Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 40
________________ प्रस्तावना जावी छे. ज्ञानपंचमीत्रतनुं माहात्म्य आम तो सौ कोई समजे छे परंतु सौभाग्य, सुकुलजन्म, व्याधिविमोक्ष अने छेवटे मोक्ष जेवा फळ ज्ञानपंचमी व्रतने यथाविधि करवाथी प्राप्त थाय छे ए वात जुदा जुदा पात्रो द्वारा सचोट अने भाववाही शैलिथी समजावनार एवो आज पर्यंत उपलब्ध कोई प्राचीन ग्रन्थरत्न होय तो ते आज छे एम मारुं मानवुं छे. आपणे आगळ जोई गया तेम ज्ञानपंचमी व्रतना सर्वसाधारण अत्युत्तम फळने वर्णवती 'भविष्यदत्त कथा', 'सौभाग्य पंचमी कथा', 'पंचमी कथा' वगेरे घणी घणी कथाओ, संस्कृतमां, अपभ्रंशमां, अने जूनी गुजरातीमां रचायेली मळी आवे छे, परंतु ए बधाथी बधी बाबतोमां चडीआती अने ए बधाथी प्राचीन आ कथा छे ए वात निःसंशय छे एम आपणे आगळ जोई गया. १६७ १६८ ६९ बळी आपणे आगळ जोई गया तेम धर्केटवंशीय वणिक् धनपाळ कविए 'भविष्यदत्त कथा' नामनी एक कथा बावीस संधिमा अपभ्रंश भाषामां श्रुतपंचमी ( ज्ञानपंचमी) व्रतना प्रभावने वर्णववाना हेतुथी लखी छे. ६६ तेना पितानुं नाम ' माएसर' अने मातानुं नाम ' घणसिरि' हतुं धनपाळ कवि दिगंबर देखाय छे. कथानुं अपरनाम ' सुयपंचमी कहा ' ( ' सियपंचमी कहा पद पण मळी आवे छे; छतां 'सुयपंचमी कहा' ए वधारे ठीक छे) ए श्वेतांबर आम्नाय प्रचलित ज्ञानपंचमी शब्द माटेनो दिगंबर आम्नाय योजित पारिभाषिक शब्द छे. ते तथा 'भञ्जिवि जेण दियंबरि लाइउ पद प्रयोग, दिगंबर संप्रदाय वायतीकृत क्षुल्लक शब्दनो उपयोग, अने अच्युत स्वर्गनो सोळमा स्वर्ग तरीकेनो निर्देश - आ बधी बाबतो धनपाळ कवि दिगंबरमतानुयायी हतो ए मान्यता तरफ आपणने लई जाय छे। धर्कट वंश दिगंबरोनो हतो एम डॉ. याकोबी आबुपर्वत उपर आवेला देलवाडा मंदिरस्थ, इ० स० १२३०ना तेजपालना शिलालेख संबंधी दलीलो आपी साबीत करे छे; ; ज्यारे धर्कट वंशनांथी उपकेश - ऊकेश - ओसवालोनी शाखा नीकली हती एं वात आपणने ए वंश श्वेतांबरोनो हतो ए अभिप्राय तरफ घसडी जाय छे. ७२ कदाच एम पण होय के ए वंश धनपाळना समये दिगंबरोनो होय अने पाछळथी गमे ते कोई कारणे श्वेतांबरानो थयो होय. गमे तेम होय पण आभ्यंतरिक प्रमाण द्वारा ए वात निर्विवाद छे के धनपाळ दिगंबरमतावलंबी हतो. आ धनपाळ पाइअलच्छीनाममालाकार धनपाल करतां जूदो छे ए वात तो पाइअलच्छीनाममालाकारनो पिता सर्वदेव तो ए कारणे सुस्पष्ट छे एम आपणे जोई गया. 'समरादित्यकथा' अने 'भविष्यदत्तकथा' बच्चे निदानसाम्य छे ( जुओ, वीसमी संधि ) ए दलीलनो आश्रय लई धनपाळ हरिभद्रसूरिनो तरतनो अनुगामी होय एम डॉ. याकोबी सिद्ध करे छे. हरिभद्रसूरि इ० स०नी नवमी शताब्दिना उत्तरार्धमा ( मुनि जिनविजयजीना मते इ० स० ७०५ थी इ० स० ७७५) थया होत्रा जोइए एम डॉ. याकोबी माने छे. ए हिसाबे धनपाळ कवि वहेलामां वहेलो ६६ आ कथा याकोबीए जर्मनीमां इ. स. १९१८ मां संपादित करी बहार पाडी अने त्यार बाद गा. ओ. सी. मां नं २०, स्व. दलाले अने प्रो. गुणेए प्रस्तावना, टिप्पणी अने शब्दकोश सहित इ. स. १९२३ मां बहार पाडी. ६७ जुओ गा. ओ. सी. प्रकाशित 'भविष्यदत्त कथा'नी प्रस्तावनानुं पृ. १. ६८ जुओ उपर्युक्त पुस्तकनी पांचमी संधि, वीसमुं कडवक, त्रीजी पंक्ति. ११ ६९ जुओ उपर्युक्त पुस्तक, १७, ७ तथा १८; १. ७० जुओ उपर्युक्त पुस्तक, २०; ९. ७१ जुओ याकोबी संपादित 'भविष्यदत्त कथा', प्रस्तावना, पृ. ६. ७२ जुओ उपर्युक्त प. भा. प्र. सू. भाग. १, पृ. २३९ तथा ४२७. ७३ जुओ उपर्युक्त याकोबी संपादित 'भविष्यदत्त कथा' नी प्रस्तावना पृठ ६. ७४ जुओ मुनि जिनविजयजी संपादित 'जैन साहित्य संशोधक' - पु. १. अंक. १ मां "हरिभद्रसूरिका समय निर्णय" शीर्षक लेख. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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