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गीता दर्शन भाग-1 AM
जीऊं या मरूं! लेकिन बहा जा रहा है। नदी को न उसकी आवाज | | एक हुआ जा सकता है। और तब, अपनी इच्छा खो जाती है, सुनाई पड़ती है, न उसके संघर्ष का पता चलता है। एक छोटा-सा | | उसकी इच्छा ही शेष रह जाती है। तिनका! नदी को उसका कोई भी पता नहीं है। नदी को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन तिनके को बहुत फर्क पड़ रहा है। उसकी जिंदगी बड़ी मुसीबत में पड़ गई है, बहा जा रहा है। नहीं लड़ेगा तो जहां पहुंचेगा, | प्रश्नः भगवान श्री, वैज्ञानिक-सिद्धि में व्यक्ति का वहीं पहंचेगा लडकर भी। लेकिन यह बीच का क्षण. यह बीच का अपना कछ होता है। और अज्ञात इस वैज्ञानिककाल, दुख, पीड़ा, द्वंद्व और चिंता का काल हो जाएगा। सिद्धि में कैसे उतरता होगा, यह तकलीफ की बात
उसके पड़ोस में एक दूसरे तिनके ने छोड़ दिया है अपने को। वह बन जाती है! नदी में आड़ा नहीं पड़ा है, सीधा पड़ा है, नदी जिस तरफ बह रही है उसी तरफ, और सोच रहा है कि मैं नदी को बहने में सहायता दे रहा हूं। उसका भी नदी को कोई पता नहीं है। वह सोच रहा है, मैं
सा साधारणतः लगता है कि वैज्ञानिक खोज में व्यक्ति नदी को सागर तक पहुंचा ही दूंगा; मेरे साथ है तो पहुंच ही जाएगी।
की अपनी इच्छा काम करती है; ऐसा बहुत ऊपर से नदी को उसकी सहायता का भी कोई पता नहीं है।
देखने पर लगता है; बहुत भीतर से देखने पर ऐसा नहीं लेकिन नदी को कोई फर्क नहीं पड़ता, उन दोनों तिनकों को बहुत | | लगेगा। अगर जगत के बड़े से बड़े वैज्ञानिकों को हम देखें तो हम फर्क पड़ रहा है। जो नदी को साथ बहा रहा है, वह बड़े आनंद में | | बहुत हैरान हो जाएंगे। जगत के सभी बड़े वैज्ञानिकों के अनुभव है, वह बड़ी मौज में नाच रहा है; और जो नदी से लड़ रहा है, वह बहुत और हैं। कालेज, युनिवर्सिटीज में विज्ञान की जो धारणा पैदा बड़ी पीड़ा में है। उसका नाच, नाच नहीं है, एक दुखस्वप्न है। होती है, वैसा अनुभव उनका नहीं है। उसका नाच उसके अंगों की टूटन है; वह तकलीफ में पड़ा है, हार | __ मैडम क्यूरी ने लिखा है कि मुझे एक सवाल दिनों से पीड़ित किए रहा है। और जो नदी को बहा रहा है, वह जीत रहा है। | हुए है। उसे हल करती हूं और हल नहीं होता है। थक गई हूं, ___ व्यक्ति ब्रह्म की इच्छा के अतिरिक्त कुछ कभी कर नहीं पाता है, | परेशान हो गई हूं, आखिर हल करने की बात छोड़ दी है। और एक लेकिन लड़ सकता है, इतनी स्वतंत्रता है। और लड़कर अपने को | रात दो बजे वैसे ही कागजात टेबल पर अधूरे छोड़कर सो गई हूं चिंतित कर सकता है, इतनी स्वतंत्रता है।
और सोच लिया कि अब इस सवाल को छोड़ ही देना है। सार्च का एक वचन है, जो बड़ा कीमती है। वचन है, ह्यूमैनिटी थक गया व्यक्ति। लेकिन सुबह उठकर देखा है कि आधा इज़ कंडेम्ड टु बी फ्री—आदमी स्वतंत्र होने के लिए मजबूर है; | सवाल जहां छोड़ा था, वह सुबह पूरा हो गया है। कमरे में तो कोई विवश है, कंडेम्ड है, निंदित है-स्वतंत्र होने के लिए। आया नहीं, द्वार बंद थे। और कमरे में भी कोई आकर उसको हल
लेकिन आदमी अपनी स्वतंत्रता के दो उपयोग कर सकता है। कर सकता था, जिसको मैडम क्यूरी हल नहीं कर सकती थी, अपनी स्वतंत्रता को वह ब्रह्म की इच्छा से संघर्ष बना सकता है। इसकी भी संभावना नहीं है। नोबल-प्राइज-विनर थी वह महिला। और तब उसका जीवन दुख, पीड़ा, एंग्विश, संताप का जीवन घर में नौकर-चाकर ही थे, उनसे तो कोई आशा नहीं है। वह तो होगा। और अंततः पराजय फल होगी। और कोई व्यक्ति अपनी | और बड़ा मिरेकल होगा कि घर में नौकर-चाकर आकर हल कर स्वतंत्रता को ब्रह्म के प्रति समर्पण बना सकता है, तब जीवन आनंद दें। लेकिन हल तो हो गया है। और आधा ही छोड़ा था और आधा का, ब्लिस का, नृत्य का, गीत का जीवन होगा। और अंत? अंत पूरा है। तब बड़ी मुश्किल में पड़ गई। सब द्वार-दरवाजे देखे। कोई में विजय के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। वह जो तिनका परमात्मा उतर आए, इसकी भी आस्था उसे नहीं हो सकती। कोई सोच रहा है कि नदी को साथ दे रहा हूं, वह विजयी ही होने वाला परमात्मा ऐसे ऊपर से उतर भी नहीं आया था। है। उसकी हार का कोई उपाय नहीं है। और जो नदी को रोक रहा लेकिन गौर से देखा तो पाया कि बाकी अक्षर भी उसके ही हैं। है, वह हारने ही वाला है, उसकी जीत का कोई उपाय नहीं है। तब उसे खयाल आना शुरू हुआ कि रात वह नींद में सपने में उठी।
ब्रह्म की इच्छा को नहीं जाना जा सकता है, लेकिन ब्रह्म के साथ सपने का उसे याद आ गया कि वह सपने में उठी है। उसने सपना