Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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( XXVII )
गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव आक्रांत होने पर उस पुरुष की वेदना से अधिक अनिष्टतर, अकांततर, अप्रियतर, अशुभतर, अमनोज्ञतर और अमनोरमतर वेदना का प्रत्यनुभव करता हुआ विहरण करता है ।""
जैन आगमों में ऐसी सामग्री भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है, जिन्हें जानना वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत अवधारणाओं और सिद्धान्तों के साथ इन दार्शनिक सिद्धान्तों का सह-सम्बन्ध (corelation) अथवा तुलनात्मक समीक्षा विषय को हृदयंगम करने में सहायक होती है तथा उससे विज्ञान के क्षेत्र में भी अनुसन्धान के अभिनव आयाम की ओर संकेत उपलब्ध हो सकते हैं। जैसे - स्थावरकायिक एवं अन्य अमनस्क (असंज्ञी) जीवों द्वारा अनुभव की जाने वाला वेदना के संदर्भ में भगवई (७/ १५०-१५४) के ये सूत्र मननीय हैं
"भन्ते ! जो ये अमनस्क प्राणी, जैसे- पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक (पांच स्थावर), छठे वर्ग के कुछ त्रस जीव हैं- ये अन्ध हैं, मूढ़ हैं, अन्धकार में प्रविष्ट हैं, तमपटल और मोहजाल से आच्छादित हैं, अकाम-निकरण - अज्ञानहेतुक वेदना का वेदन करते हैं, क्या यह कहा जा सकता है ?
हां, गौतम ! जो ये अनमस्क प्राणी यावत् अकाम-निकरण वेदना का वेदन करते हैं - यह कहा जा सकता है।
भन्ते ! क्या प्रभु – समनस्क भी अकाम-निकरण वेदना का वेदन करते हैं ?
हां, करते हैं ।
भन्ते ! प्रभु भी अकाम-निकरण वेदना का वेदन कैसे करते हैं ?
गौतम ! जो दीप के बिना अन्धकार में रूपों को देखने में समर्थ नहीं हैं, जो अपने सामने के रूपों को भी चक्षु का व्यापार किए बिना देखने में समर्थ नहीं हैं, जो अपने पृष्ठवर्ती रूपों को पीछे की ओर मुड़े बिना देखने में समर्थ नहीं हैं, जो अपने पार्श्ववर्ती रूपों का अवलोकन किए बिना देखने में समर्थ नहीं हैं, जो अपने ऊर्ध्ववर्ती रूपों का अवलोकन किए बिना देखने में समर्थ नहीं हैं, जो अपने अधोवर्ती रूपों का अवलोकन किऐ बिना देखने में समर्थ नहीं हैं, ! ये प्रभु भी अकाम-निकरण वेदना का वेदन करते हैं ।
भन्ते! क्या प्रभु प्रकाम - निकरण - प्रज्ञानहेतुक वेदना का वेदन करते हैं ? हां, करते हैं।
भन्ते ! प्रभु भी प्रकाम-निकरण - प्रज्ञानहेतुक वेदना का वेदन कैसे करते हैं?
गौतम ! जो समुद्र के उस पार जाने में समर्थ नहीं हैं, जो समुद्र के पारवर्ती रूपों को देखने में समर्थ नहीं हैं, जो देवलोक में जाने में समर्थ नहीं हैं, जो देवलोकवर्ती रूपों को देखने में समर्थ नहीं हैं, गौतम ! ये प्रभु भी प्रकाम-निकरण वेदना का वेदन करते हैं । "
१.
इस प्रसंग की व्याख्या इस प्रकार है - " प्रस्तुत आलापक में अमनस्क और समनस्क भगवती सूत्र (हिन्दी अनुवाद), १९ / ३५ ।