Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 37
________________ नाणपंचमीकहाओ जूनी ताडपत्रीय प्रतिनो लेखन संवत ११०९ छे ते आपणे आगळ जोई गया. आना अनुसंधानमा ए पण जणावq आवश्यक छ के 'जैन ग्रंथावलि' मा उल्लेखेल भविदत्ताख्यान के भविष्यदत्ताख्यानकार महेश्वरसूरि ते बीजा कोई नहि पण 'ज्ञान पंचमी' ना लेखक महेश्वरसूरि; ते पण आगळ आपणे तपासी गया." अपभ्रंशभाषामां पांत्रीश गाथामां 'संयममंजरी' ना लखनार एक बीजा महेश्वरसूरिनो उल्लेख अहिं करी लेवो जोइए." त्यार बाद एक त्रीजा महेश्वरसूरि ते थई गया के जेणे 'पाक्षिक अथवा आवश्यक सप्तति' उपर १०४० गाथा प्रमाण टीका लखी छे. आ महेश्वरसूरि वादिदेवसूरिना शिष्य हता अने ए हिसाबे तेमनो अस्तित्वकाळ विक्रमीय तेरमी सदीनो लगभग मध्यभाग संभवे. तेमणे रचेली वृत्तिनुं नाम 'सुख प्रबोधिनी' छे. ए वृत्ति रचवामा तेमने वज्रसेन गणिए सहाय पण करी हती ( जुओ कांतिविजयजी प्रवर्तकनो पुस्तक भंडार, वडोदरा, नं. १०). चोथा महेश्वरसूरि ते थई गया के जेमणे 'कालिकाचार्य कथा' बावन प्राकृत गाथामां लखी छे.५८ 'जैन ग्रंथावलि' पृ. २५० नी नोटमा उमेरे छे के “आ महेश्वरसूरि ते कया ते बाबत कांई चोक्कस पूरावो मळी शकतो नथी. पण ते प्राचीन वखतमां थयेला होवा जोइए. तेमना संबंधमां पीटर्सनना बीजा रिपोर्टमां ('जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां बीजो नहि पण पहेलो रिपोर्ट लख्यो छे) पृ. २९मां सदरहु कथानी नोंध लेतां प्रान्ते " इति श्री पल्लील ('जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां आ गच्छने पल्लीवाल गच्छ तरीके ओळखावेल छे अने ते साचुं छे) गच्छे महेश्वरसूरिभिर्विरचिता कालिकाचार्य कथा समाप्ता" आवो उल्लेख छे. संवत् १३६५ नो नोध्यो छे पण अमारा धारवा मुजब ते प्रति लख्यानो होवो जोइए. आ बाबत 'संयममंजरी'मां पण विशेष खुलासो जोवामां आवतो नथी. पांचमा महेश्वरसूरि ए थई गया के जेमणे ‘विचार रसायन प्रकरण' (अमदावादना डेलाना उपाश्रयनी टीपमा आनुं नाम 'विचारण प्रकरण' जोवामां आवे छे पण ते ‘विचार रसायन प्रकरण' ज होय एम संभवे छे) ८७ गाथामां संवत् १५७३मां रच्यु." ४३ जुओ पादनोंध४. तेओ सजन उपाध्यायना शिष्य हता ते माटे जुओ आ 'ज्ञान पंचमी कथा' ना प्रशस्तिगत निम्नोक्त श्लोको: दोपक्खुजोयकरो दोसासंगेण वजिओ अमओ । सिरिसजणउज्झाओ अउवचंदुव्व अक्खस्थो । १०७ ४९६ ॥ सीसेण तस्स कहिया दस वि कहाणा इमे उ पंचमिए । सूरिमहेसरएणं भवियाणे बोहणटाए ॥ १०, ४९७ ॥ ४४ जुओ पादनोंध ९. ४५ जुओ उपर्युक्त जै. प्र. पृ. १९२; उपर्युक्त जै. सा. सं. इ.पृ. ३३१; ली. भा. ग्र. सू. पृ. १७६; उपर्युक्त प.भा. ग्रं. सू. (अंग्रेजी प्रास्ताविक) पृ. ६३; printed in the introduction of भविस्सयत्तकहा (गा. ओ. सी. नं २०). ४६ उपर्युक्त जै. प्र. पृ. १४३. ४७ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ३३६. ४८ उपर्युक्त जै प्र. पृ. २५०. ४९ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ४३१. ५० उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ५१८; उपर्युक्त जै. प्र. पृ. १३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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