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समन्तभद्र-भारती . [परिच्छेद १०
द्रव्यका स्वरूप और भेदोंकी सूचना नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः । अविभ्राड्भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा ॥१०७॥
'त्रिकालवति नयों-उपनयोंके एकान्त-विषयोंका-पर्यायविशेषोंका-जो अपृथकस्वभाव ( तादात्म्य ) सम्बन्धको लिये हुए समुच्चय-समूह है वह द्रव्य-वस्तु है और वह एक अनेक भेदरूप है।'
निरपेक्ष और सापेक्ष नयोंकी स्थिति मिथ्या-समूहो मिथ्या चेन्न मिथ्यकान्ततास्ति नः । निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत् ॥१०८।।
'यदि यह कहा जाय कि ( एकान्तोंको तो आप मिथ्या बतलाते हैं तब नयों और उपनयों-रूप एकान्तोंका जो समूह द्रव्य है वह मिथ्या-समूह ठहरा ) मिथ्याओंका जो समूह वह तो मिथ्या ही होता है ( अतः द्रव्य कोई वस्तु न रहा ) तो यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि (हे जिनदेव ! ) आपके मतमें और इसलिये हमारेमें ( सापेक्ष नयोंका ग्रहण होनेसे ) मिथ्या एकान्तता नहीं है, जो नय ( प्रतिपक्षी धर्मके सर्वथा निराकरणरूप) निरपेक्ष होते हैं वे ही मिथ्यानय ( दुर्नय ) होते हैं सापेक्ष नय ( जो कि प्रतिपक्षी धर्मकी उपेक्षा अथवा उसे गौण किये होते हैं ) मिथ्या न होकर सम्यकनय होते हैं, उनके विषय अर्थ-क्रियाकारी होते हैं और इसलिये उनके समूहके वस्तुपना सुघटित है।
व्याख्या-यहाँ अनेकान्तके प्रतिपक्षी-द्वारा यह आपत्ति की गई है कि जब एकान्तोंको मिथ्या बतलाया जाता है तब नयों और उपनयों-रूप एकान्तोंका समूह जो अनेकान्त और तदात्मक वस्तुतत्त्व है वह भी मिथ्या ठहरता है; क्योंकि मिथ्याओंका समूह मिथ्या ही होता है। इसपर ग्रन्थकारमहोदय कहते हैं कि यह
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