Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 422
________________ पाठ - 11 सुदंसणचरिउ 3.1 प्रस्तुत काव्यांश मुनि नयनन्दी रचित सुदंसणचरिउ की तीसरी सन्धि से लिया गया है। इस काव्य में उस समय का वर्णन है जबकि सेठ ऋषभदास का ग्वाला (सुभग) णमोकार मंत्र का प्रभाव जान निरन्तर उसी का स्मरण करता रहता है। एक बार गंगानदी में जलक्रीड़ा करता हुआ दूंठ से आहत होकर णमोकार मंत्र का स्मरण करता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है। इधर सेठानी अर्हद्दासी एक रात में पाँच स्वप्न देखती है, उन्हीं का वर्णन प्रस्तुत काव्य में वर्णित है। 3.2 प्रातःकाल सेठानी अपने पति ऋषभदास (सेठ) के साथ जिन-मन्दिर में स्वप्नफल पूछने जाती है। वहाँ मुनिराज उसे स्वप्न-फल को समझाते हुए कहते हैं कि तुम्हारे द्वारा स्वप्न में देखे गये दृश्यों से यह ज्ञात होता है कि तुम्हारे धैर्यवान, त्यागी व लक्ष्मीवान, गुणों का समूह, पापरूपी मल को नष्ट करनेवाला पुत्र होगा। 3.5 प्रस्तुत काव्यांश में सेठ ऋषभदास के घर पुत्र-जन्म होने के पश्चात् का वर्णन है कि किस प्रकार सुदर्शन के जन्मोत्सव को सेठ के साथ-साथ स्वयं प्रकृति भी हर्षोल्लास के साथ मनाती है। कवि कहता है- पुत्र के उत्पन्न होने से सम्पूर्ण परिवेश ही आनन्दित हो रहा था। उसी बीच छठे दिन माता पुत्र को लेकर उसके नामकरण के लिए जिन-मन्दिर गई। ___ 3.6 सेठानी के मुख से यह सुनकर कि बन्धुजनों ने इसका नाम कुम्भ राशि में रखने को कहा है, महामुनि ने कहा कि पुत्री तेरे द्वारा स्वप्न में सुन्दर और उच्च सुदर्शन मेरु को देखा गया था इसलिये इसका नाम सुदर्शन ही रखना उचित है। प्रस्तुत काव्यांश में बढ़ते हुए बालक का आलंकारिक वर्णन दोधक छन्द में निबद्ध किया गया है। 411 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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