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पाठ - 7 महापुराण
पाठ छ: की कथा के अनुक्रम में ही इस कडवक में वर्णन है कि मनुष्य-जीवन का महत्त्व बताकर सभी भाई मुनि-वेश धारणकर कैलाश पर्वत पर तप के लिए प्रस्थान करते हैं। एक बाहुबलि रह जाते हैं जो न तप करते हैं और न ही आधीनता स्वीकार करते हैं।
16.19 इस कडवक में उस समय का वर्णन है जब दूत आकर राजा भरत को बताता है कि आपके शेष सब भाई तो तप के लिए कैलाश पर्वत पर चले गये किन्तु एक बाहुबलि ही ऐसे हैं जो न तप साधते हैं और न ही आधीनता। दूत के मुख से ऐसे वचन सुनकर भरत पुनः (बाहुबलि के पास) दूत भेजता है। दूत बाहुबलि की प्रशंसा कर भरत की आधीनता स्वीकार करने को कहता है पर बाहुबलि मान कर देते हैं और युद्ध के लिए कहते हैं।
16.20 बाहुबलि के मुख से युद्ध की बात व भरत के लिए अपमानित (कटु) शब्द सुनकर दूत भरत की वीरता का बखान करता है और कहता है कि अधिक कहने से क्या लाभ? अब भरत आपको रणभूमि में ही मिलेंगे और विजय प्राप्त करेंगे।
16.21 दूत के मुख से भरत के गुणों को सुनकर बाहुबलि जो जवाब देते हैं, प्रस्तुत कडवक में उसी का वर्णन है।
16.22 बाहुबलि से मिलकर दूत अपने नगर अयोध्या आकर भरत को बताते हैं- हे राजन्! बाहुबलि आपकी आज्ञा नहीं मानता। वह बड़ा विषम है और पृथ्वी देने के बजाय युद्ध करना ही श्रेष्ठ समझता है। इसलिये वह अवश्य ही युद्ध करेगा।
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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