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पवरि
(पवर) 7/1 वि
4.
मइ
दाणु पदिण्णउँ मुणिवरहु' सहु जणणिए णिहणिय
(अम्ह) 3/1 स
मेरे द्वारा (दाण) 1/1
दान (पदिण्णअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक दिया गया (मुणिवर) 4/1
श्रेष्ठ मुनि के लिए... अव्यय
साथ (जणणी) 3/1
माता के [(णिहण) + (इय) (णिहण) 4/1] विनाश के लिए (इय) 6/1 स
इस (भवसर) 6/1
संसार सरोवर के
भवसरहु
हउँ
वच्छउलहँ
रक्खणहँ
गउ
(अम्ह) 1/1 स [(वच्छ)-(उल) 6/2]
बछड़ों के समूह की (रक्खण) 4/2
रक्षा के लिए (गअ) भूकृ 1/1 अनि
गया अव्यय (सुत्तअ) भूक 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक सो गया अव्यय
जैसे ही [[(विगय) भूकृ अनि-(भअ) 1/1] वि] नष्ट हुआ, भय
तहिं
वहाँ
सुत्तउ
जावहिँ
विगय-भउ
पवणाहय
वायु से आघात प्राप्त
णिय
[(पवण)+(आहय)] [(पवण)-(आहय) भूकृ 1/2 अनि] (त) 1/2 स (णिय) 7/1 वि (आय) भूक 1/2 अनि (घर) 7/1 (अम्ह) 1/1 स
आय
अपने आ गये घर में
घरि
हउँ
चतुर्थी एवं षष्ठी पु. नपु. एकवचन में 'हु' प्रत्यय का प्रयोग भी होता है। (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 150)
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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