Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 26
________________ प्रास्ताविक वक्तव्य १५ कथानी रचना संस्कृतमां करुं छं. सिद्धर्षिनुं आ कथन बहु ज वास्तवदर्शि छे एमां शंका नथी. संस्कृतमां ए कथानी रचना थवाथी जेटली ए विद्वत्प्रिय थई छे अने जेटली एनी ख्याति थई के तेटली, जो एनी रचना प्राकृतमां थई होत तो, कदाच न पण थात. तेम ज कथानी अद्भुत संकलना करवामां अने आन्तरिक भावोनुं मार्मिक निरूपण करवामां जे सफलता कविने संस्कृतभाषा द्वारा मळी ले ते सफळता प्राकृतभाषा द्वारा न पण मळत. २६ सिद्धर्षि पछी संस्कृतमां जैथा लखनार महाकवि धनपाल ले जेमणे धाराधिपति परमार नरेश्वर भोजराजाना समयमां, बाणभट्टनी सुप्रसिद्ध संस्कृत गद्य कथा 'कादंबरी'नी स्पर्धा करे तेवी 'तिलकमञ्जरी' नामनी उत्कृष्ट गद्य कथा निर्मित करी. ते पछी संस्कृतमां सुमहान् चरितग्रन्थ रचनार, आचार्य हेमचन्द्र थया. तेमणे अत्यंत प्रौढ, प्राञ्जल भने प्रकृष्ट शैलीमा पष्टिकापुरुष दरित' नामना सेंकडो कथाओना संग्रहवाला आकर ग्रन्थनी रचना करी. तेमना समय दरम्यान, तेम ज ते पछी तो बीजा अनेक विद्वानोए संस्कृतमां चरितग्रन्थो के कथाग्रन्थोनी रचना करवानो, खूब ज भोटा प्रमाणां प्रयास आरंभ्यो जेना परिणामे एक पछी- एक सेंकडो नवा ग्रन्थो निर्माता गया. हेमचन्द्रसूरिनामपली तो, जैन विद्वानोनुं चत्रण, बधारे ने वधारे संस्कृतमां ज साहित्यरचना करवा तरफ ढळतुं गयुं अने प्राकृत भाषा तरफ आकर्षण ओलुं श्रतुं गयुं; अने तेना परिणामे प्राकृतमां रचाएला जेटला जूना कथाग्रन्थो हता, प्रायः ते बधानाज संस्कृतमां रूपान्तरो थयां | अने ए रीते जैनोनुं संस्कृत वाक्य पण प्राकृतना जेवुं ज असंख्य कथाग्रन्थोथी बहु ज समृद्ध बन्युं. २७ परंतु, गुणवत्ता अने उपयोगितानी दृष्टिये, ए प्राचीन प्राकृतमय जैन कथासाहित्य, केवळ जेन संस्कृतिना गौरवनी दृष्टिये ज नहि, परंतु अखिल भारतीय संस्कृतिना इतिहासनी दृष्टिये पण, घणुं महत्वनुं अने अनन्य कोटिनुं छे. ओछामां ओछु, विक्रमनी प्रथम शताब्दीश्री लईने १५ मी शताब्दीना अन्तसुधीना १५०० वर्षो वच्चेना, भारतीय संस्कृतिना विविध अंग - उपांगोदा इतिहासालेखनमां आधारभूत थाय तेवी प्रामाणिक अने मौलिक सामग्री, बहु ज विशाळ परिक्षा"मां, ए ग्रंथोमां ग्रथित थएली पडी छे. उदाहरण तरीके, कोई संशोधनप्रिय अभ्यासी विद्वान् प्रस्तुत 'नागपंचमी कहा' नुं ज, जोए दृहिये अवलोकन करवा इच्छे, तो एमांथी तत्कालीन एवी सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक अने राजतांत्रिक आदि अनेक प्रकारनी परिस्थितियोने सूचनारी असंख्य उपयोगी नोंधो मळी आवे तेम छे. प्राध्यापक गोपणीये पोतानी प्रस्तावनामां एवी केटलीक नोंधो तरफ जे अंगुलीनिर्देश कर्यो छे ते उपरथी अभ्यासी जनोने एनो कांईक आभास थई शकशे. २८ जैन सांप्रदायिक परंपरानी दृष्टिये अवलोकतां जणाय छे के महेश्वर सूरि कांईक स्वतंत्र प्रकृतिना लेखक होय म लागे छे. प्रस्तुत ग्रन्थमां लेखके पोतानी कवित्वशक्ति के उपदेशककलानी प्रौढिनुं प्रदर्शन कराववानी दृष्टिये केटलांक एवां विधानो पण करेला लागे छे जे जैन निर्ग्रन्थ प्रवचननी रूढिथी संगत नथी देखातां. उदाहरण तरीके, जयसेन राजानी जे पहेली कथा छे, तेमां एक धर्म नामना मुनिनी आंतर कथा आपेली छे - (जुओ, पृ. ६-९). एकथामां एवं वर्णन करेलं मळे छे के धर्ममुनि केवलज्ञान धारक हता अने भव्यजनोने प्रतिबोध आपवानी दृष्टिये तेओ पोतानी आकाशगामिनी विद्याना प्रभावथी आकाशमा उड्डयन करी ज्यां त्यां विचत्ता हता, इत्यादि. मारी समज प्रमाणे एक केवलज्ञानी मुनि आा रीते आकाशमा उड्डयन करी ज्यां त्यां विचरता फरे अने लोकोने उपदेश आपता फरे, ए जैन - शैलीथी बहु ज विचित्र लागे छे. केवलज्ञानीना आकाश गमननो निर्देश अन्यत्र क्यांय थयो होय ते मारी जाणमां नथी. जैन विद्वानो ए विषयमां कांई तात्विक चर्चा करे तो ते रसदायक थशे. २९ आ ग्रन्थमा जे पंचमी तपनुं माहात्म्य वर्णवामां आव्युं छे ते स-निदान एटले के अमुक प्रकारना ऐहिक फळनी प्राप्तिनी आकांक्षा ने उद्देशीने करवामां आव्युं छे. आ जातनुं स निदान तप जैन शास्त्रकारोए हेय कोटिनुं गण्युं छे अने तेथी आ प्रकारनो उपदेश न थवो जोईये एम केटलाक आचार्यांनो ए विषेनो विरोधात्मक विचार ते काळे चालतो पण होवो जोईये. एथी ए विचारना प्रतिषेधरूपे महेश्वर सूरिये ग्रन्थना अन्तमां पोताना विचारनी समर्थक केडलीक युक्तियो ( जुओ गाथा ४८८ थी ४९३ सुधी ) आपीने कयुं छे के "आ रीते ठीक समजीने अने दुर्विदग्धानां वचनोने अवगणीने शुद्धभावथी आ पंचमी तिथिनी तपस्या करवी जोईये." अने ते साथै अन्ते, प्रायः सर्व जैन ग्रन्थकारो जेम कहेता आव्या छे तेन महेश्वर सूरिए ए पण कह्युं छे के - "आ कथानकनी रचनामां शब्दगत के अर्थगत जे कांई दूषण माराथी थयुं होय तो ते सर्व, विद्वानोए क्षम्य गणी तेने शोधी लेवानी विज्ञप्ति छे.” तथास्तु. भाद्रपद पूर्णिमा, संवत् २००४ - जिन विजय भारतीयविद्या भवन, मुंबई. प्रस्तुत ग्रन्थम, अन्तिम १० मुं आख्यान जे 'भविष्यदत्त कथानक' रूपे छे तेनुं पण संस्कृतमां विस्तृत रूपान्तर, विक्रमना १८ मा शतकाना मध्य भागमां थरे गएला प्रसिद्ध विद्वान् महोपाध्याय मेवविजय गणिए 'भविष्यदत्त चरित्र' नागधी बनाव्युं छे. मेघविजयोपाध्याये ए. कथानकने खूब ज पल्लवित कर्तुं छे. एचरितनां २१ अधिकारो पाडवामां आव्या छे अने लगभग २१०० जेटला लोकोमां पनुं आलेखन करवामां आव्युं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162