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भिषकर्म-सिद्धि
( स्पर्शन या अंगुलिताडन ), कान से सुनकर सीधे या यन्त्र के साहाय्य से (श्रवण Auscultation), नाक से सूचकर (Smell ), अर्थात् Inspecti on, Palpation, Purcussion & Auscultation सक्षेपत. इन प्रकारो से रोगी की परीक्षा करके रोग पहचानने की कोशिश की जाती है। विशिष्ट विधियो का सम्बन्ध, सामान्य विधियो से प्राप्त फलो के ऊपर अर्थात् जो कुछ भी हेतु, लक्षण, चिह्न, उपशय, दोप-दूण्य-सम्मूर्छन आदि प्राप्त हो उनके साथ ग्रन्थोक्त लक्षणो का साधर्म्य देखकर (निदानपचक विधि से ) रोग के विनिश्च से है। इसी भाव का द्योतन वाग्भट की समाधान-सूचक उक्ति से हो रहा है। उनका कथन है कि 'दर्शन, स्पर्शन एव प्रश्न के द्वारा रोगी की परीक्षा की जाती है तथा निदान-पूर्वरूप-रूप-उपशय एव सम्प्राप्ति के द्वारा रोग का विनिश्चय करना होता है।' सक्षेप मे रोगी की परीक्षा ( Examination of the Patient or case-taking ) के लिये पड्विध, त्रिविध या अष्टविध साधन वतलाये गये है जिनमे रोगी को देखकर, छूकर, या प्रश्नो के द्वारा उसकी व्यथाओ का ज्ञान कर परीक्षा की जाती है। इसमे स्वसदृश अपने देख कर या परसहश दूसरे के द्वारा दिखलाकर (जैसे स्त्रीगुह्याङ्गो की परीक्षा किसी अन्य स्त्री के द्वारा करा कर ) दोनो प्रकार से ज्ञातव्य विषयो की जानकारी करनी होती है । 'निदानपचक' नामक पाँच साधनो से केवल रोग का निर्णय ( Diagnosis ) किया जाता है। इस प्रकार रोग-विज्ञानोपाय मे रोगी तथा रोग दोनो के जानने का विमर्श पाया जाता है। रोगी की परीक्षा करने की जो ऊपर विविध प्रकार की अष्ट विध या त्रिविध विधियाँ बतलाई गईं उन सवो का समावेश सुश्रुतोक्त पड्विध साधनो मे ही हो जाता है-'षड्विधो हि रोगाणा विज्ञानोपाय , पञ्चभि श्रोत्रादिभि प्रश्नेन चेति ।'
आधुनिक ग्रन्थो मे दर्शन, स्पर्शन एवं प्रश्न के अतिरिक्त ताडन एव श्रवण परीक्षा विशेप महत्त्व की है। श्रवण-परीक्षा द्वारा कान को परीक्ष्य स्थान पर लगाकर सुनना अथवा श्रवणयन्त्र (Stethescope ) के द्वारा सुनना व्यवहृत होता है। इस यन्त्र का उपयोग फुफ्फुस एव हृद्रोगो के निदान मे विशेप महत्त्व का सावन है। बद्धगुदोदर मे उदर की परीक्षा में भी इसका महत्त्व है। गन्ध के द्वारा परीक्षा कई रोगो मे विशेप महत्त्व की होती है जैसे-मलमूत्र की परीक्षा, अहिफेनविप, मदात्यय, मधुमेह की मूर्छा। रस की परीक्षा मधुमेह एव रक्तपित्त के विनिर्णय मे की जाती है। यह मक्षिकोपसर्पण, पिपीलिकोपमर्पण, वायस या श्वान को खिलाकर प्राचीन काल मे परप्रत्ययनेय यो । आजकल मूत्र के माधुर्य की परीक्षा के लिपे रासायनिक द्रव्यो से परीक्षा करके