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कारिका ८ ]
देवागम
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विषय में अज्ञानी रखकर अपना भी अहित साधन करनेवाले तथा कभी भी हाथीसे हाथीका काम लेने में समर्थ न हो सकनेवाले उन जन्मान्धों की तरह, अपनेको वस्तुस्वरूप से अनभिज्ञ रखकर अपना भी अहित साधन करते हैं और अपनी मान्यताको छोड़े अथवा उसकी उपेक्षा किये बिना कभी भी उस वस्तुसे उस वस्तुका ठीक काम लेने में समर्थ नहीं हो सकते और ठीक काम लेनेके लिये मान्यताको छोड़ने अथवा उसकी उपेक्षा करनेपर स्वसिद्धान्तविरोधी ठहरते हैं; इस तरह दोनों ही प्रकार से वे अपने भी वैरी होते है । नीचे एक उदाहरण द्वारा इस बातको और भी स्पष्ट करके बतलाया जाता हैं
एक मनुष्य किसी वैद्यको एक रोगीपर कुचलेका प्रयोग करता हुआ देखता है और यह कहते हुए भी सुनता है कि 'कुचला जीवनदाता है, रोगको नशाता है और जीवनी शक्तिको बढ़ाता है ।' साथ ही, वह यह भी अनुभव करता है कि वह रोगी कुचले - के खानेसे अच्छा तन्दुरुस्त तथा हृष्ट-पुष्ट हो गया । इसपरसे वह अपनी यह एकान्त धारणा बना लेता है कि कुचला जीवनदाता हैं, रोग नशाता है और जीवनी शक्तिको बढ़ाकर मनुष्यको हृष्टपुष्ट बनाता है' । उसे मालूम नहीं कि कुचलेमें मारनेका-जीवनको नष्ट कर देनेका - भी गुण है, और उसका प्रयोग सब रोगों तथा सब अवस्थाओंमें समानरूपसे नहीं किया जा सकता; न उसे मात्राकी ठीक खबर है, और न यही पता है कि वह वैद्य भी कुचलेके दूसरे मारकगुणसे परिचित था, और इसलिये जब वह उसे जीवनी शक्तिको बढ़ानेके काम में लाता था तब वह दूसरी दवाइयोंके साथ में उसका प्रयोग करके उसकी मारक शक्तिको दबा देता था अथवा उसे उन जीव-जन्तुओंके घातके काम में लेता था जो रोगी के शरीर में जीवनी शक्तिको नष्ट कर रहे हों । और इसलिये वह मनुष्य अपनी उस एकान्त धारणाके अनुसार अनेक रोगियों को कुचला देता है तथा जल्दी अच्छा करनेकी धुन में
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