Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 39
________________ नाणपंचमीकहाओ विन्टरनित्झ 'संयममंजरी 'ना लखनार महेश्वरसूरिने हेमहंससूरिना शिष्य भूलथी मानीने हेमचंद्रसूरिना समसामयिक अथवा १३०९ पहेलां तो अवश्य थयेला माने छे. 'कालकाचार्य कथानक 'ना कर्ता महेश्वरसूरि अने संयममंजरीना महेश्वरसूरि बन्ने एक छे एम कल्पी ' कालकाचार्य कथानक 'नी ताडपत्रीय प्रति इ. स. १३०९ मां लखायेली मळी आवेल छे ते उपरथी 'संयममंजरी' ना रचनार महेश्वरसूरि १३०९ पहेला मोडामां मोडा थया होवा जोइए एम गणी तेओ हेमहंससूरिना शिष्य छे एम आगळ कह्युं तेम भूलथी मानी तेमने हेमचंद्रसूरिना समसामयिक बनावे छे. आ आखी विचारसरणि भूल भरेली देखाय छे. पहेला तो ए के 'कालकाचार्य कथानक 'ना रचनार महेश्वरसूरि तेज 'संयममंजरी 'ना रचनार महेश्वरसूरि, में आगळ कधुं तेम, मानवानुं खास कांई कारण नथी. ते उपरांत, महेश्वरसूरि हेमहंससूरिना शिष्य हता ए खोढुं छे कारण के उलढुं हेमहंससूरि ( पूर्णचंद्रसूरि शिष्य ) ना शिष्ये 'संयममंजरी' नामना प्रकरण ग्रन्थ उपर प्राकृत - संस्कृत कथाओथी अलंकृत विस्तीर्ण व्याख्या रची प्रकरणकार तरफनो पोतानो आदरभाव व्यक्त कर्यो छे. एटले पूर्णचंद्रसूरि शिष्य हेमहंससूरि शिष्य तो वृत्तिकार थया, नहि के प्रकरणकार; अलबत्त, पोतानी ए व्याख्यामां व्याख्याकार हेमहंससूरि शिष्य पण प्रकरणकार महेश्वरसूरि संबंधे कशुं ज लखता नथी. महेश्वरसूरि 'संयममंजरी 'ना रचनार हता ए पण कदाच व्याख्याकार जाणता नो'ता कारण के महेश्वरसूरि शब्द प्रयोगने बदले तेओ प्रकरणकार कहीने ज ओळखावे छे. आ महंससूरि शिष्य ते कदाच हेमसमुद्र होय." पूर्णचंद्रसूरि - हेमहंससूरि - हेमसमुद्रसूरि नागोरी तपागच्छना हता के चंद्रगच्छना हता ते विषे मतभेद छे. ६ १० ६३ आ 'संयममंजरी 'नी ऋण ताडपत्रीय प्रतिओ पाटण भंडारमां छे." जेसलमेरना बृहद्भंडारम पण एक ताडपत्रीय प्रति छे. अने लींबडी भंडारमां पण एक हस्तलिखित प्रति छे. ३ भाषा अपभ्रंश ले अने कुल गाथा ३५ छे. तेना उपर विस्तीर्ण व्याख्या पूर्णचंद्रसूरि शिष्य हेमहंससूरिना शिष्ये लखेली छे. आ ग्रंथ मुद्रित थयेल छे." 'संयममंजरी 'ना रचनार महेश्वरसूरि अगीआरमी सदी ( विक्रमीय ) मां थई गया " तेथी 'ज्ञानपंचमी कथा 'ना लेखक महेश्वरसूरि अने आ महेश्वरसूरि एक होय एम संभव छे. ६४ ५५ * 'नागपंचमी' अने 'भविस्सयत्त' कहा HOND अहिंआ महेश्वरसूरि रचित 'नाणपंचमी कहा' अने धनपाल रचित 'भविस्सयत्त कहा 'नो - ए वे ज्ञानमुं माहात्म्य वर्णवनारी जैन कथाओ जेमांनी पहेली प्राकृत भाषामा अने बीजी अपभ्रंश भाषामा रचाएली छेतुलनात्मक परिचय आपवानो मारो उद्देश छे. 'नाणपंचमी कहा'नुं प्रथम जयसेन आख्यान अने अंतिम भविष्यदत्त आख्यान दरेक पांचसो पांचसो गाथामां लखायेला छे. बाकीनां आठ आख्यानो सवासो सवासो गाथामां पूरां करी देवामां आव्यां छे. आ समग्र कथानुं मुख्य ध्येय ज्ञानपंचमी व्रतनुं माहात्म्य समजाववानुं छे. ए व्रत कोण अने क्यारे ग्रहण करी शके, तेमज एने ग्रहण करवानो शो विधि छे तथा तेना उजमणानी रीत अने तेनुं शुं फळ छे ए वगेरे तमाम हकीकत महेश्वरसूरिए प्रवाहबद्ध अने हृदयंगम पद्यम सम ५९ जुओ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पू. ५८५. ६० जुओ उपयुक्त पुस्तकनुं उपर्युक्त पृ. तथा उपर्युक्त प. भा. ग्र. सू. पृ. ११३. ६१ जुओ उपर्युक्त प. भा. प्र. सू. पू. ६८, १६२ तथा १९३. ६२ जुओ उपर्युक्त जे. भा. प्र. सू. पू. ३८. ६३ जुओ उपर्युक्त लीं भा. प्र. सू. पृ. १७६. ६४ जुओ गा. ओ. सी. नं. २०. ६५ जुओ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ३३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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