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समन्तभद्र-भारती
[ परिच्छेद ३ होता है कि उस हेतुसे परमाणु-क्षण उत्पन होते हैं या स्कन्ध-सन्ततियाँ ? प्रथम पक्ष परमाणु-क्षणोंका उत्पन्न होना माननेसे स्थाप्यस्थापक और विनाश्य-विनाशकभावकी तरह हेतु-फलभावका भी विरोध उपस्थित होता है । तब सहेतुका उत्पत्ति कैसे बन सकती है ? कार्य-कारणके अभाव होनेपर ये स्थिति, उत्पत्ति और व्यय धर्म विरोधको प्राप्त होते हैं, क्योंकि परमाणु निरंश होते हैं। "न हेतु-फलभावादिरन्यभावादनन्वयात्' इस वाक्य-द्वारा ४३वीं कारिकाके अन्तर्गत क्षणिक-एकान्तमें पहले ही कार्यकारण-भावका निषेध किया जा चुका है। स्थिति और विनाशकी तरह अहेतुका उत्पत्ति भी नहीं बनती; क्योंकि स्थाप्य-स्थापकके अभावमें जिस प्रकार स्थितिका और विनाश्य-विनाशकके अभावमें जिस प्रकार विनाशका अभाव होता है उसी प्रकार हेतु-फलभावके अभावमें उत्पत्तिका भी अभाव होता है, तब सहेतुका उत्पत्तिकी कल्पना कैसी ? यदि दूसरा पक्ष-स्कन्ध-सन्ततियोंका उत्पन्न होना-माना जाय तो) स्कन्ध-सन्नतियाँ बौद्धोंके यहाँ परमार्थसत् न होनेसे असंस्कृत हैं-अकार्यरूप हैं-तब उनके लिये हेतुका समागम कैसा? साध्यके अभावमें साधनका भी अभाव होता है। अतः (रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार रूपमें माने गये) बौद्धोंके जो पाँच स्कन्ध हैं वे कोई पारमार्थिक सत् न होकर संवृतिरूपकल्पना-मात्र हैं उनके स्थिति, उत्पत्ति और विनाशका विधान गधेके सोंगकी तरह नहीं बनता ।-गधेके सींगका सद्भाव न होनेसे जैसे उसमें स्थिति, उत्पत्ति और विनाश ये तीनों घटित नहीं होते वैसे ही परस्पर असंबद्ध रूप-रस-गन्ध-स्पर्शके परमाणुरूप 'रूपस्कन्ध', सुख-दुःखादिरूप, 'वेदनास्कन्ध' सविकल्पक और निर्विकल्पक ज्ञानके भेदरूप विज्ञानस्कन्ध, वृक्षादि वस्तुओंके नाम (शब्द) रूप संज्ञास्कन्ध और ज्ञान-पुण्य-पापकी वासनारूप संस्कारस्कन्ध जब वास्तविक न होकर काल्पनिक हैं तो उनके स्थितिउत्पत्ति और विनाश ये तीनों घटित नहीं होते और इनके घटित
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