Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 33
________________ नाणपंचमीकहाओ कवितुं नाम 'रईधु' छे. ते हरसिंह सिंघइनो पुत्र अने गुणकीर्ति शिष्य यशःकीर्तिनो शिष्य हतो. आ यशःकीर्ति ग्वालियरमा ई. स. १४६४ (वि. सं. १५२१) मां राजकर्ता तोमर वंशना कीर्तिसिंह राजाना समयनी आसपास विद्यमान होवार्नु जणायुं छे तेथी सिंहसेन या रईधुए पण तेज समय आसपास आ ग्रंथो रच्या होवा जोइए. पोताना ग्रन्थोमा तेणे गुणाकर, धीरसेन, देवनंदि, जिनवरसेन, रविषेण, जिनसेन, सुरसेन, दिनकरसेन, चउमुह, स्वयंभू, अने पुप्फयंतनो उल्लेख करेल छे.१९ आज कविना रचेला 'दह लक्खणु जयमाल' नामना ग्रन्थनी प्रस्तावनामां पंडित प्रेमी जणावे छे के रईधु' कविए 'भविस्सचरियादि' ग्रन्थो लख्याना उल्लेख मळी आवे छे. तेओ एम पण जणावे छे के ते सर्व ग्रंथो अपभ्रंशमा होवा संभव छे.२० आ 'भविस्सयत्त चरिय' मुद्रित थडे जाणवामां नथी. विक्रमनी सत्तरमी सदीना लगभग मध्यभागमां (सं. १६५५ मां) तपागच्छीय कनककुशले संस्कृत भाषामां ' ज्ञान - पंचमी माहात्म्य' पद्यमां लख्युं.' आनी एक प्रति पाटणना संघवी पाडाना भंडारमा तथा लोंबडीना ज्ञानभंडारमा बे प्रतिओ छे. रचना संवत् (विक्रमीय) १६५५ लखेल छे. 'जैन ग्रंथावलि' तेनुं श्लोक प्रमाण १५० गणावे छे.१२ अने लींबडी भंडारनुं सूचीपत्र १५२ श्लोक नोंधे छे; ज्यारे ए कथाना मुद्रित ग्रंथमा १४० श्लोक छे." श्रीयुत देसाई पोताना 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां लखे छे के तपागच्छीय कनककुशले सं. १६५५ मां 'वरदत्तगुणमंजरीकथा,' 'सौभाग्यपंचमीकथा' अने 'ज्ञानपंचमीकथा' पर बालावबोध रच्यो छे." आ वांचतां आपणने से'ज आभास थाय के श्री देसाई आ त्रणेय पुस्तकोने जुदा जुदा समजे छे पण खरी रीते एम नथी. कनककुशले एक ज बालावबोध रच्यो छे अने ते 'ज्ञानपंचमीमाहात्म्य' उपर; अने तेमां दृष्टांतरूपे वरदत्त, गुणमंजरीने लीधा छे तेमज कनककुशल ते ग्रंथमां निनोक्त श्लोक लखे छे "जायतेऽधिकसौभाग्यं पञ्चम्याराधनात् नृणाम् । इत्यस्या अभिधा जज्ञे लोके सौभाग्यपंचमी ॥" जे उपरथी एने 'सौभाग्यपंचमी' पण कही शकाय. अर्थात् कनककुशले त्रण बालावबोध नथी रच्या परंतु एक ज बालावबोध रचेल छे.. तपागच्छीय कनककुशल पछी रत्नचंद्र शिष्य माणिक्यचंद्र शिष्य दानचंद्रे विजयसिंहसूरि राज्ये सं. १७०० मां 'ज्ञानपंचमी कथा' ('वरदत्त - गुणमंजरी कथा') रची.२७ आ कथा मुद्रित थई नथी. तेनी प्रतिओ वगेरे क्यां छे ते काई जाणवामां आव्युं नथी. १९ उपर्युक्त जै. गू, क. प्रथम भाग, पृ. ८७. २. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय तरफथी प्रकाशित आ ग्रंथनी पं. नाथुराम प्रेमीनी प्रस्तावना. २१ उपर्युक्त जै. प्र. पृ. २६४ तथा लींबडी जैन ज्ञान भंडारनी हस्तलिखित प्रतिओनुं सूचीपत्र (ली. भा. प्र. सू.) - श्री आगमोदय समिति ग्रन्थोद्धार ग्रन्थांक-५८-प्रथम आवृत्ति, मुंबई, इ. स. १९२८, पृ. ६२ तथा उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ६०४. आ 'ज्ञान पंचमी माहात्म्य, श्रीविजयधर्मसूरि जैन ग्रन्थमालाना पु. ३७ ना एक भाग रूपे बहार पडेल छे. जुओ 'श्रीपर्वकथा संग्रह' (प. क. सं.), विजयधर्मसूरि जैन ग्रन्थमाला, पु. ३७ संपादक-ख. मुनिश्री हिमांशुविजय, उजैन, वि. सं. १९३३, पृ. ३-१६. २२ जुओ उपर्युक जै. प्र. पृ. २६४. २३ जुओ उपर्युक्त ली. भा. प्र. सू. पृ. ६२. २४ जुओ उपर्युक्त प. क. सं. पृष्ठो ३-१६. २५ जुओ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ५९१ तथा ६०४. २६ जुओ उपर्युक्त प. क. सं. पृ. १५, श्लोक १३६. २७ जुओ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ६०२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelit www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162