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प्रस्तावना
४. जिन - शतक ( स्तुति - विद्या ) – यह ११६ पद्योंकी आलंकारिक अपूर्व काव्य-रचना है । चौबीस तीर्थंकरोंको इसमें स्तुति की गई है |
५. रत्नकरण्डकश्रावकाचार - - यह उपासकाचार विषयक १५० पद्योंकी अत्यन्त प्राचीन और महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक कृति है ।
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इनमें आदिकी तीन दार्शनिक, चौथी काव्य और पाँचवीं धार्मिक कृतियाँ हैं ।
इनके अतिरिक्त भी इनकी जीवसिद्धि जैसी कुछ कृतियोंके उल्लेख मिलते हैं पर वे अनुपलब्ध हैं ।
उपसंहार
प्रस्तुत प्रस्तावना में देवागम और स्वामी समन्तभद्रके सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है । इसी सन्दर्भमें देवागमकी व्याख्याओं और उसकी रचनाके प्रेरणास्रोतपर भी अनुचिन्तन प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तावना यद्यपि अधिक लम्बी हो गई है तथापि उसमें किया गया विचार पाठकोंको लाभप्रद होगा ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
२९ मार्च, १९६७
अन्तमें प्रस्तुत ग्रन्थके अनुवादक एवं सम्पादक तथा जैन साहित्य व इतिहास के वेत्ता श्रद्धेय पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारके इस देवागमअनुवादको सराहना करूँगा । देवागम जैसे दुरवगाह दर्शन-ग्रन्थका बड़े परिश्रमके साथ ग्रन्थानुरूप हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत करके समन्तभद्रभारतीके उपासकों को उन्होंने बड़ा लाभ पहुँचाया है । परम प्रमोदका विषय है। कि वे ९० वर्षकी वयमें भी शासन सेवामें संलग्न हैं । हम उनके शतवर्षी होनेकी हृदयसे कामना करते हैं ।
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दरबारीलाल कोठिया
१. खेद है कि इस महान् साहित्यकारका २२ दिसम्बर १९६८ को निधन हो गया । - प्रकाशक, द्वितीय संस्करण ।
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