Book Title: Aptamimansa
Author(s): Samantbhadracharya, Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 115
________________ ४६ समन्तभद्र-भारती [परिच्छेद ३ कर्म, अन्तर्व्यायाम, अजीव, स्मृति, और समाधि इन आठ हेतुओंसे हुआ बतलाया जाता है वह नाशके निर्हेतुक होनेसे उसो तरह बाधित ठहरता है जिस तरह सुगतके सर्वज्ञता और असर्वज्ञता दोनोंका कथन विरुद्ध ठहरता है।' विरूपकार्यारम्भ के लिये हेतुकी मान्यतामें दंष विरूप-कार्यारम्भाय यदि हेतु-समागमः । आश्रयिभ्यामनन्योऽसावविशेषादयुक्तवत् ।।५३॥ . _ '( बौद्धमतमें अन्वयके अभाव अथवा निरन्वय-विनाशके स्वीकार करनेसे स्वरूप-सदृशकार्य कोई होता नहीं, तब ) यदि बौद्धोंके द्वारा विसदृशकार्यके आरम्भके लिये हेतुका समागम इष्ट किया जाता है-हिंसाके हेतुरूप हिंसक ( वधक ) का और मोक्षके हेतुरूप सम्यक्त्वादि अष्ट-अंगका व्यापार माना जाता है तो वह हेतु-समागम नाश तथा उत्पाद दोनोंका कारण होनेसे उनका आश्रयभूत है और इसलिये अपने आश्रयी नाश और उत्पादरूप दोनों कार्योंके साथ अनन्यरूप है-जो मुद्गरप्रहार घटनाश-कार्यका हेतु है वही कपालों ( ठीकरों) के उत्पाद-कार्यका भी हेतु है, दोनों कार्योंका हेतु भिन्न-भिन्न न होनेसे दोनोंके लिये अयुक्तकी भाँति-तादात्म्यको प्राप्त शीशमपना और वृक्षपनाके कारण-कलापकी तरह--एक ही हेतुका व्यापार ठीक घटित होता है और इससे बौद्धोंका नाश-कार्य भी सहेतुक ठहराता है, जिसे वे निर्हेतुक बतलाते हैं, यह एक हेतु-दोष इस हेतु-समागमको मान्यतामें उपस्थित होता है। यदि विनाशके लिये हेतुका समागम नहीं, तो उत्पादके लिये भी हेतुका समागम मत मानों; क्योंकि कार्यकी दृष्टिसेनाश और उत्पाद दोनों में कोई भेद न होनेसे-एकको निर्हेतुक और दूसरेको सहेतुक बतलाना युक्ति-संगत नहीं कहा जा सकता।' . व्याख्या-बौद्धोंसे प्रश्न है कि यदि विनाश निर्हेतुक है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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