Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 31
________________ नाणपंचमीकहाओ ताडपत्रीय प्रति सं. १३१३ मां वीसलदेव राज्ये तन्नियुक्त नागडना महामात्यपणामां थयेली उल्लेखायेली छे. " पाटणभंडार ( नं. १ संघवी पाडा ) मां ते छे अने एक त्रीजी ताडपत्रीय प्रति पण त्यां ज छे जे प्रांते किंचित् अपूर्ण छे. आ ते जेसलमीरमां एक अने पाटणमां बे एम कुल्ले ऋण ताडपत्रीय प्रतिओ जाणवामां छे. २ आ महेश्वरसूरि रचित प्राकृत गाथाबद्ध पंचमी कहा' पछी धर्कटवंश वणिक् धनपाळ रचित अपभ्रंश भाषा बद्ध 'भविस्सयत्त कहा' आवे छे. आ कथा 'जैन ग्रंथावलि' (जै. ग्रं.) मां महेंद्रसूरि के महेश्वरसूरिने नामे खोटी ते चडेली छे.' 'जैनग्रंथावलि 'ना पृ. २५६नी पाद नोंदमां एम लख्युं छे के "आ कथा पंचमी माहात्म्य पर रचेली छे. जेसलमीरनी हिरालाले करेली पोतानी टीपमां तथा लींबडीनी टीपमां एना कर्त्ता महेश्वरसूरि लख्या छे. खंभातना शेठ नगीनदासना भंडारमां महेंद्रसूरिनुं नाम आपीने सदरहु प्रति ( भविष्यदत्ताख्याननी ) लख्यानो संवत् १२१४ नोंघेलो छे. हालमां पं० श्री आनंदसागरजी जणावे छे के आ सिवाय बीजी एक धनपालकृत पण छे पण ते अमोने उपलब्ध नथी." आ प्रमाणेना वाक्यो 'जैन ग्रंथावलि'ना उपर्युक्त पृष्ठनी पादनोंधमां छे. मने एम लागे छे के आ कृति के जेनुं नाम 'जैन ग्रंथावलि 'मां भविष्यदत्ताख्यान छे तथा जेना रचनार एमां महेंद्रसूरि जणाव्या छे अने जेनी प्रतिओ जेसलमीर, लींबडी तथा खंभातमां छे एम तेमां जणाव्युं छे तेमज जेनी गाथा संख्या २००० गणाववामां आवी छे ते बीजो कोई ग्रन्थ नहि पण महेश्वरसूरिकृत पंचमी कहा' ज होवी जोईए. मारा आ अनुमाननी पुष्टिमां पं० लालचंद्र भ. गांधीनुं निम्नोक्त वाक्य खास नोंधवा जेवुं छे :- "P. P. १/६७ इत्यत्र 'महेन्द्रसूरिकृतं भविदत्ता - ख्यानं' दर्शितं तदप्येतदेव महेश्वरसूरिरचितं भविष्यदत्तकथावसानं 'पञ्चमीमाहात्म्यं' सम्भाव्यते । लेखक - स्खलनातः प्रेक्षकस्यापि स्खलना परम्परयाऽन्यत्रावतीर्णा प्रेक्ष्यते ।"" पीटर्सनना पहेला रिपोर्टना ६७ नं. मां उल्लेखेल पुस्तक अने 'जैन ग्रंथावलि' निर्दिष्ट पुस्तक बन्ने एकज होय एम लागे छे. एटले महेन्द्र ( के महेश्वर ) सूरिरचित भविष्यदत्ताख्यान ते वीजुं कांई नहि पण पं. ला. भ. गांधी जणावे छे तेम " महेश्वरसूरिरचितं भविष्यदत्तकथावसानं 'पञ्चमीमाहात्म्यं" होवुं जोईए. 'जैन ग्रंथावलि 'मां महेश्वरसूरि रचित 'भविष्य - दत्ताख्यान' (२००० गाथा - लींबडी) नो बीजो उल्लेख पृ. २२८ उपर करे छे ते पण 'पंचमी कहा ' विषेनो ज समजवो. आ 'भविस्सयत्त कहा' के जेनुं बीजुं नाम 'सुय पंचमी कहा "" पण छे तेनो रचनार धनपाल छे अने ते धनपाल धर्कट वंशनो हतो. तेनी बावीस संधिओ छे. आ कथा अपभ्रंशमां लखायेली छे अने तेनो नायक भविष्यदत्त राजा छे. ज्ञानपंचमीना फळनुं तेमां वर्णन करेलुं छे. तेनो लेखक धनपाल पोते ज पोतानो परिचय आपतां कहे छे के तेना पितानुं नाम माएसर हतुं अने मातानुं नाम धनश्री हतुं तेनुं पद्य लखाण धवल अने पुष्पदंत कविना लखाण साथै सरखावी शकाय तेवुं छे. ना अपभ्रंश करतां प्राचीन लागे छे पण ते उपरथी तेनी अने हेमचंद्रनी वच्चे बे तेनी अपभ्रंश हेमचंसैकानुं अंतर होय एम ५ जुओ मोहनलाल दलीचंद देसाई कृत 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' - सचित्र (जै. सा. सं. इ.), मुंबई, १९३३, पृ. ४०८ तथा उपर्युक्त प. भा. प्र. सू. नं. ४०. ६ उपर्युक्त प. भा. ग्र. सू. नं. २९. ७ आ कथा याकोबीए जर्मनीमां सन १९१८ मां संपादित करी अने त्यार बाद गा. ओ. सी. मां नं. २० मां स्व. दलाले प्रो. गुणेनी प्रस्तावना अने टिप्पण सहित संशोधित करी बहार पाडी. ८ जुओ श्री जैन श्वेतांबर कोन्फरन्स, मुंबई तरफथी वि. सं. १९६५मां प्रकाशित 'जैनमन्थावलि' (जै. प्र. ) पृ. २२८ तथा पृ. २५६. ९ उपर्युक्त जे. भा. प्र. सू. पू. ४४. १० मोहनलाल दलीचंद देसाई कृत 'जैन गुर्जर कविओ' (जै. गू. क. ), प्रथमभाग, मुंबई, १९२६, पृ. ३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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