Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 405
________________ 25. करकंडचरिउ 28. भविसयत्तकहा 26. सुदंसणचरिउ इनमें से अन्तिम सात रचनाएँ अभी उपलब्ध नहीं हुई हैं। रइधू की विशिष्टता है कि गृहस्थ होते हुए उन्होंने विपुल साहित्य की रचना की । ग्रन्थ-रचना एवं मूर्तिप्रतिष्ठा कार्य उनकी अभिरुचि के प्रमुख विषय थे। इन्हें उक्त विशाल साहित्य का निर्माण करने की प्रतिभा अपने पिता से उत्तराधिकार में मिली थी । धण्णकुमारचरिउ - प्रस्तुत ग्रन्थ एक पौराणिक चरितकाव्य है। इसमें एक श्रेष्ठि-पुत्र धन्यकुमार का जीवनचरित निबद्ध है। धन्यकुमार अपने पूर्वभव में अकृतपुण्य नाम का एक पितृविहीन दरिद्र बालक था । एक बार उसने अपनी माँ के साथ एक मुनिराज को आहारदान किया। उसी के फलस्वरूप वह देवगति में जन्मा और बाद में धन्यकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ । इस भव में सर्वगुणसर्व-साधन सम्पन्न होते हुए भी उसे पूर्वकृत कर्मों के कारण अनेक विपत्तियों / आपदाओं का सामना करना पड़ता है पर वह तब भी धैर्य और साहस नहीं छोड़ता । अपने साले शालिभद्र वैराग्य से प्रेरणा लेकर धन्यकुमार को भी वैराग्य हो जाता है जिससे वह भी दीक्षा लेकर तप करता है और सद्गति प्राप्त करता है । विशेष अध्ययन के लिए सहायक ग्रन्थ 1. रइधू ग्रन्थावली - भाग - 1, 2 सम्पादक डॉ. राजाराम जैन, प्रकाशक जीवराज जैन ग्रन्थमाला, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, महाराष्ट्र । अपभ्रंश काव्य सौरभ 27. रत्नत्रयी Jain Education International - -- 2. रइधू साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन - डॉ. राजाराम जैन, प्रकाशक प्राकृत जैनशास्त्र अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली, बिहार । For Private & Personal Use Only 394 www.jainelibrary.org

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