Book Title: Apbhramsa Kavya Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 412
________________ पाठ -5 पउमचरिउ 83.2 प्रस्तुत काव्यांश पउमचरिउ की तियासीवी सन्धि से लिये गये हैं। इसमें उस समय का वर्णन है जब राम लोकापवाद के कारण सीता को राज्य से निर्वासित करते हैं और राजा वज्रजंध उसे बहन बनाकर पुण्डरीक नगर ले जाता है, वहीं उसके दो पुत्रों लवण व अंकुश का जन्म होता है। दोनों भाई मामा (राजा वज्रजंध, जिन्होंने उनका पालन-पोषण किया है) के समान ही अजेय व वीर होते हैं। वे सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपनी वीरता की पताका फहराते हैं। नारद के मुख से राम, लक्ष्मण की वीरता का बखान एवं राम के द्वारा अपनी माता को कलंकित कहकर निकाल देने की बात को सुनकर दोनों भाई मामा के साथ अयोध्या पर चढ़ाई करते हैं। लवण-अंकुश बड़ी वीरता से युद्ध करते हैं। तभी नारद राम से उन दोनों का परिचय करवाते हैं और कहते हैं- ये ही तुम्हारे पुत्र लवण-अंकुश हैं। यह सुनकर राम उन्हें गले लगाते हैं और जयघोष के साथ नगर में ले जाते हैं। लवण-अंकुश नगर में प्रवेश करते हैं उस समय भामण्डल, नल-नील, अंग-अंगद, लंकाधिप, किष्किन्धराजा, जनक, कनक और हनुमान भी वहाँ उपस्थित थे। पूरी सभा में राम, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, लवण-अंकुश ऐसे लग रहे थे मानो पाँचों मन्दराचल एक साथ आ मिले हों। सभी ने राम का अभिनन्दन किया और कहा कि हे राम! तुम धन्य हो जिसके ऐसे पुत्र हैं पर पूरी सभा में सीता की कमी खटक रही है। आप (उसकी) सीता की कोई परीक्षा करके उन्हें वापस ले आयें। लोकापवाद में विश्वास करना ठीक नहीं। ___83.3 यह सुनकर राम ने कहा कि मैं सीता देवी के सतीत्व को जानता हूँ, उसके व्रत व गुणों को जानता हूँ, मैं सीता के बारे में सभी कुछ जानता हूँ पर यह नहीं जानता कि उस पर प्रजाजन ने कलंक क्यों लगाया? 83.4 सर्वगुण-सम्पन्न राज-स्वामिनी पर लगे कलंक को निराधार बतानेके लिए उसी समय प्रजाजन के सामने सभा में ही विभीषण ने त्रिजटा को और हनुमान ने लंकासुन्दरी को बुलवाया। दोनों ने सभा में आकर गर्वीले शब्दों में सीता के सतीत्व का वर्णन करते हुए कहा कि असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाये पर सीता का सतीत्व नहीं डिग सकता। फिर भी अगर आपको विश्वास नहीं होता तो तिल, चावल, विष, जल, और आग इन पाँचों में से किसी भी एक पदार्थ से उसकी परीक्षा ले लीजिए। 401 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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