Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 419
________________ जाने का पता ही नहीं चला और सुबह कुत्तों ने उसे खा लिया। इस कडवक में वही कथा वर्णित है। 10.11 नववधुओं की संसार-आसक्ति की कथाएँ एवं उनके उत्तर में कुमार द्वारा संसार की नश्वरता, शरीर की असारता की कथाओं को विद्युच्चर नामक चोर सुनता रहता है। जंबूकुमार की माता उसे देख लेती है। उससे यह पूछे जाने पर कि वह कौन है तथा यहाँ क्या करने आया था? वह अपना परिचय बताता है और माता को आश्वस्त करता है कि अगर किसी प्रकार मैं अन्दर चला जाऊँ तो कुमार को विषय-सुखों की ओर जरूर अग्रसर कर दूंगा। यदि मैं असफल रहा तो प्रात: मैं स्वयं भी तपश्चरण/संन्यास ग्रहण कर लूँगा। माता उस चोर को कुमार के कक्ष में ले जाती है और कुमार से यह कहकर परिचय कराती है कि यह तुम्हारे मामा है। फिर मामा (विद्युच्चर) व भान्जे (जम्बू) का कथाओं के माध्यम से वार्तालाप होता है। विद्युच्चर के मुख से यह सुनकर कि तुम्हारे लिए राज्य-सुख ही श्रेष्ठ है, देव सुख के लिए मन में दमन श्रेष्ठ नहीं, स्वाधीन सुखों को छोड़नेवाले को कोई सुख नहीं मिलता। जंबूकुमार मनुष्य-जीवन का महत्त्व आदि के बारे में एक कथा का दृष्टान्त देते हैं। प्रस्तुत कडवक में उसी का वर्णन है। अपभ्रंश काव्य सौरभ 408 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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