Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 46
________________ प्रस्तावना च्यवीने पुत्ररूपे अवतर्यो जेनुं नाम वसुंधर राखवामां आव्यु. तेने सुमति साथे परणाववामां आव्यो. हेमांगद तथा रत्नचूड बन्ने यथासमय मरीने आ बन्नेना पुत्ररूपे जन्म्या. तेमनां नाम अनुक्रमे श्रीवर्धन अने नंदिवर्धन राखवामां आव्यां. वसुंधरने राज्य गादी उपर बेसाडी गंधर्वसेने दीक्षा ग्रहण करी (गाथा ४०१-४२५). आकाशमां शरदभ्रने एकदम वातथी विखराई जतुं जोई सर्व वस्तुना क्षणभंगुर स्वभावथी खिन्न थई वसुंधर वैराग्य पाम्यो अने पुत्र श्रीवर्धनने अभिषिक्त करी सिंहासनारूढ बनावी पोते प्रव्रज्या धारण करी. अने अनुक्रमे एवा स्थानने प्राप्त कयु के ज्यां दुःखनो आत्यंतिक अभाव छे (गाथा ४२६ -४५०). लघुभ्राता नंदिवर्धननी अभ्यर्थनाथी, श्रीवर्धन तेनी साथे विश्वपरिभ्रमण माटे नीकळ्यो. अने तेमने रत्नशेखर नामना मुनिवृषभ वृक्ष नीचे बेठेला मळ्या. श्रीवर्धने तेमने लोकमान, लोकभेद अने लोकस्थिति विषे प्रश्नो पूछ्या जेनो शास्त्रोक्त जवाब रत्नशेखर मुनिए आप्यो. ते उपरांत बन्नेए पोताना पूर्वभववृत्तांतो कहेवानी विनति पण करी; जे उपरथी मुनिश्रीए तमाम हकीकत तेमने कही संभळावी. जातिस्मरणथी वैराग्य पामी बन्नेए पोताने दीक्षा आपवानो आग्रह को पण हजु दीक्षाने छ मासनी वार छे माटे त्यांसुधी भोग भोगवो अने त्यारबाद दीक्षा आपवामां आवशे एम मुनिए तेमने कह्यु (गाथा ४५१-४७५). त्यार बाद तेओ पोताना नगरमा व्यांथी पाछा गया. अने छ मास बाद तेज मुनि पासे दीक्षा लई, दीक्षा यथार्थ पाळी, तप करी, मोक्षे गया. अने आ रीते आ भविष्यदत्त आख्यान नामनुं दसमुं आख्यान समाप्त थयुं (गाथा ४७६ - ५००). 'भविस्सयत्त कहा'नो सारांश जिनने नमस्कार करी 'श्रुतपंचमी'ना फळने वर्णववानी कवि प्रतिज्ञा करे छे. गौतम गणधरे श्रेणिक राजाने आ कथा जेवी रीते कही छे तेवी रीते कवि धनपाळ आपणने कहे छे. प्रसिद्ध भरतखंडने विषे कुरुजंगल नामना देशमां गजपुर अथवा हस्तिनापुर नामे नगर छे. भूपाल नामे राजा त्यां राज्य करतो हतो. ए नगरमां धनपति नामनो एक वणिक् पण रहेतो हतो. हरिबल नामनो एक बीजो वेपारी पण त्यां रहेतो हतो अने तेने कमलश्री नामनी एक सुंदर पुत्री हती जेना हाथनी मागणी धनपतिए पोताने माटे करी अने ते हरिबले मंजुर पण राखी. एकदा पोतानी सखीओने पुत्रवाळी जोईने अने पोताने पुत्र न हतो तेथी कमलश्री खिन्न थाय छे अने एक मुनिने ए बाबत पूछे छे जेना जवाबमा तेने एक सुंदर अने सर्वांगसंपूर्ण पुत्र थशे एम मुनि स्वप्न द्वारा कहे छे. वखत जतां कमलश्रीन एक पुत्र प्राप्त थाय छ जेनुं नाम भविष्यदत्त राखवामां आवे छे (संधि १). __कमलश्री अने धनपति वच्चे प्रेम कमी थतो जाय छे. धनपति कमल श्रीने पोताने पीयर जवान कहे छे. पीयरमां रहेती पुत्री उपर समाज शंकानी दृष्टिए जुए छे. माता अने पिता (हरिबलने हरिदत्त पण क्यांक क्यांक कहेवामां आवेल छे) बन्ने उद्विग्न थाय छे. बाळक भविष्यदत्त पण 'जेवा थाय तेवा थईए' नी देशकालानुसारिणी हितशिक्षा माताने आपी आश्वासन पुरूं पाडे छे (संधि २). धनपति पछी धनदत्त नामना बीजा वेपारीनी पुत्री सरूपाने परण्यो. तेने पण समय जतां पुत्र थयो जेनुं नाम बंधुदत्त राखवामां आव्यु. ए बहु तोफानी थयो पण सद्भाग्ये ए कांचन नामना देशमा अन्य वेपारीओ साथे वेपार माटे गयो. एमां भविष्यदत्त पण हतो. एने मध्यदरीए डूबाडी मारवानी सलाह पोताना पुत्र बंधुदत्तने सरूपा आपे छे. प्रतिकूळ पवनने लीधे तेओ मैनाक द्वीपमां (मैनाक पर्वतांतर्गत ) आवी पहोचे छे. अहिंआ वेपारीओ उतरी गया अने जळ, फळ अने पुष्पो वीणवा भंडी गया. भविष्यदत्त जंगलमां ऊंडो उतरी गयो. ए बाबतनी परवा कर्या विना बंधुदत्ते वहाण हंकारवानो हुकम करी दीधो (संधि ३). नाणपं० प्र०3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162