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पाठ - 16 पाहुडदोहा
महान
दिणयरु
सूर्य
महान
हिमकरणु
चन्द्रमा
महान
दीवउ
दीपक
(गुरु) 1/1 वि (दिणयर) 1/1 (गुरु) 1/1 वि (हिमकरण) 1/1 (गुरु) 1/1 वि (दीवअ) 1/1 (गुरु) 1/1 वि (देअ) 1/1 [(अप्प-अप्पा)'-(पर) 6/2] (परंपर) 6/2 (ज) 1/1 सवि (दरिस-दरिसाव) व प्रे 3/1 सक (भेअ) 2/1
महान
देव
अप्पापरह
स्व-भाव और पर-भाव की
परंपरहं
परम्परा के
दरिसावइ भेउ
समझाता है भेद को
2.
अप्पायत्तउ
स्वयं के अधीन
[(अप्प)+(आयत्तउ)] [(अप्प)-(आयत्तअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक
4.
अव्यय
अव्यय (सुह) 1/1 वि (त) 3/1 स अव्यय
सुख उससे
समास के ह्रस्व का दीर्घ हो जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 1-4)
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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