Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 43
________________ नाणपंचमीकहाओ खिन्न नहि थवानी सलाह भविष्यदत्त आपे छे. बन्नेए गजपुर जवा विचार कर्यो. आ वखते पण भविप्यदत्तने छळकपटथी एकलो मूकी अने भविष्यानुरूपाने साथे लई ते चालतो थयो (गाथा १२६-१५०). पहेली वखत करतां आ वखतनुं दुःख कान्ताना विरहने लई तेने विशेष अस्.ह्य लाग्यु. चंद्रप्रभ जिनालयमा भविष्यदत्त पाछो गयो अने दुःख भूलवा प्रयत्न कर्यो. आ तरफ भविष्यानुरूपाए पोतानी चारित्र्यरक्षा करवानो पाक्को विचार कर्यो. अने आ जन्ममां कान्त साथे मारो मेलाप नहि थाय तो हुँ जीवनपर्यंत आहार नहि लउं एवो संकल्प कर्यो. "जह मह कंतेण समं मेलावो नत्थि एत्थ जम्मम्मि । ता भुंजामि न सययं आहारं जावजीवं पि"॥ १०१५७ ॥ बंधुदत्त घरे पहोंच्यो. राजाने योग्य भेट वगेरे मोकलावी अने लोको अंदरोअंदर कहेवा लाग्या के धनपति भाग्यशाली छे के तेनो पुत्र आटलु बधुं धन कमाईने लाव्यो. सार्थ आव्यो एवा समाचार सांभळी कमळश्री पण पोताना पुत्रनो वृत्तांत मेळवबा गई; पण कशा समाचार नहि मळवाथी, रोती ककळती, सुव्रता पासे आश्वासन मेळववाना हेतुथी गई ( गाथा १५१ - १७५). सुत्रता कमलश्रीने कहे छे के जे अवधि तने कही छे ते हजु क्यां पूरी थई छे? माटे तुं शोक न कर. बंधुदत्ते कयुं के ते तो लोभनो मार्यो रत्नदीप गयो छे पण उचाट फीकर करवा जेवू कशुं नथी कारण के ते पाछो तो आवशे ज. मणिभद्र नामनो यक्ष पोताना मालिकनी आज्ञा संभारी द्वीपतिलकमां चंद्रप्रभ जिनालयमां आव्यो. मणिभद्र यक्षना पूछवाथी पोतानो तमाम वृत्तांत भविष्यदत्ते कही संभळाव्यो. माता साथे तेनो संयोग पोते करावी देशे एम मणिभद्र यक्षे तेने कह्यु. भविष्यदत्त ते उपरथी कहे छे “उपकार करवा समर्थ होय तेने अथवा सांभळीने जे दुःखी थाय तेने दुःख कहेवू जोईए. बीजाने कहेवाथी शं?" । 'जो उवयारममत्थो दुक्खं तस्सेव होइ कहणीयं । . जो वा सोउ दुहिओ अगस्त न किंपि कहिएग" ॥ १०११८८ ॥ मणिभद्र पाछो प्रत्युत्तर आपे छे के विशेष बोलबाथी शुं लाभ ? कार्य विनानुं वचन, धर्मविनानो मनुष्यजन्म, निरपत्य कलत्र-ए त्रणेय लोकमां लायक वस्तु नथी. "वयणं कजविहणं धम्मविहणं च माणुसं जम्म। निरवच्चं च कलत्तं तिन्नि वि लोए ण अग्घंति"॥ १०॥१९१ ॥ भविष्यदत्तने यक्ष घरे पहोचाडे छे. माता कमलश्रीए बंधुदत्त जे कन्या लाव्यो हतो तेनो वृत्तांत भविष्यदत्तने कह्यो अने आजथी पांचमे दिवसे बंधुदत्त अने तेनो लग्नसमारंभ थवानो छे ते पण कडुं. कन्याना चारित्र्यवर्णनथी भविष्यदत्तने संतोष थयो (गाथा १७६ - २००). भूपाल राजा पासे जई भविष्यदत्ते भेट-नजराणा वगेरे धां. राजा बहु संतुष्ट थयो. बंधुदत्तना लग्नमां जवानी माता कमलश्रीए भविष्य पासे संमति मागी. कन्या पोतानो देह तजी देशे एम धारी भविष्ये पोतानी नाममुद्रा लई जईने तेने आपवी एम माताने कडं. त्यांसुधी पोते अप्रकट रह्यो. बराबर लग्नने दिवसे भविष्यदत्ते भूपाल राजा पासे जई कडं के धनपति वगेरेने बोलावो कारण के बंधुदत्त साथे तेने मोटो विवाद करवो छे. आ कारण बहु प्रतीतिजनक नथी लागतुं. विवाद शामाटे? अने एमां बंधुदत्तनुं शुं काम? ज्यारे 'भविस्सयत्त कहा'मां बंधुदत्ते परणवा धारेल कन्याना संबंधमां पोताने वांधो छ एम भविष्य जणावे छे. अने ए कारण कांइक वधारे पुष्ट लागे छे. आ रीते पण 'भविस्सयत्त कहा'एना शैथिल्यामावने कारणे पाळथी लखाणी होय. राजाए बधाने बोलाव्या अने त्यां भविष्यदत्त के जे अल्यारसुधी अज्ञात हतो तेने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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