Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 418
________________ 9. 8 प्रस्तुत काव्यांश महाकवि वीर द्वारा विरचित जंबूसामिचरिउ की नवीं सन्धि के आठवें कडवक से उद्धृत है। जंबूकुमार राजगृही के श्रेष्ठी अरहदास के पुत्र हैं। वे केरल के राजा को युद्ध में परास्त कर अपने राज्य को लौट रहे होते हैं कि किसी प्रसंग से उनके मन में वैराग्य उत्पन्न होता है और वे माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा लेने जाते हैं । पाठ - 9 जम्बूसामिचरिउ माता-पिता पुत्र को अनेक प्रकार से समझाते हैं कि पहले वे उन चारों कन्याओं से विवाह करें जिनके साथ उनका विवाह सम्बन्ध निश्चित किया जा चुका है, और सांसारिक सुखों का उपभोग करें । परन्तु जंबू अपने निश्चय पर दृढ़ रहते हैं । यह स्थिति देखकर कन्याओं के पिता को सन्देश भिजवाया जाता है कि कन्याओं के लिए कोई अन्य वर की तलाश करें। यह बात चारों ही कन्याएँ स्वीकार नहीं करती। उन सभी को इस बात का पक्का विश्वास था कि अपने अपूर्व सौन्दर्य से जंबूकुमार को वश में कर लेंगी। इसलिये वे मात्र एक रात के लिए विवाह करने का प्रस्ताव रखती हैं। कुमार एक रात के लिए विवाह करने को तैयार हो जाता है पर एक शर्त के साथ कि- इस रात में यदि मैं भोगानुरक्त हो जाऊँ तो ठीक अन्यथा दूसरे दिन प्रात: मैं दीक्षा धारण कर लूँगा । विवाह के पश्चात् जंबूकुमार की चारों पत्नियाँ उनको आकर्षित करने के लिए संसार - आसक्ति की अनेक कथाओं, अन्तर्कथाओं का सहारा लेकर समझाने का प्रयत्न करती हैं जिनके जवाब में स्वयं जंबूकुमार भी कथाओं के माध्यम से संसार की असारता, जीवन की नश्वरता का वर्णन करते हुए अपने व्रत पर ही दृढ़ रहते हैं। विनयश्री कुमार को कथानक कहती है कि किस प्रकार एक गरीब संखिणी नामक कबाड़ी स्व-अधीन (जो स्वयं के पास है ) लक्ष्मी का उपभोग नहीं करता और श्रेष्ठ स्वर्गसुख की आकांक्षा में ही अपना मूल भी गवाँ देता है यही हाल इनका (जंबूकुमार) का होगा । 9. 11 दूसरी वधू रूपश्री जंबूकुमार से कहती है- अत्यधिक अनुपलब्ध सुखों की इच्छा करनेवाले के उपलब्ध सुखों का भी नाश हो जाता है। वह ठगा जाता है। प्रत्युत्तर में कुमार कथा कहता है कि जो मूर्ख विषयसुखों में अन्धा होकर रहता है वह अवश्य ही विनाश को प्राप्त होता है। जिस प्रकार मांस खाने के लालच में गीदड़ को रात बीत अपभ्रंश काव्य सौरभ 407 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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