________________
yam गीता दर्शन भाग-1 AM
होता है कि यह आपका है कि परमात्मा का है। जब पहली दफा | |फायड का ऐसा जरूर खयाल है कि वह जो अचेतन मन आता है तो डांवाडोल होता है मन कि मेरा ही होगा और अहंकार | प्रा है हमारा, वह भगवान से ही नहीं, शैतान से भी जुड़ा की इच्छा भी होती है कि मेरा ही हो। लेकिन धीरे-धीरे, धीरे-धीरे
होता है। असल में भगवान और शैतान हमारे शब्द जब दोनों चीजें साफ होती हैं और पता चलता है कि आप और इस हैं। जब किसी चीज को हम पसंद नहीं करते, तो हम कहते हैं, सत्य में कहीं कोई तालमेल नहीं बनता, तब फासला दिखाई पड़ता | शैतान से जुड़ा है; और किसी चीज को जब हम पसंद करते हैं, तो है, डिस्टेंस दिखाई पड़ता है।
हम कहते हैं, भगवान से जुड़ा है। लेकिन मैं इतना ही कह रहा हूं विज्ञान की उम्र नई है अभी—दो-तीन सौ साल। लेकिन कि अज्ञात से जुड़ा है। और अज्ञात मेरे लिए भगवान है। और दो-तीन सौ साल में वैज्ञानिक विनम्र हुआ है। आज से पचास साल भगवान में मेरे लिए शैतान समाविष्ट है, उससे अलग नहीं है। पहले वैज्ञानिक कहता था, जो खोजा, वह हमने खोजा। आज नहीं । असल में जो हमें पसंद नहीं है, मन होता है कि वह शैतान ने कहता। आज वह कहता है, हमारी सामर्थ्य के बाहर मालूम पड़ता | किया होगा। जो गलत, असंगत नहीं है, वह भगवान ने किया होगा। है सब। आज का वैज्ञानिक उतनी ही मिस्टिसिज्म की भाषा में बोल | ऐसा हमने सोच रखा है कि हम केंद्र पर हैं जीवन के, और जो हमारे रहा है, उतने ही रहस्य की भाषा में, जितना संत बोले थे। | पसंद पड़ता है, वह भगवान का किया हुआ है, भगवान हमारी सेवा
इसलिए जल्दी न करें! और सौ साल, और वैज्ञानिक ठीक वही | कर रहा है। जो पसंद नहीं पड़ता, वह शैतान का किया हुआ है; भाषा बोलेगा, जो उपनिषद बोलते हैं। बोलनी ही पड़ेगी वही भाषा, | | शैतान हमसे दुश्मनी कर रहा है। यह मनुष्य का अहंकार है, जिसने जो बुद्ध बोलते हैं। बोलनी ही पड़ेगी वही भाषा, जो अगस्तीन और | शैतान और भगवान को भी अपनी सेवा में लगा रखा है। फ्रांसिस बोलते हैं। बोलनी ही पड़ेगी। बोलनी पड़ेगी इसलिए कि | भगवान के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं। जिसे हम शैतान कहते जितना-जितना सत्य का गहरा अनुभव होगा, उतना-उतना व्यक्ति | हैं, वह सिर्फ हमारी अस्वीकृति है। जिसे हम बुरा कहते हैं, वह का अनुभव क्षीण होता है। और जितना सत्य प्रगट होता है, उतना सिर्फ हमारी अस्वीकृति है। और अगर हम बुरे में भी गहरे देख ही अहंकार लीन होता है। और एक दिन पता चलता है कि जो भी पाएं, तो फौरन हम पाएंगे कि बुरे में भला छिपा होता है। दुख में जाना गया है, वह प्रसाद है; वह ग्रेस है; वह उतरा है; उसमें मैं नहीं भी गहरे देख पाएं, तो पाएंगे कि सुख छिपा होता है। अभिशाप में हूं। और जो-जो मैंने नहीं जाना, उसकी जिम्मेवारी मेरी है, क्योंकि | भी गहरे देख पाएं, तो पाएंगे कि वरदान छिपा होता है। असल में
तना मजबूत था कि जान नहीं सकता था। मैं इतना गहन था कि बुरा और भला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। शैतान के खिलाफ सत्य नहीं उतर सकता था। सत्य उतरता है खाली चित्त में, शून्य | जो भगवान है, उसे मैं अज्ञात नहीं कह रहा; मैं अज्ञात उसे कह रहा चित्त में। और असत्य उतारना हो, तो मैं की मौजूदगी जरूरी है। हूं, जो हम सबके जीवन की भूमि है, जो अस्तित्व का आधार है।
विज्ञान की खोज को बाधा नहीं पड़ेगी। जो खोज हुई है, वह भी | | उस अस्तित्व के आधार से ही रावण भी निकलता है, उस अस्तित्व अज्ञात के संबंध से ही हई है: समर्पण से हुई है। और जो खोज होगी के आधार से ही राम भी निकलते हैं। उस अस्तित्व से अंधकार भी आगे, वह भी समर्पण से ही होगी। समर्पण के द्वार के अतिरिक्त | | निकलता है, उस अस्तित्व से प्रकाश भी निकलता है। सत्य कभी किसी और द्वार से न आया है, न आ सकता है। हमें अंधकार में डर लगता है, तो मन होता है, अंधकार शैतान
| पैदा करता होगा। हमें रोशनी अच्छी लगती है, तो मन होता है कि
भगवान पैदा करता होगा। लेकिन अंधकार में कुछ भी बुरा नहीं है, प्रश्न: भगवान श्री, आपका यह स्टेटमेंट बड़ी दिक्कत | रोशनी में कुछ भी भला नहीं है। और जो अस्तित्व को प्रेम करता में डाल देता है कि अचेतन मन भगवान से जुड़ा हुआ है, वह अंधकार में भी परमात्मा को पाएगा और प्रकाश में भी होता है। यह तो जुंग ने पीछे से बताया, मिथोलाजी परमात्मा को पाएगा। का कलेक्टिव अनकांशस से संबंध जोड़कर। मगर सच तो यह है कि अंधकार को भय के कारण हम कभी-उसके
यड कहता है कि वह शैतान से भी जुड़ा होता है, सौंदर्य को-जान ही नहीं पाते; उसके रस को, उसके रहस्य को तो तकलीफ बढ़ जाती है।
हम कभी जान ही नहीं पाते। हमारा भय मनुष्य निर्मित भय है।