Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 421
________________ 8.32 इस काव्यांश में सम्यक्चारित्र की दुर्लभता का वर्णन किया गया है । कवि कहते हैं कि सम्यक्वारित्र के आगे सभी दुर्लभ वस्तुएँ भी सुलभ समझो, यहाँ कवि ने सुदर्शन द्वारा स्वगत भाषण (अपने से बातचीत) का सुन्दर वर्णन किया है। सुदर्शन यही सोच रहा है . कि जिनशासन के अनुसार अति पवित्र वस्तु जिसे मैं पहले कभी नहीं पा सका, उस सम्यक्चारित्र को कैसे नष्ट कर दूँ? यह तो पाताल के शेषनाग, कश्मीर के केसरपिण्ड, मानसरोवर में कमलखण्ड, खान में से हीरे की प्राप्ति से भी दुर्लभ है। अर्थात् ये सभी तो सम्भव हैं पर सम्यक्चारित्र अति दुर्लभ है और अगर वह मेरे पास है तो मैं किस प्रकार उसे नष्ट होने दूँ? अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only 410 www.jainelibrary.org

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