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घत्ता - किन्तु नगर के लोगों द्वारा मिलकर मेरे लिए घर में हाथों को ऊँचे करके जो अपयश (मेरे) ऊपर डाला गया है, एक यह (ही) समझने (जानने) के लिए (मैं) (समर्थ) नहीं (हूँ)।
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(1) उस अवसर पर रत्नाश्रव (से उत्पन्न) के पुत्र विभीषण राजा के द्वारा त्रिजटा बुलाई गई। (2) तब यहाँ पर हनुमान के द्वारा तुरन्त ही लङ्कासुन्दरी बुलवाई गई। (3) दोनों ही सीता के सतीत्व के गर्व को धारण करती हुई (और उसको) प्रणाम करती हुई कहती है। (4) हे देव! हे देव! यदि अग्नि जलाई जाती है, यदि कपड़े की पोटली में हवा बाँधी जाती है। (5) यदि पाताल में आकाश लोटता है, यदि समय बीतने से काल नष्ट होता है। (6) यदि यमराज का मरण उत्पन्न होता है, यदि अरहन्त का शासन नष्ट होता है। (7) यदि सूर्य पश्चिम दिशा में उगता है, यदि पर्वत के शिखर पर सागर रहता है। (8) (तो) यह सब भी सोचा जा सकता है, (सम्भावना कराई जा सकती है) किन्तु सीता का शील (आचरण) मलिन नहीं किया जा सकता।
घत्ता - यदि इस प्रकार भी (तुमको) विश्वास नहीं होता तो हे परमेश्वर! (आप) यह करें (कि) तिल-चावल-विष-जल-अग्नि इन पाँचों (परीक्षा) में से आरोप की शुद्धि के लिए की जानेवाली परीक्षा (के लिए) एक ही (वस्तु) को धारण करलें'।
83.5
(1) उस (बात) को सुनकर रघुपति सन्तुष्ट हुए। इसी प्रकार हो' (यह कहकर सीता को बुलाने के लिए) हरकारा भेजा गया।
घत्ता – 'हे पूजनीया! (आप) पुष्पक विमान पर (में) चढ़ें। (अपने) पुत्रों, पति और देवरों को मिलें। (आप) (उनके) साथ (इस प्रकार) रहें जिस प्रकार चारों सागरों के मध्य में पृथ्वी स्थित रहती है।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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