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कर
करि संतोसु परसुहु
(कर) विधि 2/1 सक (संतोस) 2/1 [(पर) वि-(सुह) 2/1]
संतोष दूसरों के (अधीन) सुख को (का) हे मूर्ख विचार करते हुए (व्यक्तियों) के
वढ चिंतंतह
(वढ) 8/1 वि (चिंत-चितंत) वकृ 6/2
हियइ
हृदय में नहीं
(हियअ) 7/1 अव्यय (फिट्ट) व 3/1 अक (सोस) 1/1
फिट्टइ
मिटती है
सोसु
कुम्हलान
आभुजंता विसयसुह
(आ-भुंज- जंत) वकृ 1/2 [(विसय)-(सुह) 2/2] (ज) 1/2 सवि
सब ओर से भोगते हुए विषयों (से उत्पन्न) सुखों को
अव्यय
नहीं
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कभी हृदय में
हियइ धरंति
धारण करते हैं
अव्यय (हियअ) 7/1 (धर) व 3/2 सक (त) 1/2 सवि [(सासय) वि-(सुह) 2/1] अव्यय (लह) व 3/2 सक (जिणवर) 1/2
सासयसुहु
अविनाशी सुख को शीघ्र प्राप्त करते हैं जिनवर
लहहिं जिणवर
एम
अव्यय
इस प्रकार कहते हैं
भणति
(भण) व 3/2 सक
अव्यय
भुंजता
अव्यय (भुंज- जंत) वकृ 1/2
भोगते हुए
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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