर वज्जोयरे पण लडाइमां मरीने तिलकद्वीपमां यशोधन तरीके जन्म ले छे. नंदीमित्र पण अनशन करी पंडित मरणे मरे छे अने विद्युत्प्रभ नामे देवीना राजा-स्वामी-तरीके सोळमा खर्गमां उपजे छे. धनमित्र, तेना मा-बाप, कीर्तिसेना वगेरे जैन धर्म पाळी शुद्धि मेळवे छे. माता ६७ दिवस सुधी श्रुतपंचमी व्रत पाळे छे. धनदत्त अने तेनी पत्नी हस्तिनापुरमा अवतरे छे. तेमनो पुत्र के जे गौड तरफ गयो हतो ते विजळीथी मरण पामी गजपुरमा भविसयत्तरूपे अवतरे छे. गुणमाला अने कीर्तिसेना बन्ने धनमित्रना मरणथी दुःखी थाय छे. गुणमाला मरीने भूपाल राजानी पुत्री तरीके अने कीर्तिसेना त्रिलोकद्वीपमा भविष्यानुरूपारूपे अवतरे छे. वज्जोयर के जे यशोधन तरीके अवतर्यो हतो तेने असुररूपे अवतरेल कौशिक खाई जाय छे. जे पंक्तिओ दिवाल उपर लखवामां आवी हती ते धनमित्रना मित्र अच्युतखर्गना स्वामी नंदीमित्रे लखी हती ( संधि २० ). भविष्य हवे राज्यकारभार सुप्रभने सोंपी दीक्षा लेवा इच्छा धरावे छे. पोतानी माता कमलश्रीने, भूपालने, धनपतिने, अने प्रियसुंदरीने ते बोलावे छे. सुप्रभ पिताने तेम करवा ना पाडे छे अने छेवटे राज्यपाट पोताना नानाभाई धरणिंदने आपवा अने बीजा बधा भाइओ सलाहकार तरीके वर्त्तशे एम कही नाना भाईने राज्य सोंपे छे. भविष्य, कमल श्री अने भविष्यानुरूपा प्रव्रज्या ग्रहण करे छे (संधि २१). सुमित्रा, धनपति अने हरिदत्त विलाप करे छे. कमला अने भविष्यानुरूपा घोर तप करीने अने अनशन करी मरण पामी दसमा देवलोकमां प्रभाचूड अने रत्नचूड तरीके जन्म ले छे. भविष्य पण तेम करी ते ज देवलोकमां अवतरे छे. तेओ बधा एक वखत पोताना संतानो शुं करे छे ते जोवा पृथ्वी उपर आवे छे. मरीने प्रभाचूड गंधर्वोना खामीना पुत्ररूपे अवतरे छे. तेनुं नाम सुवसुंधर छे. रत्नचूड अने हेमंजय मरीने सुवसुंधरना पुत्रो तरीके जन्मे छे. हेमंजय श्रीधर पासे दीक्षा ले छे अने मोक्षे जाय छे. श्रुतपंचमी व्रतना प्रतिपालनथी भविष्य चोथे भवे केवी रीते मोक्षे जाय छे ते कवि धनपाळ अंतमा जणावे छे ( संधि २२). विशेष नामोनुं साम्य । गजपुरनो राजा भूपाल, धनपति, धनपतिनी पत्नी कमलश्री, ए बन्नेनो पुत्र भविष्यदत्त, धनपतिनी बीजी पत्नी नामे सरूपा, सरूपाथी धनपतिनो बीजो पुत्र नामे बंधुदत्त, साध्वी सुव्रता, भविष्यनी पत्नी भविष्यानुरूपा, मणिभद्र, मनोवेग विद्याधर, वासव ब्राह्मण -पुरोहित अने तेनी पत्नी सुकेशी तथा सुवक्र अने दुर्वक्र नामना बे पुत्रो तथा त्रिवेदी नामनी पुत्री अने तेनो पति अग्निमित्र, रविप्रभ (सुकेशी मरीने रविप्रभ थाय छे); भविष्यानुरूपाथी भविष्यनो पुत्र सुप्रभ, विमलबुद्धि नामना मुनि, अमात्यपुत्री कीर्तिसेना, अरिपुरनो राजा प्रभंजन, अरिपुरनो धनदत्त शेठ, तेनो पुत्र धनमित्र, धनमित्रनो मित्र, बाल तपखी कौशिक, मुनि समाधिगुप्त, अशनिवेग (कौशिकनो भावि जीव ), प्रभाचूड ( कमलश्रीनो भावि जीव ), रत्नचूड (भविष्यानुरूपानो भावि जीव) इत्यादि इत्यादि विशेष नामो पुरतुं भविष्यदत्त आख्यान अने भविष्यदत्त कथा ए बन्ने वच्चे समान प्रसंगो सहित साम्य छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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