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2.18
बात को
वयणु सुणेविणु सरलबाहु संतुट्ठउ मंतिहे धरणिणाहु
(त) 2/1 सवि
उस (को) (वयण) 2/1 (सुण+एविणु) संकृ
सुनकर (सरलबाहु) 1/1
सरलबाहु (संतुडुअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक प्रसन्न हुआ, सन्तुष्ट हुआ (मंति) 5/1
मंत्री से [(धरणि)-(णाह) 1/1]
पृथ्वी का नाथ
2.
तिहिँ
फलहिँ
एक्कहो फलासु णिरहरियड
(ति) 7/2 वि
तीन (में से) (फल) 7/2
फलों में से अव्यय (एक्क) 6/1 वि
एक (का) (फल) 6/1
फल का (णिरहर-णिरहरियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वा. चुका दिया गया (रिण) 1/1
ऋण (अम्ह) 3/1 स (मइवर) 6/1
मंत्रीवर के
रिणु
मई
मेरे द्वारा
मइवरासु
अवराह
(अवर) 6/2 (दो) 2/2 वि
अन्य (को) दो को
दोण्णि
अज्ज
अव्यय
आज
खमीसु
अव्यय [(खम+ईसु)] खम (खम) विधि 2/1 सक ईसु (ईस) 8/1
क्षमा कीजिए, हे नाथ
1. 2.
श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 152 कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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