Book Title: Gyanpanchami Katha
Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 32
________________ ३ कल्पी तेने दशमी सदीमां मुकवानुं युक्तियुक्त लागतुं नथी." उलटुं, इसवी सननी बारमी सदी आसपास थयो होवानुं सामान्यपणे स्वीकारायुं छे." प्रस्तावना धाराधीश मुंजनो अने भोजनो पण अति मानीतो, सरखती बिरुदने प्राप्त थयेल, पाईयलच्छी', 'तिळकमंजरी' वगेरेनो रचनार विप्र सर्वदेवनो पुत्र धनपाल उपर्युक्त धनपाल करतां बीजो" अने तेना पछी थयो होवानुं मनाय छे. 'भविस्सयत कहा 'ना रचनार धनपालने विन्टरनित्झ, याकोबीने अनुसरी, दिगंबर जैन श्रावक कहे छे." धर्कटवंश एज उपकेश - ऊकेश वंश" अने ऊकेश एटले ओसवाल वंश एवं पण कथन जोवामां आवे छे. सारांश ए के विक्रमनी अगीआरमी सदीमां के ते पहेलां थई गयेला श्वेतांबराचार्य श्री महेश्वरसूरि रचित प्राकृत गाथामय पंचमी कथाना दसमा कथानक भविष्यदत्त उपरथी " ईसवी सननी बारमी सदीमां थयेल मनाता धर्कटवंश वणिक् दिगंबर जैन धनपाले 'भविस्सयत्त कहा अथवा सुयपंचमी कहा' अपभ्रंश भाषामां रची. धनपालनी 'भविस्सयत्त कहा' पछी तेरमी अने चौदमी सदीमां कोइए संस्कृत - प्राकृतादिमां पंचमी कथा विषे कांई लख्युं होय तेवुं जाणवामां नथी. पंदरमी सदीमां विबुध श्रीधर नामना कोई दिगंबर जैन विद्वाने 'भविष्यदत्त चरित' संस्कृतमां लख्यं होवानुं बहार आव्युं छे. आ भविष्यदत्त चरित्र पंचमी व्रतने अनुलक्षीने धनपालना ' भविस्सयत्त कहा'नी पेठे लखवामां आव्युं होय एवो पूरतो संभव छे. भाषा संस्कृत छे. पत्र संख्या ७९नी छे अने लिपिसंवत् १४८६ नो छे. ए उपरथी एम मानी शकाय के ते संवत् १४८६ पहेला थयेल हशे दिल्हीना धर्मपुरा महोल्लामां आवेला नयामंदिरना भंडारमां आ ग्रन्थनी प्रति छे. जुओ " अनेकांत " – जून, १९४१ - पृष्ठ - ३५०. आ पछी विक्रमनी सोळमी सदीमां सिंहसेन अपरनाम रईधुए ( दिगंबर जैन ) ' महेसर चरिय, ' 'भविस्सयत्त चरियादि' अपभ्रंश भाषामां रचेला जणाय छे." आ ' भविस्सयत्त चरिय' पंचमी व्रतना फळना दृष्टांत रूपे महेश्वरसूरि धनपाल, विबुध श्रीधरनी माफक सिंहसेने लख्युं होय ए तद्दन स्वाभाविक छे. आ ११ आधी विरुद्ध अभिप्राय माटे जुओ उपर्युक्त पुस्तकनुं पृ. ३८ तथा जै. सा. सं. इ. नुं पृ. ३३० उपरनुं वाक्य " धनपाल कवि लगभग दसमी सदीमां थयो." एज पुस्तकना पृ. १८८ उपर "आ पैकी भविष्यदत्तकथा परथी धर्कट वणिक् धनपाले अपभ्रंशमां भविस्सयत्त कहा -- पंचमी कहा रची जणाय छे" वाक्य लखेलुं छे. महेश्वरसूरि इ. स ना दशमा सैकामां प्रायः थया एम तो श्री. देसाई तेज पुस्तकना पृ. १८७ उपर कबुल करे छे तो पछी महेश्वरसूरिना 'पंचमी कथां'तर्गत भविष्यदत्त कथानकनो आधार लई 'भविस्सयत्त कहा' लखनार धनपालने दशमी सदीमां क्यांथी मुकाशे ? १२ जुओ उपर्युक्त प. भा. प्र. सू. ना प्रास्ताविक ( अंग्रेजी ) ना पृ. ६२ उपरनी पहेली पादनोंध. १३ विन्टरनित्झ कृत 'हिस्टरी ऑफ इन्डीअन लिटरेचर' चॉ. २. पू. ५३२ उपरनी चोथी पादनोंध. १४ उपर्युक्त पुस्तकनुं पृ. ५३२. १५ उपर्युक्त प. भा. प्र. सू. पृ. ३२७ तथा पृ. ३३९. १६ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ४५३ उपरनी ४४१ मी पादनोंध, १७ सरखावो उपर्युक्त जे. भा. ग्र. सू. ना पृ. ४४ उपरनुं निम्नोक्त वाक्य:- साम्प्रतं प्रसिद्धा धर्कटवणिग्वंशो द्भवधनपालनिर्मिता.....अपभ्रंशा भविस्सयत्त कहा ( पञ्चमीकहा ) अस्या एव प्रान्तकथायाः प्रपंचरूपा ॥ अहिंआ एक वात खास स्पष्ट करी लेवा लायक छे. एक 'पंचमी चरिअ' त्रिभुवन स्वयंभु नामना आठमी-नवमी शताब्दिमां (जुओ भारतीय विद्या ( त्रैमासिक ) भा. १; अं. २, पृ. १७७ ) थएल मनाता कविए लख्युं होवानो उल्लेख मळी आव्यो छे (जुओ भारतीय विद्या ( त्रैमासिक ) भा. २; अं. १ पृ. ५९ ) तो पछी महेश्वरसूरि अने धनपाल पहेला पण पंचमी व्रत उपर लस्नायुं होवानुं मानवुं पडे. आ ग्रन्थ जोवा मळ्ये घणी बाबतो उपर प्रकाश पडवा संभव छे. १८ उपर्युक्त जै. सा. सं. इ. पृ. ५२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162