Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 38
________________ प्रस्तावना छट्ठा महेश्वरसूरि ते देवानंद गच्छना महेश्वरसूरि के जेओ संवत् १६३० मां थई गया. सातमा महेश्वरसूरिनो उल्लेख लींबडीनी सूचीमां मळी आवे छे. तेमणे 'शब्द भेद प्रकाश' रच्यो हतो जेनो लेखन संवत् वि. स. १६४४ लींबडी भंडारवाळी प्रतिमां नोंघेलो छे. नव पत्र छे अने ३६६ श्लोक संस्कृतमा छे.१२ आठमा महेश्वरसूरि संबंधेनी थोडीक विगत 'जैन ग्रंथावलि 'मां मळी आवे छे. तेओ वर्धमान सूरिना शिष्य हता अने १२३ गाथामा ‘सिद्धांतोद्धार प्रकरण' रच्युं हतुं एवो उल्लेख तेमां छे.५३ 'जैन साहिल्यना संक्षिप्त इतिहास'मां एम जणाव्युं छे के 'सिद्धांत- विचार' अथवा 'सिद्धांतोद्धार' (पी. १,३३) विमलसूरिना शिष्य चंद्रकीर्ति गणिए रच्यो हतो.५५ 'जैन ग्रंथावलि' तो बीजा बे महेश्वरसूरिओ पण जणावे छे जेमाना एके 'लिंगभेद नाममाळा५५ अने बीजाए ३००० श्लोक प्रमाण 'विश्वकोष' रच्यो हतो.५६ आ रीते दश महेश्वरसूरिओ थया. अने अगीआरमा महेश्वरसूरि लींबडी भंडारनी सूचि प्रमाणे ए थया के जेमणे संस्कृतमा 'शब्द प्रभेद' नामनो २०० श्लोक प्रमाण ग्रंथ लख्यो. तेना सात पृष्ठ छे.५७ आ अगीआर महेश्वरसूरिओ पैकी 'ज्ञानपंचमी कथा'ना लखनार महेश्वरसूरिए बीजो कोई ग्रंथ लख्यो छे के नहि ते तपासवाथी कया महेश्वरसूरि बेवडाणा छे तेनी खबर पडशे. 'पंचमी कथा'ना लखनार महेश्वरसूरिए पोताने माटे सजन उपाध्यायना पोते शिष्य हता ते सिवाय कशुंज प्रशस्तिमां जणाव्यु नथी. छतां पोते विक्रमीय अगीआरमी सदीना प्रथम दशका पहेलां थया हता ए तो आपणे आगळ जोई गया. एटले ज्यां गुरुभेद अने समयभेद स्पष्टपणे बताववामां आव्यो हशे त्यां तो 'पंचमी कहा'ना रचनार महेश्वरसूरि ते ते महेश्वरसूरिथी जुदा एम बेधडकपणे कही शकाशे. 'आवश्यक सप्तति' उपर टीका लखनार महेश्वरसूरि वादिदेव सूरिना शिष्य हता तेथी, 'काल. काचार्य कथा' प्राकृतमां लखनार महेश्वरसूरि पल्लीवाल गच्छमां थई गया तेथी, 'विचार रसायन प्रकरण 'ना रचनार महेश्वरसूरि सं. १५७३ मां विद्यमान हता तेथी, देवानंद गच्छना महेश्वरसूरि गच्छमेदे तथा सं. १६३० मां थई गया तेथी, 'सिद्धांतोद्धार प्रकरण'ना रचनार महेश्वरसूरि वर्धमानसूरिना शिष्य हता तेथी, अने 'शब्द भेद प्रकाश, लिंगभेद नाम माळा,' 'विश्वकोष, अने 'शब्द प्रमेद' ना लखनार चारेय महेश्वरसूरिओ अर्वाचीन देखाय छे तेथी ए नवेय महेश्वरसूरिओ 'ज्ञान पंचमी' कथाना लेखक महेश्वरसूरि करतां भिन्न छे ए निर्विवाद छे. हवे रह्या एक 'संयम मंजरी'ना लखनार महेश्वरसूरि जे प्रस्तुत 'ज्ञानपंचमी कथा 'ना लेखक महेश्वरसूरि होय एवी संभावना रहे छे. अपभ्रंश भाषामा 'संयममंजरी' नामनो प्रकरण ग्रन्थ लखनार महेश्वरसूरिए ते ग्रंथमां पण पोताना समय वगेरे विषे कशो उल्लेख कर्यो नथी. पोताना 'हिस्टरी ओफ इन्डीअन लिटरेचर' भाग २ मां ५१ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ.पृ. ६०६. ५२ जुओ उपर्युक्त ली. भा. न. सू. पृ. १४०. ५३ जुओ उपर्युक्त जै. प्र. पृ. १३६. ५४ जुओ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. २७६. ५५ जुओ उपर्युक्त जै. ग्र. पृ. ३१२. ५६ जुओ उपयुक्त जै. प्र. पृ. ३१३. ५७ जुओ उपयुक्त लीं. भा. प्र. सू. पृ. १४०. ५८ जुओ पृ. ५८९ नी सातमी पादनोंध. नाणपं० प्र.2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162