Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 44
________________ प्रस्तावना १५ जोई बंधुदत्त खसीयाणो पडी गयो. राजाए धनपति वगेरेने केद कर्या. भविष्यानुरूपा भविष्यने सोंपी. तेनुं रूप जोई सौ आश्चर्यचकित थई गया. राजाए पण अर्धु राज्य अने पोतानी सुतारा नामनी पुत्री भविष्यने आपी. मातानी इच्छाथी पिता, अपर माता अने बंधुने केदमांथी भविष्ये छोडाव्या अने हाथी उपर बेसाडी घेर मोकल्या ( गाथा २०१-२२५). बन्ने पत्नी साथै आनंद करतां भविष्यना दिवसो एकदम वहेवा लाग्या. भविष्यानुरूपाए गर्भ धारण कर्यो अने तेने चंद्रप्रभ जिनालयमा जई चंद्रप्रभ स्वामीनी पूजा करवानो दोहद थयो. आ सांभळी विमनस्क थयेलो भविष्य विचार करी रह्यो हतो तेवामां एक दिव्य विमान (जेने मनोवेग विद्याधरे मोकल्युं हतुं ) आव्युं. तेमां बन्ने भार्या साथै भविष्य उपड्यो पद्मसरोवरमां न्हाई, चंद्रप्रभ स्वामीनी पंचवर्णी कूलोथी पूजा करी नगर जोया गया. जोईने पाछा आव्या ते वारे तेमणे बे साधुओने जिनभवनमां बेठेला जोया. मांथी एक के जेमनुं नाम जयानंद हतुं अने जे कैवल्यसंपन्न हता तेमने मनोवेग विद्याधरना आगमननुं कारण वगेरे भविष्यदत्ते पूछयुं. ते उपरथी जयानंद केवलिए निम्नोक्त सर्व वृत्तांत कहेवानुं शरू कर्यु ( गाथा २२६ - २५० ). पूर्वे कांपिल्यपुर नामे नगर हतुं. त्यां नंद नामे एक राजा राज्य करतो हतो. तेने वासव नामे एक पुरोहित हतो जेने सुकेशी नामनी एक मनोहर स्त्री हती. ते बन्नेने सुवक्र अने दुर्वक्र नामना बे दीकरा तथा त्रिवेदी नामनी एक पुत्री हती जेना पतिनुं नाम अग्निमित्र हतुं भेट, नजराणा, नवीन वस्तुओ इत्यादि मोकलवामां नंदराजा आ अग्निमित्रनो उपयोग करतो हतो. एकदा भेट, नजराणा वगेरे आपी तेने सिंहलद्वीपना राजा ने नंदराजाए मोकल्यो. सिंहलद्वीपना राजाए तेनुं बहुमान करी सामी भेट, नजराणा वगेरे आपी तेने विदाय कर्यो. रस्तामां तेणे बधुं उडावी मायुं तेने पाछा आवतां वार लागी जोई राजाने विचार थाय छे. पण वाट लांबी छे एम मानी मन मनावे छे. नंद राजाने एक सुगुप्तमंत्र नामनो मंत्री हतो. ज्योतिष्मां ते पारंगत हतो. तेने अने सुवने एक वखत विवाद थयो हतो जेमां बीजाए पहेलाने हराव्यो हतो तेथी पहेलो बीजाना छिद्रो जोया करतो हतो. परिचारकवर्गे राजाने उकेर्यो तेथी ते वधारे कोपविष्ट थयो. ते दरम्यान अग्निमित्र आवी पहोंच्यो अने पाछा वळतां रस्तामां तेने चोर लोकोए लूट्यो एम तेणे क तेथीं तो वळी राजा घणो ज रोषाविष्ट थयो. कारण के चारवर्गे तेने बधी हकीकतथी मालूम करी दीधो हतो. राजा कहे छे “बे आंखवाळो माणस जरुर कुशळ माणसथी छेतराय पण राजा तो हजार आंखवाळो छे एटले एने कोण छेतरे !" " दोनयणो वंचिज्जइ जणेण कुसलेण नरिथ संदेहो । नरवइ पुर्ण सहसक्खी कह तीरइ वंचिउं भणह" || १० | २६८ ॥ वासवप्रमुख सर्व लोको आ वृत्तांत जाणी भागी छुट्या. सुकेशीए देशविरति ग्रहण कर्यु अने मरीनें रविप्रभ नामनो देवता थयो. त्यांथी च्यवीने तारी स्त्री भविष्यानुरूपाना गर्भमां ते आव्यो छे. सुवक पण मरीने देव थयो. त्यांथी व्यवीने मनोवेग नामनो विद्याधर थयो. जातिस्मरणज्ञानथी बधी हकीकत जाणी माताना प्रकृष्ट प्रेमने वश थई ते तने मदद करवा आव्यो हतो. कारण के तारी स्त्रीना गर्भमां तेनी माता सुकेशीनो जीव के. दुर्बक्क मरीने अमरगिरि उपर महा भयंकर अजगर थयो. अमिमित्र अनुक्रमे मरीनें मणिभद्र यक्ष थो अने त्रिवेदी अग्रमहिषी थई ( गाथा २५१ - २७५). पछी भविष्यदत्त बजे भार्या सहित हस्तिनापुर ( गजपुर ) पाछो आव्यो. काळे करी भविष्यानुरूपाए एक पुत्रने प्रसव आप्यो खेनुं नाम सुप्रभ राखवामां आव्युं. लोको आ पुत्रोत्सवने अनेक प्रकारे उजवे छे. कवि महेखरसूरि कहे छे: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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