Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 20
________________ १३ राजाओं एवं -हीमती आदि अनेक सणियों के साथ दीक्षा ग्रहण की । -हीमती देवी ने उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष में गई । मुनि अजितसेन ने निरतिचार संयम की आराधना कर अच्युत कल्प में महर्द्धिक देव भव प्राप्त किया । (गा. २६२९ तक) (छठाँ पर्व पृ. १०१) ___ अच्युत कल्प से चवकर अजितसेन मुनि के जीव ने रलसंचय नाम के नगर के राजा कनकप्रभ की रानी सुवर्णमाला के उदर से तुमने जन्म लिया और तुम्हारा नाम पद्मनाभ रखा है । राजन् ! तुम वही पद्मनाभ हो। हे राजन् ! मैने तुम्हारे पूर्व भव की बात कही। अब मैं तुम्हारे आगामी भव का कथन करूंगा। उसे तुम ध्यान पूर्वक सुनो। राजा ने कहा -- भगवन् ! आपने जो मेरा पूर्व भव बताया वह यथार्थ ही है । किन्तु अबोध जन के विश्वास के लिए आप ऐसा प्रमाण उपस्थित करें जिससे लोग आप की बात पर विश्वास करने लगे । आचार्य ने कहा - राजन् ! तुम ठीक कह रहे हो । आज से दसवें दिन एक हाथी अपने यूथ से भ्रष्ट होकर तुम्हारे नगर में प्रवेश करेगा । उसके बाद की घटना तुम स्वयं ही जान जाओगे । मुनि के मुख से यह बात सुन राजा और नगरजन नगर में लौट आये । ठीक दसवें दिन एक मदान्ध हाथी ने अपने यूथ से बिछुडकर नगर में प्रवेश किया । उन्मत्त अवस्था में हाथी ने सारे नगर में उपद्रव मचाया । उसने अनेक नगरजनों को घायल किया। नगरजनों के अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी वह हाथी किसी के वश में नहीं आया । राजा पद्मनाभ को जब इस बात का पता लगा तो वह बड़ी वीरता से हाथी के सामने गया और उस पर चढ़कर उसके मर्मस्थानों पर प्रहार कर उसे अपने वश में कर लिया । अब राजा उस हाथी पर बैठ कर बड़े गर्व के साथ नगर में भ्रमण करने लगा । एक दिन राजा उसी हाथी पर आरूढ हो कर श्रीधर मुनि के पास उद्यान में पहुंचा और मुनिवर की सच्ची भविष्यवाणी के लिए वह उनकी प्रशंसा करने लगा । श्रीधर मुनि ने राजा से कहा - राजन् ! यह हाथी पूर्व भव में महापुर का राजा धरणिकेतू था । वह बड़ा निष्ठुर प्रजा शोषक, लंपट, ठग, और चोर था । उसने वसन्धर नाम के श्रेष्ठी को उसका सर्वस्व हरण कर उसे भिखारी के वेश में नगर से निकाल दिया था। वह वहां से निकला और धरणिकेतू राजा के शत्रु धरण से जा मिला । धरण की सहायता से वसुंधर श्रेष्ठी ने धरणिकेतू पर आक्रमण कर दिया और उसे पराजित कर उसे मार डाला । धरणकेतू मरकर नरक में गया । नारकी के दुःखों को भोगकर वहां से मरकर वह हाथी के रूप में यहां जन्मा है । युवा होने पर यह हथनियों का स्वामी बना । हथनियों के साथ क्रीडा करते देख बनचरों ने इस का नाम वनकेलि रखा । एक दिन अन्य यूथपति हाथी ने इसे मार कर जंगल से भगा दिया । वहां से भागकर यह तुम्हारे नगर में आया है । तुमने उसे कुशलता पूर्वक अपने वश में कर लिया । मुनि के मुख से हाथी का वृत्तान्त सुन राजा को वैराग्य हुआ । उसने श्रावक के व्रत ग्रहण किये और वह अपने नगर लौट आया । (गा.२९०२) ___ एक दिन पृथ्वीपाल नाम के राजा ने दूत के साथ पद्मनाभ राजा को सन्देश भिजवाया कि वनकेलि नाम का हाथी मेरे राज्य से भागकर आपके यहां आया है । यह हाथी रत्न हमारे राज्य का है अतः आप उसे लौटा दे। यदि आप नहीं लौटाएंगे तो हम आप से युद्ध कर उसे छीन लेंगे । दूत पद्मनाभ के पास पहुंचा । उसने अपने राजा का सन्देश कह सुनाया । पद्नाभ ने पृथ्विपाल के सन्देश को तिरस्कृत करते हुए कहा - यह हाथी अब हमारा ही है । इसे हम किसी भी मूल्य पर वापस नहीं करेंगे । इसके लिए हमे भले ही युद्ध करना पड़े। तिरस्कृत दूत पृथ्विपाल के पास पहुंचा और उसने पद्मनाभ का प्रत्युत्तर कह सुनाया। क्रुद्ध पृथ्विपाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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