Book Title: Aptamimansa
Author(s): Samantbhadracharya, Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 175
________________ १०६ समन्तभद्र-भारती [परिच्छेद १० माना गया है। अतः विधेय-प्रतिषेधात्मक विशेषके कारण सप्तभंगीके समाश्रयसे स्याद्वाद प्रक्रियमाण होता है। इस प्रकार स्याद्वादकी ( सर्वत्र यक्ति-शास्त्राऽविरोधके कारण ) यह सम्यक स्थिति है। और इसलिये हे वीर भगवन् ! हमने जो यह निश्चय किया है कि 'युक्ति-शास्त्राऽविरोधिवाक्यके कारण आप ही निदोष आप्त है' वह अनवद्य है-सर्वप्रकारसे बाधा-रहित है।' आप्त-मीमांसाका उद्देश्य इतीयमाप्तमीमांसा विहिता हितमिच्छताम् । सम्यग्मिथ्योपदेशार्थ-विशेष-प्रतिपत्तये ॥११४॥ 'इस प्रकार ( 'देवागम' नामके स्वोक्त दश-परिच्छेदात्मक शास्त्रमें ) यह आप्तमीमांसा-सर्वज्ञ-विशेष-परीक्षा-हित चाहने वालोंके-मुख्यतः मोक्ष और उसका कारण सम्यग्दर्शनादिरूप रत्नत्रयके अभिलाषी भव्यजीवोंके-सम्यक् उपदेश और मिथ्या उपदेशके अर्थ-विशेषको प्रतिपत्तिके लिये--उपादेय तथा हेयरूपसे श्रद्धान, ज्ञान और समाचरणकी प्राप्तिके लिए--की गई है।' इति देवागमाऽऽप्तमीमांसायां दशमः परिच्छेदः । अनुवादकीय-अन्त्य-मंगल यस्य सच्छासनं लोके स्याद्वादाऽमोघ-लाञ्छनम् । सर्वभूत-दयोपेतं दम-त्याग-समाधिभृत् ॥ १॥ नय-प्रमाण-सम्पुष्टं सर्व-बाधा-विवर्जितं । सार्वमन्यैरजव्यं च तं वीरं प्रणिदध्महे ।। २ ।। [जिनका समीचीन शासन इस लोकमें स्याद्वादरूप अमोघ लक्षणसे लक्षित है-सर्वथा एकान्तवादरूप न होकर अनेकान्तवादात्मक है, इसीसे कभी असफल न होनेवाला है-सर्वप्राणियोंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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