Book Title: Gyanpanchami Katha Author(s): Maheshwarsuri, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 15
________________ ४६ सिंघी जैन ग्रन्थमाला फ तेमणे मध्यप्रांतोमां आवेला कोरीया स्टेटमा कोलसानी खाणोना उद्योगनो पायो नांख्यो अने बीजी तरफ दक्षिणना शकति अने अकलतराना राज्योमा आवेली चूनाना पत्थरोनी खाणोना, तेम ज बेळगाम, सावंतवाडी, इचलकरंजी जेवा स्थानोमां आवेली 'बोकसाइट' नी खाणोना विकासनी शोध करवा पाछळ पोतानु लक्ष्य परोव्यु. कोलसाना उद्योग अथै तेमणे 'मेसर्स डालचंद बहादरसिंह' ए नामथी नवी पेढीनी स्थापना करी जे आजे हिंदुस्थानमां एक अग्रगण्य पेढी गणाय छ. ए उपरांत तेमणे बंगालना चोवीस परगणा, रंगपुर, पूर्णीया अने मालदहा विगेरे जिल्लाओमां, म्होटी जमीनदारी पण खरीद करी अने ए रीते बंगालना नामांकित जमीनदारोमां पण तेमणे पोतानुं खास स्थान प्राप्त कयु. बाबू डालचंदजीनी आवी सुप्रतिष्ठा केवळ व्यापारिक क्षेत्रमा ज मर्यादित होती. तेओ पोतानी उदारता अने धार्मिकता माटे पण एटला ज सुप्रसिद्ध हता-तेमनी परोपकारवृत्ति पण तेटली ज प्रशंसनीय हती. परंतु, परोपकारसुलभ प्रसिद्धिथी तेओ प्रायः दूर रहेता हता. घणा भागे तेओ गुप्तरीते ज आर्थिजनोने पोतानी उदारतानो लाभ आपता. तेमणे पोताना जीवनमां लाखोर्नु दान कर्यु हशे पण तेनी प्रसिद्धि के नोंध तेमणे भाग्ये ज करवा इच्छी हशे. तेमना सुपुत्र बाबू श्री बहादुर सिंहजीए प्रसंगोपात्त चर्चा करतां जणाव्युं हतुं, के तेओ जे कांई दान आदि करता, तेनी खबर तेमने पोताने (पुनने) पण भाग्ये ज थती. आथी तेमना जाहेर दानो अंगेनी मात्र नीचेना २-४ प्रसंगोनी ज माहिती मळी शकी हती. सन १९२६ मा 'चित्तरंजन' सेवा सदन माटे कलकत्तामा फाळो करवामां आव्यो त्यारे एक वार खुद महात्माजी एमना मकाने गया हता अने ते वखते तेमणे वगर माग्ये ज महात्माजीने ए कार्य माटे १०००० रूपिया आप्या हता. १९१७ मां कलकत्तामां 'गवन्मेंट हाउस'ना मेदानमां, लॉर्ड कार्माइकलना आश्रय नीचे रेडक्रॉस माटे एक मेळावडो थयो हतो तेमां तेमणे २१००० रूपिया आप्या हता. तेम ज प्रथम महायुद्ध वखते तेमणे ३,००,००० रूपियाना 'वॉर बॉण्डस्' खरीद करीने ए प्रसंगे सरकारने फाळामा मदद करी हती. पोतानी छेल्ली अवस्थामां तेमणे पोताना निकट कुटुंबीजनो-के जेमनी आर्थिक स्थिति बहुज साधारण प्रकारनी हती तेमने-रूपिया १२ लाख व्हेंची आपवानी व्यवस्था करी हती जेनो अमल तेमना सुपुत्र बाबु बहादुर सिंहजीये कर्यो हतो. बाबू डालचंदजीनुं गार्हस्थ्य जीवन बहु ज आदर्शरूप हतुं. तेमना धर्मपत्नी श्रीमती मनुकुमारी एक आदर्श अने धर्मपरायण पनी हता. पति-पत्नी बने सदाचार, सुविचार अने सुसंस्कारनी मूर्ति जेवा हता. डालचंदजीन जीवन बहु ज सार्दु अने साधुत्व भरेलु हतुं. व्यवहार अने व्यापार बनेमां तेओ अत्यंत प्रामाणिक अने नीतिपूर्वक वर्तनारा हता. खभावे तेओ खूब ज शान्त अने निरभिमानी हता. ज्ञानमार्ग उपर तेमनी ऊंडी श्रद्धा हती. तत्त्वज्ञानविषयक पुस्तकोनुं वाचन अने श्रवण तेमने अत्यंत प्रिय हतुं. किन नगर कॉलेजना एक अध्यात्मलक्षी बंगाली प्रोफेसर नामे बाबू ब्रजलाल अधिकारी-जेओ योगविषयक प्रक्रियाना अच्छा अभ्यासी अने तत्त्वचिंतक हता-तेमना सहवासथी बाबू डालचंदजीने पण योगनी प्रक्रिया तरफ खूब रुचि थई गई-हती अने तेथी तेमणे तेमनी पासेथी ए विषयनी केटलीक खास प्रक्रियाओनो ऊंडो अभ्यास पण कर्यो हतो. शारीरिक स्वास्थ्य अने मानसिक पावित्र्यनो जेनाथी विकास थाय एवी, केटलीक व्यावहारिक जीवनने अत्यंत उपयोगी, यौगिक प्रक्रियाओनो तेमणे पोताना पत्नी तेम ज पुत्र, पुत्री आदिने पण अभ्यास करवानी प्रेरणा करी हती. जैन धर्मना विशुद्ध तत्त्वोना प्रचार अने सर्वोपयोगी जैन सहित्सना प्रसार माटे पण तेमने खास रुचि रहेती हती भने र कार्य माटे काईक विशेष सक्रिय प्रयत्न करवानी तेमनी सारी उत्कंठा मागी हती. कलकत्तामा २-४ लाखना खर्च आ कार्य करनारूं कोई साहित्यिक के शैक्षणिक केन्द्र स्थापित करवानी योजना तेओ विचारी रह्या हता, ए दरम्यान सन् १९२७ (वि. सं. १९८४) मां कलकत्तामा तेमनो स्वर्गवास थयो. पंडितप्रवर श्री सुखल बाबू डालचंदजी सिंघी, पोताना समयना बंगालनिवासी जैन समाजमां एक अत्यंत प्रतिष्ठित व्यापारी, दीर्घदशी उद्योगपति, म्होटा जमीनदार, उदारचित्त सद्गृहस्थ अने साधुचरित सत्पुरुष हता. तेओ पोतानी ए सर्व संपत्ति अने गुणवत्तानो समग्र वारसो पोताना एक मात्र पुत्र बाबू बहादुर सिंहजीने सोंपता गया, जेमणे पोताना ए पुण्यश्लोक पितानी स्थूल संपत्ति अने सूक्ष्म सत्कीर्ति-बनेने घणी सुंदर रीते वधारीने पिता करतांय सवाई श्रेष्ठता मेळववानी विशिष्ट प्रतिष्ठा प्राप्त करी. बाबू श्री बहादुर सिंहजीमा पोताना पितानी व्यापारिक कुशळता, व्यावहारिक निपुणता भने सांस्कारिक सन्निष्ठा तो संपूर्ण अंशे वारसागतरूपे उतरेली हती ज, परंतु ते उपरांत तेमनामा बौद्धिक विशदता, कलात्मक रसिकता अने विविध विषयप्राहिणी प्राञ्जल प्रतिभानो पण उच्च प्रकारनो सन्निवेश थयो हतो अने तेथी तेओ. एक असाधारण व्यक्तित्व धरावनार महानुभावोनी पंक्तिमा स्थान प्राप्त करवानी योग्यता मेळवी शक्या हता. तेओ पोताना पिताना एकमात्र पुत्र होवाथी तेमने पिताना विशाळ कारभारमा नानपणथी ज लक्ष्य आपवानी फरज पडी हती अने तेथी तेभो हाईस्कूलनो अभ्यास पूरो करवा सिवाय कॉलेजनो विशेष अभ्यास करवानो अवसर मेळवी शक्या न हता. छतां तेमनी ज्ञानरुचि बहु ज तीव्र होवाभी, तेमणे पोतानी मेळे ज, विविध प्रकारना साहिल्यना बाँचननो अभ्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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