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विहडन्तउ
खण्डित करते हुए
जब
उण्हालउ
(विहड-विहडन्त-विहडन्तअ) वकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक अव्यय (उण्हालअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (भिड-भिडन्त-भिडन्तअ) वकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक
ग्रीष्मऋतु
दिखाई दी
भिडन्तउ
भिड़ती हुई
धणु अप्फालिउ
पाउसेण
तडि-टंकार-फार
दरिसन्तें चोएवि जलहर-हत्थि-हड णीर-सरासणि
(धणु) 1/1
धनुष [(अप्फल) (प्रे)-अप्फाल(अप्फालिअ)] भूकृ 1/1
ताना गया (वृद्धि प्राप्त) (पाउस) 3/1
पावस के द्वारा [(तडि)-(टङ्कार)-(फार) 2/1] बिजली की,
टङ्कार और चमक (दरिस-दरिसन्त) वकृ 3/1
दिखाते हुए (चोअ+एवि) संकृ
प्रेरित करके [(जलहर)-(हत्थि)-(हड) 2/2 वि] बादलरूपी हाथी- घटा को [(णीर)-(सरासण (स्त्री)-सरासणी 1/2] जलरूपी तीर (मुक्क) भूक 1/2 अनि
छोड़े गये तुरन्त
मुक्क
तुरन्तें
अव्यय
28.3
जल-वाणासणि घायहिँ [(जल)-(वाणासण (स्त्री)-वाणासणी- जलरूपी, तीरों के, प्रहारों से...
वाणासणि')-(घाय) 3/2]. घाइड
(घाय=घाअ-घाइअ) भूकृ 1/1 चोट पहुँचाया हुआ गिम्भ-णराहिउ [(गिम्भ)-(णराहिअ) 1/1]
ग्रीष्मराजा (रण) 7/1 1. समास में रहे हुए स्वर परस्पर में अक्सर ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व हो
जाया करते हैं। (हेम प्राकृत व्याकरण 1-4)
युद्ध में
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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