Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 55
________________ नाणपंचमीकहाओ ज्ञानभंडारोमा साचववामां आवता पुस्तकोनी शाहीमां गुंदर पडतो होवाथी अने चोमासानी ऋतु भेजवाळी होवाने कारणे चोमासामा जो प्रतिओने उघाडवामां आवे तो प्रतिना पानाओ एक-बीजा साथे च्होंटी जवा पूरो संभव छे. आ माटे प्रायः चोमासामा ज्ञानभंडारो बंध राखवामां आवे छे; अने प्रतिने बराबर बांधी मुकी देवामां आवे छे. आ बंधनक्रियाने लगती एक कहेवत पण जैन मुनिवर्गमां प्रचलित छे “ पुस्तकने शत्रुनी जेम मजबूत बांधवू." पुस्तकरक्षाने माटे घणी घणी प्रतिओना प्रान्तभागमां निम्नोक्त श्लोक जेवा प्रकारना अनेक श्लोको लखवामां आव्या होय छे. जेमके : अग्ने रक्षेजलाद्रक्षेन्मूषकेभ्यो विशेषतः । कप्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥ उदकानलचौरेभ्यो मूषकेभ्यो हुताशनात् । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥ वर्षाऋतुमा ज्ञानभंडारोमा पेसी गयेल भेजवाळी हवा पुस्तकोने बगाडे नहि अने पुस्तको सदा पोतानी स्थितिमा रहे ते माटे तेने ताप खवाडवो आवश्यक छे. ज्ञानभंडारो चोमासामां बंध होई तेनी आसपास धूळ, कचरो एकठो थाय ते पण स्वाभाविक छे. आ कचरो साफ न थाय तो उधईनो डर रहे छे. चोमासुं पुरूं थई रह्या पछी आ बधुं करवा माटे वहेलामां वहेलो समय पसंद करवो जोईए. अने एटला माटे कार्तिकशुक्ल पंचमी वधारे उपयुक्त छे. कारण के प्रखर ताप अने भेजवाळी हवा ए बन्नेनो अतिरेक आ समये होतो नथी. एक शहेरमा एक करतां वधारे भंडार पण होवा संभव छे. भंडार खूब ज विशाळ होवानी पण शक्यता छे. एटले प्रतिओन संमार्जन काम एक बे भाडुती माणसोथी थाय एम पण जणायुं नहि तेथी धर्माचार्योए कार्तिक शुक्लपंचमीने एक धार्मिक तहेवार तरीके अने ते पण ज्ञानपंचमी तरीके नियत करी ते दिवसे प्रतिओना पूजन, अर्चन, मार्जन अने लेखन, लिखापन करवा, कराववानुं अने तेम करे तो महत् पुण्य उपार्जन करवान प्ररूप्यु. ज्ञानपंचमी माटे अनेकविध तपो योजायां. तेना उत्सव अने उजमणाओ योजाया. तेनी अनेक जातनी पूजाओ रचाई, गवाई अने तेने लीधे एवं वातावरण बनी गयु के करोडो भवना पाप एक ज पदना के एक ज अक्षरना ज्ञानथी बळी शके छे एवं मनावा लाग्यु. आवा जैन ज्ञानभंडारो पाटण, जेसलमीर, खंभात, लींबडी अने कोडाय वगेरे स्थळे छे. आ भंडारोमां एकला जैन पुस्तकोनो ज संग्रह नथी. एना स्थापकोए अने रक्षकोए दरेक विषय तेम ज दरेक संप्रदायना पुस्तको एकठा करवानो प्रशंसनीय प्रयत्न कर्यो छे. घणी वखत एवं बन्याना दाखलाओ मोजूद छे के ज्यारे अत्यंत उपयोगी जैनेतर ग्रन्थो जैन ज्ञानभंडारमाथी मळी आल्या होय. पुस्तको केवळ कागळ उपर ज नहि परंतु ताडपत्र अने कापड उपर पण लखायेला मळी आव्या छे. अग्नि, भेज, शरदी, उधई, वांदा, ऊंदर, कुदरती विघ्न अने धर्माध यवनोना नाशकारक पंजामाथी ज्ञान प्रत्येनी जीवती जैनभक्तिने परिणामे बची गयेला आजे पण एटला बधा भंडारो छे के जेमणे सेंकडो पाश्चात्य अने पौर्वात्य विद्वानोने अने छापखानाओने पुष्कळ खोराक पूरो पाड्यो छे अने हजी पण पाडशे. ज्ञान आपवामां मुख्य साधन प्रति के पुस्तक अने ए प्रतिओने संग्रहवामां मुख्य स्थळ एटले के ज्ञानभंडारनी अगत्य समजी, स्वीकारी ज्ञानप्रिय आचार्योना सदुपदेशथी के पोतानी स्वाभाविक इच्छाथी अनेक राजाओए, मंत्रिओए तेमज धनाढ्य श्रेष्ठीओए तपश्चर्याना उद्यापन निमित्ते, आगमश्रवणना कारणे, पोताना कल्याण माटे के पछी पोताना खर्गवासी आप्तजननी स्मृतिमां नवा पुस्तको लखावीने के जूनानी प्रतिकृति करावडावीने अथवा कोई जूना ज्ञानभंडारो वेचतुं होय तो तेने वेचाता लईने पण ज्ञानभंडारोनी स्थापना करी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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