Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 45
________________ नाणपंचमीकहाओ "वजनदृ गेय अइरम्मं तह य गंधमाईयं । हरइ मणं च मुणीणं किं पुण इहई सरागाणां ॥ १०॥२९३ ॥ वरजुवइविलसिएणं गंधब्वेणं च एत्थ लोयमि। जस्स न हीरइ हिययं सो पसुओ अहव पुण देवो" ॥१०॥२९४ ॥ आ वखते बे मुनिवृषभो आवी पहोंच्या, जेनी जाण उपवन संरक्षकोए राजा भविष्यदत्तने करी. राजा वांदवा गयो (गाथा २७६-३००). ते बेमांथी ज्ञानातिशये युक्त एवा विमलबुद्धि नामना साधुने राजाए स त्वा द अने अस त् वा द समजाववा विनति करी. राजा शंका करे छे “ परलोकवासीनो अभाव छे तो परलोक पण न ज होवो जोईए. अने तो पछी दानादि करवानो अर्थ शुं?" "परलोइणो अभावा एयं नियमेण नत्थि परलोओ। तम्हा दाणाईयं सब्वं पि निरस्थयं चेव"॥ १०॥३०८॥ विमलबुद्धिए राजानी कुशंका दूर करी (गाथा ३०१-३२५). राजा भविष्यदत्त पोतार्नु पूर्व तथा भावी वृत्तांत कहेवानुं मुनिने कहे छे जे उपरथी मुनि निम्नोक्तं प्रकारे कहे छे : - जंबुद्वीपमा अरिपुर नामे एक नगर हतुं. त्यां प्रभंजन नामनो राजा राज्य करतो हतो. वज्रसेन नामनो तेने मंत्री हतो अने तेने श्रीकांता नामनी भार्या हती. तेमने कीर्तिसेना नामनी एक पुत्री थई. तेज गाममां एक विख्यात अने धनाढ्य शेठीओ रहेतो हतो जेनुं नाम धनदत्त हतुं. तेने नंदिभद्रा नामनी स्त्रीथी धनमित्र नामनो पुत्र हतो. वळी त्यां एक बीजो श्रेष्ठी पण रहेतो हतो जेनुं नाम नंदिदत्त हतुं. तेने भद्रा स्त्रीथी नंदिमित्र नामनो एक पुत्र थयो हतो. शहेरमां समाधिगुप्त नामना मुनिवर वर्षाऋतुमा आचरवा लायक गुप्तवास सेवी रह्या हता. ते ज सन्निवेशमां कौशिक नामनो एक बाल तपस्वी पण रहेतो हतो जे समाधिगुप्तनी ईर्ष्या कर्या करतो हतो. तेथी मरीने ते अशनिवेग नामनो राक्षस बन्यो. वज्रसेन मंत्री मरीने पूजादिना प्रभावथी द्वीपतिलकमां (भवदत्त नामधारी) राजारूपे अवतों (गाथा ३२६-३५०). - धनदत्त, धनमित्र वगेरे साधुपूजादिथी शुभकर्मर्नु उपार्जन करे छे ज्यारे मलिन साधुनी हीलना, दुगंछा वगेरे करवाथी धनदत्तनी नंदिभद्रा भार्या अशुभ कर्म उपार्जे छे. पिताए काढी मुकेल कीर्तिसेना नंदिभद्रा साथे मैत्री करे छे. नंदिभद्राए पंचमीव्रत ग्रहण करी तेनुं उजमणुं वगेरे कयु. कीर्तिसेना मरीने द्वीपतिलकमां भवदत्तने त्यां तेनी स्त्री नागसेनाथी भविष्यानुरूपारूपे अवतरी. द्वीपतिलकना राजाने अशनिवेगे समुद्रमां नाखी दीधो. नंदिभद्र मरीने वैमानिक देवता थई. नंदिमित्र मरीने अच्युत कल्पनो इंद्र थयो. धनदत्त मरीने धनपति तारो पिता थयो. धनदत्तनी भार्या (नंदिभद्रा) कमलश्रीरूपे अवतरी. पंचमी व्रत करी मरण पामेल धनमित्र मरीने तुं भविष्यदत्त थयो. आथी भविष्यदत्तने वैराग्य आव्यो अने ज्येष्ठ पुत्रने राज्यपाट सोंपी तेणे दीक्षा लीधी (गाथा ३५१-३७५). . कमलश्री अने बीजाए पण दीक्षा लीधी. दीक्षा यथाविधि नियमपूर्वक पाळी भविष्यदत्त मरीने सातमा देवलोकमां हेमांगद नामधारी सुरप्रवर थयो. कमलश्री मरीने प्रभाचूड देवता तरीके अने भविष्यानुरूपा मरीने रत्नचूड तरीके अवतयां. त्रणेय देवताओ सातमा कल्पमां खूब आनंद करे छे (गाथा ३७६-४००). नील निषधना मध्यभागमां, मेरुनी पूर्व अने लवण समुद्रनी पश्चिमे, सोळ विजययुक्त पूर्व विदेह आवेल छे. तेमां गंधाक्ती नामनुं सुंदर अने विख्यात एक विजय छे. तेमां गंधर्वपुर नामर्नु एक नगर होई गंधर्वसेन नामनो तेनो राजा हतो. गांधारी नामनी तेने एक स्त्री हती. ए स्त्रीने पेटे प्रभाचूड नामनो देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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